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राजस्थान में हरा पेड़ काटने वाले हो जाए सावधान, अब पहले से कई गुना ज्यादा बढ़ाया गया जुर्माना

 
राजस्थान में हरा पेड़ काटने वाले हो जाए सावधान, अब पहले से कई गुना ज्यादा बढ़ाया गया जुर्माना 

श्रीगंगानगर न्यूज़ डेस्क -  राजस्थान में वन विभाग ने हरे पेड़ों की अवैध कटाई के खिलाफ सख्त कार्रवाई करते हुए नए नियम लागू किए हैं। राज्यपाल के आदेश के तहत वन मंत्रालय ने जुर्माने की राशि में भारी बढ़ोतरी की है। पहले लकड़ी के अवैध परिवहन पर बाजार मूल्य से डेढ़ से दोगुना तक जुर्माना लगाया जाता था, लेकिन अब नए नियमों के तहत यह जुर्माना कई गुना बढ़ा दिया गया है।श्रीगंगानगर वन विभाग के अंतर्गत बहुत बड़ा वन क्षेत्र आता है, जहां हरे पेड़ों की अवैध कटाई एक गंभीर समस्या बन गई है। वन माफिया बड़े पैमाने पर पेड़ों को काटकर उनका अवैध परिवहन करते हैं और मुनाफा कमाते हैं। अब तक इनके खिलाफ नाममात्र की कार्रवाई होती थी, जिससे स्थानीय ग्रामीणों और पर्यावरण प्रेमियों में रोष था। लेकिन अब नए नियमों से इन पर प्रभावी अंकुश लगेगा।

4 लाख रुपये तक का भारी जुर्माना
अब वाहन के प्रकार के हिसाब से जुर्माने की राशि तय की गई है। पशु वाहन से लकड़ी का अवैध परिवहन करने पर 15 हजार रुपये और ट्रैक्टर-ट्रॉली या हाथगाड़ी से परिवहन करने पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। वहीं 25 लाख रुपये तक के वाहन में अवैध लकड़ी ले जाने पर 2 लाख रुपये और 25 लाख रुपये से अधिक कीमत के 5 साल पुराने वाहन पर 3 लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। अगर वाहन 25 लाख रुपये से अधिक कीमत का है और 5 साल से पुराना है तो 4 लाख रुपये तक का भारी जुर्माना लगाया जाएगा।

नहरों के किनारे हो रहा वनों का कटान
वन विभाग क्षेत्र में नहरों और उनके किनारों पर खड़े पेड़ों को सबसे ज्यादा निशाना बनाया जाता है। अनूपगढ़ ब्रांच नहर और संगीता माइनर जैसे क्षेत्रों में पिछले सालों में हरे पेड़ों की भारी कटाई हुई है, जिससे ये क्षेत्र वीरान होते जा रहे हैं। इससे न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है, बल्कि वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास भी नष्ट हो रहा है।

अब लकड़ी भी नहीं लौटाई जाएगी
वन विभाग के नए आदेशों के अनुसार अब अवैध रूप से पकड़ी गई लकड़ी को जुर्माना लगाकर नहीं छोड़ा जाएगा। पहले नियमों के तहत पकड़ी गई लकड़ी को जुर्माना देकर वापस कर दिया जाता था, जिसका सीधा फायदा वन माफिया को मिलता था और अवैध कटाई जारी रहती थी, लेकिन अब यह व्यवस्था खत्म कर दी गई है, जिससे वन माफिया की गतिविधियों पर सख्त नियंत्रण हो सकेगा।