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मेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस ने परिवार संग किए अक्षरधाम मंदिर के दर्शन, यहां जाने स्वामीनारायण अक्षरधाम का महत्व

 
मेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस ने परिवार संग किए अक्षरधाम मंदिर के दर्शन, यहां जाने स्वामीनारायण अक्षरधाम का महत्व

अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस अपनी पत्नी उषा वेंस और बच्चों के साथ भारत पहुंचे हैं। एयरपोर्ट पर केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने उनका पारंपरिक तरीके से स्वागत किया। उनके भारत आगमन के कई राजनीतिक और व्यापारिक मायने हैं। इससे दोनों देशों के बीच संबंध मजबूत होंगे। वेंस भारत आने के बाद अक्षरधाम मंदिर समेत कई ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक स्थलों का भ्रमण करेंगे। भारत आगमन के बाद उनके कई कार्यक्रम पहले से तय हैं।

वेंस पहुंचे अक्षरधामः सनातन धर्म और संस्कृति की मान्यता पूरी दुनिया में है। दिल्ली पहुंचने के बाद अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस सबसे पहले अपनी पत्नी और बच्चों इवान, विवेक, मीराबेल के साथ दिल्ली स्थित स्वामीनारायण अक्षरधाम मंदिर पहुंचे। वेंस यहां से अपने परिवार के साथ जयपुर के लिए रवाना होंगे। वहां वे कई ऐतिहासिक इमारतों का भ्रमण करेंगे। उपराष्ट्रपति जेडी वेंस यहां चार दिन रुकेंगे।

कब बना था अक्षरधामः स्वामीनारायण अक्षरधाम मंदिर का निर्माण पूरा होने के बाद 6 नवंबर 2005 को इसका उद्घाटन किया गया था। स्वामीनारायण एक हिन्दू संत और भगवान के अवतार थे, यह मंदिर कला और प्रदर्शनी की दृष्टि से बहुत आधुनिक है। इस मंदिर के निर्माण में 11000 से अधिक लोगों ने व्यक्तिगत रूप से भाग लिया था। इस मंदिर को बनाने में 5 साल से अधिक का समय लगा था। अक्षरधाम मंदिर में दो सौ से अधिक देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित हैं।

मंदिर की वास्तुकला: पंचरात्र शास्त्र के अनुसार, मंदिर की वास्तुकला बहुत ही अद्भुत और आकर्षक है। यह मंदिर संगमरमर और बलुआ पत्थर से बना है। इस मंदिर की नक्काशी प्राचीन मारू गुर्जर वास्तुकला के अनुसार की गई है। वास्तुकला से जुड़े छात्रों को इस मंदिर में बहुत कुछ सीखने को मिलता है।

अक्षरधाम मंदिर का महत्व और अनुयायी: समकालीन समय में, स्वामीनारायण के अनुयायी वे लोग थे जो देश में दलित और अछूत परंपराओं के शिकार थे। स्वामीनारायण के भक्त सभी धर्मों और जातियों से थे। जो स्वामीनारायण द्वारा दी गई शिक्षाओं से आकर्षित थे। स्वामीनारायण ने अपने संप्रदाय में कृष्ण या नारायण की पूजा की घोषणा की। स्वामीनारायण स्वयं एक कृष्ण भक्त थे। स्वामीनारायण ने गुणातीतानंद स्वामी को अपना पहला धार्मिक उत्तराधिकारी बनाया। स्वामीनारायण संप्रदाय दुनिया भर में 6 प्रमुख संप्रदायों में विभाजित है।