राजस्थान का एक ऐसा गांव जहाँ रंगों से नहीं गोला-बारूद से खेली जाती है होली, 500 सालों से चली आ रही है परम्परा

उदयपुर न्यूज़ डेस्क - होली के रंग देशभर में लोकप्रिय हो रहे हैं। रंगों के इस त्योहार को मनाने के लिए लोग काफी उत्साहित रहते हैं। अलग-अलग जगहों पर इसे मनाने का तरीका भी अलग-अलग होता है। ऐसे में आज हम आपको एक ऐसी होली के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे देखकर आपका दिमाग चकरा जाएगा। आपको याद होगा कि कुछ समय पहले एक फिल्म 'गोलियों की रासलीला' रिलीज हुई थी। राजस्थान के उदयपुर जिले में ऐसा सच में होता है, जहां होली रंगों से नहीं बल्कि गोलियों और बारूद से मनाई जाती है। इस दौरान रात भर तोपें गरजती हैं, आग उगलती हैं और लोग नाचने लगते हैं।
500 सालों से ऐसी होली मनाते हैं मेनारिया ब्राह्मण
करीब 500 सालों से चली आ रही यह परंपरा उदयपुर जिले के मेनार गांव की है। जहां होली के अगले दिन जमरा बीज पर गोलियों और बारूद के शोर के बीच इसे मनाया जाता है। इसकी कहानी बहादुरी और हार न मानने के दृढ़ संकल्प की कहानी है। यह मुगलों के सामने डटकर खड़े मेनारिया ब्राह्मणों की कहानी है।कहा जाता है कि मेवाड़ में महाराणा अमर सिंह के शासनकाल में मेनार गांव के पास मुगल सेना की चौकी थी, ग्रामीण चिंतित थे। पता चला कि मुगल सेना हमला करने की योजना बना रही है। ग्रामीणों को इसकी भनक लगने के बाद उन्होंने रणनीति बनाई और मुगल सेना को खदेड़ दिया। मेनारिया समुदाय की इस जीत का जश्न पूरा गांव मनाता है।
महिलाएं बम और गोले के बीच गीत गाती हैं
देर शाम को ग्रामीण पूर्व रियासत के सैनिकों की वर्दी, धोती-कुर्ता और कसुमल पाग पहनकर अपने घरों से निकलते हैं। वे अलग-अलग रास्तों से गांव के ओंकारेश्वर चौक पहुंचते हैं, तलवारें लहराते हैं और बंदूकों से गोलियां चलाते हैं, आतिशबाजी होती है। उसके बाद वहां मौजूद लोग योद्धाओं का अबीर-गुलाल से स्वागत करते हैं।देर रात तक बम दागे जाते हैं। ग्रामीण दो समूहों में बंटकर आमने-सामने खड़े होकर बम दागते हैं। इस दौरान महिलाएं सिर पर कलश रखकर वीरता के गीत गाते हुए निर्भीक होकर आगे बढ़ती हैं।