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Rajasthan Breaking News: ग्रेटर मेयर सौम्या गुर्जर नोटिस प्रकरण, सीएम गहलोत से मुलाकत कर की न्याय की मांग

 
Rajasthan Breaking News: ग्रेटर मेयर सौम्या गुर्जर नोटिस प्रकरण, सीएम गहलोत से मुलाकत कर की न्याय की मांग

जयपुर न्यूज डेस्क। राजस्थान की बड़ी खबर में आपको बता दें कि ग्रेटर मेयर सौम्या गुर्जर नोटिस मामले में अब नया मोड़ आ गया है। ग्रेटर मेयर सौम्या गुर्जर ने डीएलबी नोटिस का जवाब देने से पहले सीएम गहलोत से मुलाकात कर उनसे न्याय की मांग की है। जयपुर नगर निगम ग्रेटर मेयर डॉ.सौम्या गुर्जर ने डीएलबी डॉयरेक्टर के यहां अपना जवाब पेश करने से पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सामने अपनी पूरी बात रखी है। इसके बाद देर शाम को अपना रिर्टन में जवाब डीएलबी डॉयरेक्टर को भिजवाया है। सौम्या के इस चौंकाने वाले कदम से अब कयास लगाए जा रहे है कि ये मामला ठंडे बस्ते में जा सकता है। डीएलबी डॉयरेक्टर को अपना रिर्टन जवाब देने के बाद मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा कि मैंने अपना सारा रिप्रजेन्टेशन सीएम को दे दिया है और उनको सभी तथ्यों से अवगत करवाया है। मुख्यमंत्री ने भी मेरी पूरी बात को अच्छे से सुना है। मुझे उम्मीद है कि मुझे उनसे न्याय मिलेगा। 

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आपको बता दें कि हाईकोर्ट के आदेशों के बाद सौम्या ने 12 नवंबर को मेयर पद दोबारा संभाला था।  उसी दिन राज्य सरकार ने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए 7 दिन में जवाब पेश करने का समय दिया था। 18 नवंबर को जब सौम्या अपना जवाब देने पहुंची तो उन्होंने सरकार से एक महीने का अतिरिक्त समय मांगा था। लेकिन सरकार ने एक महीने का समय न देकर एक सप्ताह का अतिरिक्त समय दिया था।  जो अब पूरा हो गया है और अब राज्य सरकार सौम्या के जवाब का अब कानूनी अध्ययन करवा कर इस पर अपना फैसला सुनाएगी। कानूनी अध्ययन के बाद अगर सरकार को जवाब संतोषजनक लगेगा तो सौम्या को बरी भी किया जा सकता है। 

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जानकार सूत्रों की माने तो इससे पहले सितम्बर में जब सौम्या को मेयर के पद से निलंबित किया था। तब इसका निर्णय यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल के स्तर पर किया गया था। इस बार इस मामले को मुख्यमंत्री के स्तर पर भिजवाने के कयास लगाए जा रहे थे। सरकार अगर सौम्या को दोबारा पद से बर्खास्त करती है तो सौम्या के पास एक बार फिर हाईकोर्ट जाने का विकल्प रहेगा। सौम्या की तरफ से इस मामले की राजस्थान हाईकोर्ट में पैरवी करने वाले अधिवक्ता महेन्द्र सारण की माने तो सरकार के किसी भी अंतिम निर्णय को ज्यूडिशरी रिव्यू करने का अधिकार हर किसी के पास है।  फिर चाहे नगर पालिका अधिनियम में सरकार ने ये प्रावधान क्यों न कर रखा हो कि सरकार की ओर से एक बार पद से बर्खास्त करने के बाद कोर्ट में उसे चुनौती नहीं दे सकते है।