आखिर क्या है राजस्थान की ढूंढोत्सव क्या है? जानिए होली पर नवजात शिशुओं से इसका कनेक्शन

उदयपुर न्यूज़ डेस्क - होली का त्यौहार हर्षोल्लास और परम्पराओं से भरा होता है, जिसमें कई अनोखे अनुष्ठान किए जाते हैं। इन्हीं विशेष अनुष्ठानों में से एक है ढूंढोत्सव, जो नवजात शिशुओं की सुख-समृद्धि और निर्भयता के लिए किया जाता है। उदयपुर में श्रीमाली नवयुवक सेवा संस्थान की ओर से सामूहिक ढूंढोत्सव का आयोजन किया गया, जिसमें समाज के सैकड़ों लोगों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। नवजात शिशुओं के लिए शुभ अवसर
इस समारोह के दौरान 7 बालकों और 5 बालिकाओं का सामूहिक ढूंढोत्सव किया गया।
होली पर ढूंढोत्सव का आयोजन
आमतौर पर यह आयोजन बालकों के लिए किया जाता है, लेकिन श्रीमाली समाज में बेटियों के जन्म पर भी विशेष खुशी मनाई जाती है, इसलिए हर साल बालिकाओं के लिए भी यह आयोजन किया जाता है। कार्यक्रम में बच्चों के परिजन और समाज के गणमान्य लोग मौजूद रहे। संस्थान के अध्यक्ष प्रकाश श्रीमाली ने इस अवसर पर परम्परा और इसके महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस तरह के सामूहिक आयोजनों से समाज को एकजुट करने और कम खर्च में पारंपरिक अनुष्ठान करने में मदद मिलती है। उन्होंने बताया कि ढूंढोत्सव बच्चों के स्वास्थ्य, सुख, समृद्धि और निर्भयता के लिए किया जाता है, ताकि वे समाज में बिना किसी डर के आगे बढ़ सकें।
ढूंढोत्सव बच्चों के जन्म के बाद पहली होली पर आयोजित किया जाता है। परंपरा के अनुसार होलिका दहन के अवसर पर बुआ नवजात को गोद में लेकर उसकी परिक्रमा करवाती हैं और समाज के लोग लाठियां बजाते हैं, जिससे मान्यता है कि बच्चे का डर दूर हो जाता है और वह शोर से नहीं डरता। संस्थान के मुख्य सदस्य पंकज लतावत ने इस सफल आयोजन के लिए सभी कार्यकर्ताओं और उपस्थित लोगों का आभार जताया। उन्होंने कहा कि भविष्य में भी इस तरह के कार्यक्रम आयोजित होते रहेंगे। इस अवसर पर पारंपरिक भक्ति गीत भी गाए गए, जिसमें समाज की महिलाओं और बुजुर्गों द्वारा एक विशेष लोकगीत भी प्रस्तुत किया गया।
हरिया बाग रे हरिया बाग
वागा जा रे बागा जा
हरिया विच्चे तोर तुरंगी
जा विच वेव चंपा डाली
जू जू चंपा मोटा वेव
मारो बालक (नवजात शिशु का नाम) मोटा वेव