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Dholpur में 7 अजूबों से कम नहीं 11वीं से 13वीं शताब्दी के बीच बना देलवाड़ा मन्दिर, शिल्प सौंदर्य का बेजोड़ खजाना

 
Dholpur में 7 अजूबों से कम नहीं 11वीं से 13वीं शताब्दी के बीच बना देलवाड़ा मन्दिर, शिल्प सौंदर्य का बेजोड़ खजाना

धौलपुर न्यूज़ डेस्क,हमारे देश में तरह-तरह के मंदिर हैं। जो अपनी खूबसूरती और प्राचीनता के लिए पूरी दुनिया में मशहूर हैं। ऐसा ही एक प्राचीन मंदिर माउंट आबू से 3 किमी की दूरी पर स्थित है। दिलवाड़ा मंदिर का निर्माण 11वीं से 13वीं शताब्दी के बीच हुआ था। यहां मौजूद सभी मंदिर जैन धर्म के तीर्थंकरों को समर्पित हैं। इस मंदिर का निर्माण राजा वस्तुपाल और तेजपाल नाम के दो भाइयों ने करवाया था। यह पांच मंदिरों का समूह है।

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सबसे पुराना विमल वसाही मंदिर 1031 में बनवाया गया था। इस मंदिर का निर्माण सोलंकी राजा भीमदेव के महामंत्री विमलशाह ने करवाया था। विमल वसाही मंदिर में आदिनाथ मूर्ति की आंखें असली हीरे से बनी हैं और उसके गले में कीमती पत्थरों का हार है।

5 मंदिरों के समूह में दूसरा सबसे लोकप्रिय और भव्य मंदिर 'लूना वसाही मंदिर' है। यह जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ को समर्पित है। इसका निर्माण 1230 ईस्वी में दो भाइयों वास्तुपाल और तेजपाल ने करवाया था, जो गुजरात में वाहेला के शासक थे। इस मंदिर की विशेषता यह है कि इसके मुख्य कक्ष में 360 तीर्थंकरों की छोटी-छोटी मूर्तियाँ हैं। इसके अलावा यहां एक हाथी कक्ष भी है, जिसमें संगमरमर के 10 खूबसूरत हाथी मौजूद हैं।

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यहां विमल वसाही मंदिर और लूना वसाही मंदिर के अलावा पितलहार मंदिर स्थित है, इसे 1468-69 ईस्वी में बनवाया गया था। इसे अहमदाबाद के मंत्री भीमशाह ने बनवाया था। पितलहार मंदिर में ऋषभदेव की पंचधातु की मूर्ति का वजन 4,000 किलोग्राम है।

पार्श्वनाथ मंदिर 5 मंदिरों के समूह में चौथा सबसे लोकप्रिय मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण मांडलिक और उनके परिवार ने 1458-59 के दौरान करवाया था। इसके चारों ओर से दर्शन होते हैं।