राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े का कला और संस्कृति पर जोर: “लोक कला जीवन का असली आलोक है”
राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े ने लोक कला और संस्कृति के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा है कि “लोक है तो आलोक है और लोक कला जीवन का असली आलोक है। इसमें कोई बनावट नहीं, यह पूरी तरह से प्राकृतिक और सजीव है।” उनका यह बयान राज्य में बच्चों में सांस्कृतिक चेतना और कला के प्रति रुचि बढ़ाने की दिशा में एक स्पष्ट संदेश है।
राज्यपाल ने इस अवसर पर मौजूद अधिकारियों और सभी नागरिकों से आह्वान किया कि वे बच्चों को कला और संस्कृति की शिक्षा देने पर ध्यान दें। उन्होंने कहा कि बच्चों को मंच पर अवसर देना और उन्हें अपने हुनर दिखाने का मौका देना बहुत जरूरी है। यह न केवल उनकी व्यक्तिगत प्रतिभा को निखारेगा, बल्कि उन्हें अपने सांस्कृतिक विरासत के प्रति भी संवेदनशील बनाएगा।
हरिभाऊ बागड़े ने जोर देकर कहा कि लोक कला में जीवन की सादगी और सहजता झलकती है। यह न केवल सौंदर्यबोध विकसित करती है, बल्कि सामाजिक और नैतिक मूल्यों की शिक्षा भी देती है। उनका मानना है कि आधुनिक युग में बच्चों को तकनीकी शिक्षा के साथ-साथ कला और संस्कृति की सीख देना जरूरी है, ताकि वे अपनी जड़ों और परंपराओं से जुड़े रहें।
राज्यपाल ने कहा, “बच्चों को मंच पर अवसर देने से उनका आत्मविश्वास बढ़ता है और वे अपनी प्रतिभा को निखारते हैं। हमें उन्हें सिर्फ देखना नहीं चाहिए, बल्कि उनके हुनर को प्रोत्साहित करना चाहिए।” उन्होंने अधिकारियों से आग्रह किया कि स्कूलों, सांस्कृतिक संस्थानों और स्थानीय कार्यक्रमों में बच्चों के लिए अधिक मंच उपलब्ध करवाएं।
विशेषज्ञों का मानना है कि राज्यपाल के इस आह्वान से राजस्थान में लोक कला और सांस्कृतिक शिक्षा को नई दिशा मिलेगी। यह पहल न केवल बच्चों में कलात्मक क्षमता को बढ़ावा देगी, बल्कि राज्य की सांस्कृतिक धरोहर को भी सहेजने में मदद करेगी।
राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े के इस संदेश ने यह स्पष्ट कर दिया कि कला और संस्कृति केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि जीवन और समाज की नैसर्गिक रोशनी हैं, जो बच्चों के व्यक्तित्व और समाज के सामूहिक संवेदनशीलता को मजबूत करती हैं।
