Aapka Rajasthan

रंगों से नहीं राजस्थान किस गांव में बारूद से खेली जाती है होली, इस रोचक परंपरा की वजह जानकर रह जाएंगे दंग

 
रंगों से नहीं राजस्थान किस गांव में बारूद से खेली जाती है होली, इस रोचक परंपरा की वजह जानकर रह जाएंगे दंग 

उदयपुर न्यूज़ डेस्क - देशभर में होली को रंगों के त्योहार के रूप में मनाया जाता है, लेकिन मेवाड़ में एक ऐसा गांव भी है जहां बारूद के विस्फोट के साथ होली खेली जाती है। 400 साल से भी ज्यादा पुरानी इस अनोखी परंपरा के पीछे की वजह जानकर आप हैरान रह जाएंगे। यह मुगलों पर मेवाड़ की जीत का जश्न है। यह जमरा बीज का खास दिन होता है और इस अनोखी परंपरा का पालन मेवाड़ के ऐतिहासिक गांव मेनार में होता है।

इस साल जमरा बीज उत्सव 15 मार्च को है
उदयपुर से 45 किलोमीटर और महाराणा प्रताप एयरपोर्ट डबोक से महज 25 किलोमीटर दूर स्थित मेनार गांव के ग्रामीणों ने जमरा बीज उत्सव की तैयारियां शुरू कर दी हैं। इस साल जमरा बीज उत्सव 15 मार्च को है। बर्ड विलेज के नाम से मशहूर मेनार गांव में धुलंडी के अगले दिन शौर्य की झलक और इतिहास की खुशबू बिखरती नजर आएगी। तलवारें लहराएंगी, वहीं बारूद के विस्फोटों से युद्ध के मैदान का नजारा उभरेगा।

मेवाड़ी वेशभूषा में नजर आएंगे योद्धा
पंडित मांगीलाल अमीटा बताते हैं कि मेनार में 13 मार्च को रात्रि 11.28 बजे होलिका दहन होगा। अगले दिन यानि 14 को धुलंडी मनाई जाएगी तथा 15 को जमरा बीज उत्सव मनाया जाएगा। इस दिन पांच हंस (मोहल्लों) के लोग ओंकारेश्वर चौक पर एकत्रित होंगे। मेनारवासी मेवाड़ी वेशभूषा में सजे योद्धाओं की तरह नजर आएंगे। ढोल की थाप पर मार्च करते हुए हवाई फायर तथा तोप के गोले दागे जाएंगे। मध्य रात्रि में तलवारों के साथ जबरी गेर खेली जाएगी। योद्धाओं की तरह पुरुष एक हाथ में खंडा तथा दूसरे हाथ में तलवार लेकर ढोल की थाप पर गेर नृत्य करेंगे।

मेवाड़वासी जमरा बीज में जरूर आते हैं
पंडित मांगीलाल अमीटा आगे बताते हैं कि आतिशबाजी के बीच तलवारों की खनक से माहौल युद्ध के मैदान जैसा हो जाता है। इसकी तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। देश के विभिन्न भागों और यहां तक ​​कि विदेशों में रहने वाले मेवाड़वासी दिवाली पर गांव न भी जाएं तो भी जमरा बीज पर आते हैं।

इतिहास के पन्नों से…
महाराणा प्रताप के अंतिम दिनों में जब मुगल सैनिकों ने पूरे मेवाड़ में जगह-जगह शिविर लगा रखे थे, तब मुगलों ने मेवाड़ को अपने अधीन करने की भरपूर कोशिश की, लेकिन महाराणा अमर सिंह प्रथम के नेतृत्व में मुगलों को हमेशा हार का सामना करना पड़ा। मुगलों की एक मुख्य चौकी ऊंटाला वल्लभगढ़ (वर्तमान वल्लभनगर) में स्थापित थी, जिसकी उप-चौकी मेनार में थी। महाराणा प्रताप की मृत्यु के बाद मुगलों के आतंक से परेशान मेनार के मेनारिया ब्राह्मणों ने मुगल सेना को हटाने की रणनीति बनाई। ओंकारेश्वर चबूतरे पर निर्णय लेकर ग्रामीणों ने मुगल चौकी पर हमला बोल दिया। युद्ध में मुगल सैनिक मारे गए। वह दिन विक्रम संवत 1657 (ईस्वी सन् 1600) चैत्र सुदी द्वितीया का था। युद्ध में मेनारिया ब्राह्मणों ने भी वीरगति प्राप्त की। मुगलों पर विजय की खुशी में महाराणा ने मेनार की 52 हजार बीघा भूमि पर लगान माफ कर दिया।मेवाड़ के तत्कालीन महाराणा अमर सिंह प्रथम ने गांववासियों को शाही लाल जाजम, नागौर के रणबांकुरा ढोल, सिर पर कलंगी, ठाकुर की उपाधि और 17वें उमराव की उपाधि वीरता के उपहार स्वरूप दी।