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Rajasthan Breaking News: नहीं रहें गुर्जरों के मसीहा डॉ. किरोड़ी सिंह बैंसला, राजस्थान में गुर्जर आरक्षण को लेकर किया था लंबा आंदोलन

 
Rajasthan Breaking News: नहीं रहें गुर्जरों के मसीहा डॉ. किरोड़ी सिंह बैंसला, राजस्थान में गुर्जर आरक्षण को लेकर किया था लंबा आंदोलन

जयपुर न्यूज डेस्क। राजस्थान की इस वक्त की बड़ी खबर में आपको बता दें कि गुर्जर आंदोलन के मुखिया रहे कर्नल किरोड़ी बैंसला का निधन हो गया है। किरोड़ी बैसला लंबे समय से बीमार चल रहे थे। तबीयत बिगड़ने पर आज किरोड़ी को लेकर जयपुर स्थित आवास से मणिपाल हॉस्पिटल ले जाया गया। जहां चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। बैंसला के निधन से गुर्जर समाज में शोक की लहर छा गई है। कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला का जन्म राजस्थान के करौली जिले के मुंडिया गांव में हुआ।

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गुर्जर समुदाय से आने वाले किरोडी सिंह ने अपने करियर की शुरुआत शिक्षक के तौर पर ही थी, लेकिन पिता के फौज में होने के कारण उनका रुझान फौज की तरफ थी। उन्होंने भी सेना में जाने का मन बना लिया। वह सेना में सिपाही के रूप में भर्ती हो गए। किरोड़ी सिंह बैंसला सेना की राजपूताना राइफल्स में भर्ती हुए थे और सेना में रहते हुए 1962 के भारत-चीन और 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में बहादुरी से वतन के लिए जौहर दिखाया है। किरोरी सिंह बैंसला एक पाकिस्तान में युद्धबंदी भी रहे. उन्हें दो उपनामों से भी उनके साथी जानते थे। सीनियर्स उन्हें जिब्राल्टर का चट्टान और साथी कमांडो इंडियन रेम्बो कह कर बुलाते थे। किरोडी सिंह की जाबांजी के चलते सेना में मामूली सिपाही के तौर पर भर्ती होने के बावजूद तरक्की पाते हुए वह कर्नल की रैंक तक पहुंचे। किरोड़ी बैंसला के चार संतान हैं। एक बेटी रेवेन्यु सर्विस और दो बेटे सेना में है और एक बेटा निजी कंपनी में कार्यरत है। किरोड़ी बैंसला की पत्नी का निधन हो चुका है और वे अपने बेटे के साथ हिंडौन में रहते हैं।

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सेना से रिटाटर होने के बाद किरोड़ी सिंह बैंसला राजस्थान लौट आए और गुर्जर समुदाय के लिए अपनी लड़ाई शुरू की। गुर्जरों को आरक्षण दिलाने को लेकर बैंसला ने राजस्थान में लंबा आंदोलन किया और आंदोलन के दौरान कई बार उन्होंने रेल रोकी, पटरियों पर धरना दिया है। आंदोलन को लेकर उन पर कई आरोप भी लगे। उनके आंदोलन में अब तक 70 से अधिक लोगों की मौत भी हुई है। राजस्थान के ही मीणा समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया है और इससे उन्हें सरकारी नौकरी में खासा प्रतिनिधित्व मिला। लेकिन गुर्जरों के साथ ऐसा नहीं हुआ गुर्जरों को भी उनका हक मिलना चाहिए और उन्होने गुर्जरो को उनका हक दिलाने में अहम भूमिका निभाई है। जिसके चलते लोग उन्हे गुर्जरों का मसीहा मानते है।