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बुजुर्गों की परंपरागत सीख और युवाओं के उत्साह और सहभागिता ने बदली इस गांव की तस्वीर, मिली अंतर्राष्ट्रीय पहचान

 
बुजुर्गों की परंपरागत सीख और युवाओं के उत्साह और सहभागिता ने बदली इस गांव की तस्वीर, मिली अंतर्राष्ट्रीय पहचान 

जिले में स्थित पक्षी ग्राम मेनार गांव ने वर्षों से पक्षी संरक्षण की अपनी परंपरा को जीवित रखते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई है। सामुदायिक प्रयासों और सतत संघर्ष का परिणाम है कि मेनार को अब प्रतिष्ठित रामसर साइट घोषित किया गया है। यह उपलब्धि ग्रामीणों की लगन और समर्पण के साथ पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में हुई प्रगति को भी रेखांकित करती है। यहां स्थित ढंड तालाब और ब्रह्म सागर (भरमेला) तालाब सैकड़ों प्रजातियों के पक्षियों को आश्रय प्रदान करते हैं, जिसके कारण मेनार 'पक्षी ग्राम' के रूप में विश्वभर में प्रसिद्ध हो गया। यहां के बुजुर्ग और स्थानीय समुदाय ने पीढ़ियों से पक्षियों और जलाशयों का संरक्षण किया है।

सदियों से संरक्षण और समर्पण, ताकि जलाशय सुरक्षित रहें
मेनार में जलाशयों के संरक्षण और पक्षियों को बचाने की परंपरा सदियों पुरानी है। 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश यात्री जॉन टिल्टसन द्वारा लिखी गई पुस्तक 'पिक्चर्सक्यू सीनरी इन इंडिया' में उल्लेख है कि जब एक ब्रिटिश अधिकारी ने पक्षी का शिकार किया तो ग्रामीणों ने उसे हुक्का-पानी देना भी बंद कर दिया था। यह घटना बताती है कि मेनार में पक्षी संरक्षण कितना महत्वपूर्ण रहा है। 

सामुदायिक समर्पण: सिंचाई नहीं और मछली पकड़ने का ठेका भी नहीं
यहां के लोग आज तक अपने बुजुर्गों द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करते आ रहे हैं। जलाशयों के पानी का उपयोग सिंचाई के लिए नहीं किया जाता, जिससे यहां की जलीय परिस्थितियां पक्षियों के लिए अनुकूल बनी हुई हैं। शुरू से ही यहां मछली पकड़ने का ठेका नहीं दिया जाता। जिससे प्रवासी पक्षियों को भरपूर भोजन मिलता है। वहीं मेनार क्षेत्र में शिकार पर पूरी तरह प्रतिबंध है। जिससे स्थानीय और प्रवासी पक्षी बिना किसी खतरे के यहां प्रवास कर सकते हैं।

पक्षियों के लिए खेती पूरी तरह बंद
कुछ साल पहले जब तालाब सूख गया था, तब यहां खेती की जाती थी, जिससे ग्रामीणों को आमदनी होती थी। लेकिन जब पता चला कि खेती में खाद और कीटनाशक का इस्तेमाल किया जाता है, तो इसे तुरंत बंद कर दिया गया। पिछले कई सालों से ग्रामीणों ने पक्षियों के हित में इस परंपरा को पूरी तरह खत्म कर दिया है। अब तालाब क्षेत्र में खेती नहीं की जाती, ताकि पक्षियों का प्राकृतिक आवास बना रहे।

पेड़ लगाने की परंपरा जारी
दशकों से तालाब के किनारे और अपने खेतों में आम के पेड़ लगाने की परंपरा है। परिवार का लगभग हर सदस्य तालाब के किनारे और अपने खेत की सीमा पर एक आम का पेड़ लगाता है। उसकी देखभाल की जिम्मेदारी भी खुद उठाता है, यही वजह है कि आज इस गांव के दोनों तालाबों के किनारे सैकड़ों आम के पेड़ लगे हुए हैं। ये पेड़ छाया देने के साथ-साथ प्रकृति की रक्षा भी करते हैं और जानवरों के लिए आश्रय स्थल बनते हैं।