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CITY PALACE: उदयपुर का 'सिटी पैलेस', देश का दूसरा सबसे बड़ा किला, सैकड़ों साल बाद भी वैसा का वैसा

आपने देश भर में कई संग्रहालय देखे होंगे, जहां संस्कृति और विरासत को संरक्षित किया गया है,आज हम एक ऐसी ही विरासत की बात कर रहे हैं जो 1600 शताब्दी में बनी थी और आज भी उतनी ही खूबसूरती समेटे हुए है 
 
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आपने देश भर में कई संग्रहालय देखे होंगे। जहां संस्कृति और विरासत को संरक्षित किया गया है। आज हम एक ऐसी ही विरासत की बात कर रहे हैं जो 1600 शताब्दी में बनी थी और आज भी वैसी ही है। यह देश का दूसरा सबसे बड़ा किला है जो उदयपुर में स्थित है। इसे सिटी पैलेस के नाम से जाना जाता है। यहाँ के युवराज ने बताया कि कैसे इस अध्भुत विरासत की देखभाल की जाती है।

 एक विरासत -"सिटी पैलेस"

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उदयपुर के महाराजो  ने इसे एक के बाद एक बड़ा रूप दिया है। बड़ी बात यह है कि उनके वंशज अरविंद सिंह मेवाड़, शाही परिवार के सदस्य और उनके बेटे युवराज लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ इस विरासत को जारी रखे हुए हैं। सिटी पैलेस अपने आप में एक महान विरासत है, लेकिन इसके भीतर दो संग्रहालय हैं। पहला शाही परिवार का है और दूसरा सरकार का। दोनों जगहों पर एंट्री के लिए टिकट है।

प्रशिद्ध फिल्म शूटिंग स्पॉट 

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 सिटी पैलेस में बॉलीवुड की कई हिट फिल्मों की शूटिंग हुई है, जिनमें अभिनेता रणवीर सिंह की ये जवानी है दीवानी भी शामिल है। इतना ही नहीं, उदयपुर में हर साल औसतन दस लाख पर्यटक आते हैं और लगभग सभी पर्यटक इसे देखने जाते हैं। यह बात उलेखनीय है  कि संग्रहालय में मेवाड़ के सभी महाराणाओं के बारे में बताया गया है, खासकर महाराणा प्रताप के बारे में। महाराणा प्रताप जिनकी वीरता और शौर्य का पूरा देश सम्मान करता है। उनका बैटल सूट अभी भी यहां है जिसका वजन 35 किलो है। इसके अलावा संग्रहालय हल्दी घाटी के ऐतिहासिक युद्ध की दास्ताँ भी बयां करता  है।

जानिए युवराज लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने इस विरासत पर क्या कहा?

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जब उनसे पूछा गया कि मेवाड़ क्या है तो उन्होंने कहा कि मेवाड़ ने तूफानों से रुकना  नहीं सीखा है। उसने लाखों तलवारों के आगे झुकना नहीं सीखा है। यहां सिर कटने के बाद भी धड़ लड़ता है। मेवाड़ ने कभी खुदको बेचना नहीं सीखा। विरासत के बारे में उन्होंने कहा कि इसे संरक्षित करने के लिए हर दिन नए बदलाव किए जा रहे हैं। इस धरोहर को सँभालने के लिए लोगों से बात -चीत कर नए सुझाव जाने जा रहे है,कैसे  21वीं सदी में लोगों तक पहुंचने का बेहतर काम किया जाए। उन्होंने आगे बताया कि कई बार हम विरासत को इमारतों तक सीमित कर देते हैं, जबकी  हमारी भाषा भी हमारी विरासत होती है, तो इसे संरक्षित करना ही हमारा धर्म है ।