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हर साल की तरह इस साल भी राजस्थान के इस गांव में खेली गई गोला-बारूद और तलवारों से होली, जानिए 400 साल पुरानी इस परंपरा का रहस्य

 
हर साल की तरह इस साल भी राजस्थान के इस गांव में खेली गई गोला-बारूद और तलवारों से होली, जानिए 400 साल पुरानी इस परंपरा का रहस्य 

उदयपुर न्यूज़ डेस्क - उदयपुर के मेनार गांव के लिए जमराबीज का दिन खास होता है। इस बार होली के बाद 15 मार्च को जमराबीज बारूद की होली खेलेंगे। मेनार में नंगी तलवारों के साथ जाबारी गैर खेली जाएगी। इस ऐतिहासिक आयोजन के लिए मेनार को सजाया जा रहा है। 15 तारीख की रात मेनार के लिए बेहद खास होगी। उदयपुर-चित्तौड़गढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित मेनार गांव में 15 तारीख की रात आतिशबाजी के साथ बारूद की होली खेली जाएगी। इस आयोजन के लिए ग्रामीण पूरे गांव को रंग-बिरंगी रोशनी से सजा रहे हैं। उदयपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर मेनार गांव में इस पर्व को लेकर ओंकारेश्वर चौक में प्रतिदिन तलवारों के साथ गैर नृत्य किया जा रहा है। जिसमें कई युवा गैर नृत्य भी सीख रहे हैं। युवा और ग्रामीण तोप, तलवार, बंदूकों की सफाई और मरम्मत में जुटे हुए हैं। इस आयोजन को लेकर गांव में उत्साह और उमंग का माहौल है।

जानिए बारूद की होली का इतिहास
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि यह महाराणा अमर सिंह प्रथम के समय की एक ऐतिहासिक घटना से जुड़ी है। 1576 में हल्दीघाटी के युद्ध के बाद मेवाड़ के लोगों के मन में देशभक्ति की ऐसी लहर उठी कि हर गांव मुगल शासकों के खिलाफ उठ खड़ा हुआ। जगह-जगह मुगल चौकियां नष्ट होने लगीं। मुगलों की एक मुख्य चौकी ऊंटाला वल्लभगढ़ (वर्तमान वल्लभनगर) में स्थापित की गई, जिसकी उप चौकी इसी मेनार गांव में थी।

महाराणा प्रताप की मृत्यु के बाद मुगलों के आतंक से परेशान मेनार के मेनारिया ब्राह्मणों ने मुगल सेना को हटाने की रणनीति बनाई। एक दिन समाज के पंचों ने गुप्त बैठक बुलाकर इस चौकी को नष्ट करने की योजना तैयार की। करीब साढ़े चार सौ साल पहले होली के दूसरे दिन मेनारिया वीरों ने जमराबीज में मुगलों पर हमला किया। चैत्र सुदी द्वितीया, विक्रम संवत 1657 (ईस्वी सन् 1600) को मुगल चौकी नष्ट कर दी गई।उस समय महाराणा अमर सिंह ने मेनार के मेनारिया ब्राह्मणों को शाही लाल कालीन, रणबांकुरा ढोल, सिर पर कलंकी धरन, ठाकुर की उपाधि और मेवाड़ के 17वें उमराव की उपाधि दी थी। साथ ही आजादी तक गांव की 52 हजार बीघा जमीन पर लगान नहीं वसूला जाएगा।

अनोखी है तलवारों की गेर
मेवाड़ और मारवाड़ क्षेत्र में होली के अवसर पर लगभग सभी गांवों में लोकनृत्य गेर का आयोजन किया जाता है। यह फाल्गुन के पूरे महीने चलता है, लेकिन मेनार की गेर अन्य स्थानों से खास है, क्योंकि अन्य स्थानों पर लकड़ी की लाठियों से नृत्य किया जाता है, जबकि मेनार में ग्रामीण पारंपरिक वेशभूषा में सजकर तलवारों से यह गेर खेलते हैं।
इसमें यहां के युवा और ग्रामीण एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में लाठियां लेकर ओंकारेश्वर चौक के घेरे में नृत्य करते हैं। एक रात के लिए मेनार में युद्ध जैसा माहौल जीवंत हो उठता है, कहीं तोपें आग उगल रही होती हैं तो कहीं बंदूकों से बारूद बरस रहा होता है।
कार्यक्रम में इतिहास वाचन के बाद देर रात तक गेर नृत्य चलता है। फिर अंत में ग्रामीण आग का गोला घुमाते हुए तलवारबाजी करते हैं।