Alwar तीन साल से तरल पदार्थ के सहारे जी रहा कैंसर रोगी ने की आत्महत्या
अलवर न्यूज़ डेस्क, अलवर कैंसर होने पर डिप्रेशन में आए एक मरीज ने बुधवार सुबह जिला अस्पताल के टॉयलेट में स्वापी का फंदा बनाकर आत्महत्या कर ली। कठूमर के टिटपुरी गांव निवासी अकरम (35) पुत्र आजाद खान 4 साल से जीभ के कैंसर से पीड़ित था। वह 3 साल से केवल तरल पदार्थों के सहारे जीवन गुजार रहा था। इस बीच असहनीय दर्द के साथ आर्थिक तंगी के चलते वह डिप्रेशन में आ गया और बुधवार को जिला अस्पताल के मेल सर्जिकल वार्ड के बाथरूम में आत्महत्या कर ली।
उसके चचेरे भाई इमरान ने बताया कि 4 साल पहले जीभ का कैंसर होने पर अकरम की दिल्ली के अस्पताल में सर्जरी कराई थी। एक साल तक सब ठीक चला, लेकिन बाद में फिर से तकलीफ होने लगी। अकरम का दिल्ली, अलवर और जयपुर के अस्पताल में इलाज चला। 10 दिन पहले ज्यादा तकलीफ होने पर उसे अलवर के निजी अस्पताल में भर्ती कराया। तीन दिन पहले वह जिला अस्पताल में भर्ती हुआ। बुधवार सुबह करीब 5 बजे वार्ड के टॉयलेट में उसने आत्महत्या कर ली, जब दूसरा मरीज टॉयलेट में गया तो पता चला।
एक्सपर्ट व्यू - कैंसर का बड़ा कारण तंबाकू
गंभीर बीमारी से पीड़ित व्यक्ति एंग्जायटी का शिकार हो जाता है, क्योंकि उसे मौत का डर होने लगता है। कैंसर जैसे गंभीर रोग में लंबा इलाज और कमजोरी उसे डिप्रेशन की ओर ले जाते हैं। साथ ही बीमारी में नींद की कमी और आर्थिक परेशानी मरीज को और परेशान करने लगती है। वह नकारात्मक जैसे मरने की बातें या इसके प्रयास करने लगता है। ऐसे में मरीज को संबंधित रोग के उपचार के साथ मनोरोग विशेषज्ञ से भी परामर्श लेना चाहिए, ताकि मरीज की मानसिक स्थिति का परीक्षण किया जा सके। अकरम तंबाकू का ज्यादा सेवन करता था। यह उसके कैंसर का बड़ा कारण हो सकता है। जीभ का कैंसर जीभ की सतह पर स्थित चपटी स्क्वैमस कोशिकाओं से विकसित होता है। जब वे असामान्य कोशिकाओं के समूह में विभाजित होने लगते हैं, तो ट्यूमर बन जाता है। मुंह और गले के कैंसर की तरह, जीभ का कैंसर भी तंबाकू और शराब के अत्यधिक सेवन के साथ ह्यूमन पेपिलोमा वायरस (एचपीवी) से जुड़ा हुआ है।
मरीज के कैंसर का इलाज कैसे हो, यह उसके विकास के चरण पर निर्भर करता है। शुरुआती चरणों में सर्जरी से हटाने या रेडियोथैरेपी से इसका इलाज किया जा सकता है। एक सर्जरी, जिसे ग्लोसेक्टॉमी कहा जाता है, जीभ के हिस्से या पूरी जीभ को हटाने के लिए की जा सकती है। अधिक स्टेज के मामलों में सर्जरी के बाद रेडियोथैरेपी और कीमोथैरेपी की जा सकती है। यदि कैंसर मूल स्थान से बहुत दूर फैल गया है, तो डॉक्टर कीमोथैरेपी, कीमोरेडिएशन या इम्युनोथैरेपी का सुझाव दे सकते हैं।मृतक अकरम परिवार का इकलौता बेटा था। दसवीं पास अकरम की 14 साल पहले शादी हुई थी। कैंसर के इलाज के लिए उसे अपने हिस्से की चार बीघा खेती की जमीन भी बेचनी पड़ी। आर्थिक तंगी और लगातार बीमार रहने के कारण वह डिप्रेशन में आ गया था। बात-बात पर गुस्सा करने के साथ ही घरवालों से मरने की बातें करता था। उसके दो बेटे हैं। जिला अस्पताल में पिछले 2 साल में बढ़े मरीज वर्ष 2021 में जिला अस्पताल में कैंसर के 1067 मरीज आए थे। वर्ष 2022 में ये 2883 हो गए। वर्ष 2023 में चार गुना बढ़कर इनकी संख्या 9129 हो गई। इस साल जुलाई माह तक कैंसर के 7856 मरीज अस्पताल में आ चुके हैं। वर्ष 2021 में जहां पूरे महीने में मुश्किल से दो कीमोथैरेपी होती थी। वह अब हर माह 500 तक पहुंच चुकी है। मृतक अकरम। सुसाइड करने के बाद परिवार के लोग अस्पताल में पहुंचे।