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राजस्थान के इस गांव में 400 सालों से चली आ रही ये अनोखी परंपरा, जहां पुरुष नहीं सिर्फ महिलाएं खेलती है होली

 
राजस्थान के इस गांव में 400 सालों से चली आ रही ये अनोखी परंपरा, जहां पुरुष नहीं सिर्फ महिलाएं खेलती है होली 

टोंक न्यूज़ डेस्क - टोंक जिले के नागर गांव में रियासत काल से चली आ रही 400 साल पुरानी परंपरा आज भी धूमधाम से मनाई जाती है। होली पर निभाई जाने वाली इस परंपरा में पूरा गांव भाग लेता है। इस साल भी धुलंडी के दिन पुरुष भोजन करने के बाद गांव के बाहर माताजी के मंदिर जाएंगे। महिलाएं बिना किसी संकोच और बिना किसी घूंघट या शर्म के होली खेलेंगी। इसके पीछे तत्कालीन राजा की सोच थी कि महिलाएं घूंघट में रहती हैं, उन्हें भी खुलकर होली खेलने का मौका दिया जाना चाहिए। तभी से राजा ने तय कर लिया कि इस दिन गांव में पुरुष नहीं रहेंगे।

अगर कोई पुरुष दिखाई देता है तो महिलाएं उसे कोड़ों से पीटती हैं। उस समय तय हुआ कि सभी पुरुष गांव से करीब 3 किलोमीटर दूर माताजी मंदिर जाएंगे। जहां वे समाज के उत्थान पर चर्चा करेंगे। वहीं महिलाएं पीछे से एक-दूसरे पर रंग और गुलाल लगाकर होली खेलेंगी। यह परंपरा करीब 400 साल से चली आ रही है। इस दौरान अगर कोई पुरुष गलती से भी गांव में दिख जाता है तो महिलाएं उसे कोड़ों से पीटती हैं। या फिर कान पकड़कर माफी मंगवाती हैं। ये दोनों ही सजाएं महिलाएं अपने स्तर पर तय करती हैं। पुरुष सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक बाहर रहते हैं।

महिलाओं की पर्दा प्रथा को देखते हुए लिया गया फैसला
नगर गांव की सरपंच किस्मत कंवर और उनके पति पूर्व सरपंच राजू सिंह ने बताया कि करीब चार-पांच सौ साल पहले हमारे पूर्वजों का राज था। उस समय पर्दा प्रथा थी। महिलाएं पर्दा प्रथा का पालन करती थीं। इस कारण महिलाएं धुलंडी जैसे खुशी के त्योहार से वंचित रह जाती थीं। ऐसे में करीब 400 साल पहले तत्कालीन महाराजा ने सोचा कि महिलाओं को भी धुलंडी का त्योहार स्वतंत्रतापूर्वक मनाने की अनुमति दी जानी चाहिए।इस कारण दरबार बुलाया गया और फैसला लिया गया कि धुलंडी के दिन सभी पुरुष गांव में नहीं रहेंगे। और सभी शाम तक गांव के बाहर ही रहेंगे। ताकि पर्दा प्रथा के कारण इस त्यौहार से वंचित महिलाएं भी बिना किसी लोक लाज के अपनी इच्छा अनुसार स्वतंत्र रूप से धुलंडी खेल सकें। तभी से गांव में यह परंपरा चली आ रही है।

गाजे-बाजे और लोकगीतों के साथ लोगों को करते हैं विदा
परंपरा के अनुसार धुलंडी के दिन छोटे बच्चों को छोड़कर सभी पुरुष गांव से करीब 3 किलोमीटर दूर चावंड माताजी के मंदिर में गाजे-बाजे और नृत्य के साथ जाते हैं। 10-12 साल के बच्चे अपनी माताओं के साथ रहते हैं।
महिलाएं लोकगीत गाकर लोगों को गोपालजी के मंदिर से संगीत और नृत्य के साथ विदा करती हैं। अपने समाज के पुरुष वहां समाज उत्थान के लिए बैठक करते हैं।
फिर दोपहर में वहां एक-दूसरे को गुलाल भी लगाते हैं। फिर शाम 4 बजे गाजे-बाजे और नृत्य के साथ गांव लौटते हैं। इससे पहले ही गांव की महिलाएं होली खेलने के बाद नहाने समेत अन्य काम कर लेती हैं।