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Sriganganagar में इलिजारोव विधि से सफल हुआ हड्डी के जोड़ का दूसरा ऑपरेशन, मरीज हुआ ठीक

 
Sriganganagar में इलिजारोव विधि से सफल हुआ हड्डी के जोड़ का दूसरा ऑपरेशन, मरीज हुआ ठीक
श्रीगंगानगर न्यूज़ डेस्क, श्रीगंगानगर अनूपगढ़ निवासी रोगी दलीप का पांच माह पूर्व एक दुर्घटना में पैर की हड्डी टूट गई थी और घाव खुला होने से संक्रमण बढ़ गया था। हड्डी पिघल गई। जिला अस्पताल में चार घंटे की जटिल सर्जरी से दलीप के फ्रैक्चर को ठीक किया गया। खास बात यह रही कि हड्डी का ढाई इंच का हिस्सा निकालना पड़ा। इलाज की इलीजारोव पद्धति से हड्डी कटने से भी पैर छोटा नहीं होगा। दो दिन पहले डीएच के हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. सुमित पंसिया के नेतृत्व में टीम ने एक जटिल सर्जरी की। अब मरीज थोड़ा चलने लगा है। जिला अस्पताल में इलिजारोव पद्धति से सर्जरी का यह दूसरा मामला है।

पीएमओ डॉ. केएस कामरा ने बताया कि दिसंबर में हुए हादसे में दलीप के बाएं पैर की हड्डी एड़ी के ठीक ऊपर टूट गई थी. इससे पैर में खुला घाव हो गया। बीकानेर के पीबीएम अस्पताल में इलाज के दौरान खुला घाव होने के कारण एक्सटर्नल फिक्सेटर लगाया गया था। ताकि घाव सूखने पर सर्जरी की जा सके। रोगी ने उपचार का पालन नहीं किया, जिससे घाव सूख नहीं पाया और हड्डी में संक्रमण बढ़ गया। मवाद निकलने लगा। 24 मई को मरीज की चार घंटे सर्जरी की गई। इस टीम में हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. सुमित पेंसिया, डॉ. भारत भूषण जांगिड़, एनेस्थेटिस्ट डॉ. दीपक मोंगा, डॉ. राजेंद्र गर्ग, रेजिडेंट डॉ. दीपांशु मोदी, नर्सिंग ऑफिसर मनीष शर्मा, पृथ्वीराज, चिरंजीलाल, भूपेंद्र सिंह आदि शामिल थे.

जानिए क्या है इलिजारोव मेथड: रूस के मशहूर डॉक्टर गैवरिल ए. इलिजारोव ने इस मेथड का आविष्कार किया था। इसमें स्टील से बने कई छल्ले होते हैं। इसमें हड्डी को बाहर से फिक्स किया जाता है। इसका उपयोग टेढ़ी-मेढ़ी हड्डियों को सीधा करने, छोटी हड्डियों को लंबा करने और बौनेपन के इलाज में किया जाता है। यदि रोगी हड्डी के संक्रमण के कारण चलने-फिरने में लाचार हो गया हो तो ऐसी स्थिति में यह तकनीक उपयोगी होती है। अगर टूटी हुई हड्डी को किसी और तकनीक से न जोड़ा गया हो तो उस स्थिति में भी यह तरीका कारगर साबित होता है। टूटी हुई हड्डी को जोड़ने से कुछ ही दिनों में संक्रमण समाप्त हो जाता है।

1. हड्डी का बड़ा हिस्सा गला हुआ : मरीज की हड्डी का बड़ा हिस्सा गला हुआ था। संक्रमण गंभीर था क्योंकि कई दिनों से मवाद रिस रहा था। इससे हड्डी का ढाई इंच का हिस्सा गल गया था, जिसे काटकर निकालने में समय लगा। 2. नसों के कटने का था खतरा: एड़ी के ऊपर पिंडली के पास हड्डी फंसी हुई थी। यहाँ पेशी का हिस्सा था। इसे निकालने से हड्डी के गर्दन वाले हिस्से तक पहुंचने के दौरान नसें कटने का बड़ा खतरा रहता था। नस कट जाती तो परेशानी बढ़ सकती थी। आगे क्या... डॉ. सुमित पंसिया के मुताबिक, मरीज की सर्जरी के बाद ढाई इंच का गैप हो गया था। इसे भरने के लिए तीन एक्सटर्नल रिंग फिक्सेटर (स्क्रू) लगाए गए हैं। अगले एक से सवा महीने तक ये छल्ले नीचे की ओर बढ़ते रहेंगे। इससे हड्डी बढ़कर खाली जगह भर जाएगी। इससे मरीज का पैर छोटा नहीं होगा।