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Sirohi ऐतिहासिक अचलगढ़ किले का जीर्णोद्धार हो तो पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी

 
Sirohi ऐतिहासिक अचलगढ़ किले का जीर्णोद्धार हो तो पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी
सिरोही न्यूज़ डेस्क,  सिरोही  पर्वतीय पर्यटन स्थल माउंट आबू के अचलगढ़ की ऐतिहासिक धरोहरें अपने संरक्षण की बाट जोह रही हैं। इनके रखरखाव के लिए कोई कारगर कार्य योजना तैयार नहीं होने से बेशकीमती खजाना विलुप्त होने के कगार पर है। जिससे आने वाली पीढ़ियों को गौरवशाली इतिहास सिर्फ किताबों में पढ़ने तक ही सीमित रह जाएगा।

यहां होती है भगवान शिव के अंगूठे की पूजा

अचलगढ़ में यूं तो कई प्राचीन मंदिर हैं, लेकिन यहां का अचलेश्वर महादेव मंदिर अन्य शिव मंदिरों से अलग पहचान रखता है। जहां भगवान शिव के अंगूठे की पूजा होती है। इसको लेकर एक किंवदंती प्रचलित है कि काशी विश्वनाथ ने जब अपना पैर पसारा तो उनका अगूंठा यहां तक आया था। उससे यहां तक गड्ढा हो गया। जिसे ब्रह्मा गड्ढा कहा जाता है। जिससे अंगूठे को पूजा जाता है। इसके अलावा भी कई प्राचीन आस्था स्थल विद्यमान हैं। जिनमें मंदाकिनी कुंड, भृगु आश्रम, भतृहरि की गुफा, चहुंमुखा आदेश्वर कुंतनाथ, शांति कुंड, मानसिंह समाधि, श्रावण-भादों कुंड, राजा गोपीचंद गुफा आदि कई दर्शनीय पौराणिक व धार्मिक महत्व के स्थल हैं। जिनके भी मरमत व विकास की जरूरत है।

रखरखाव की ओर नहीं ध्यान

यहां के ऐतिहासिक महत्व स्थलों के रखरखाव की ओर अब तक किसी का ध्यान नहीं गया। प्राचीन महाकाली मंदिर व गोपीचंद गुफा को जाने वाला मार्ग किसी पाषाण युग की स्मृति ताजा करवाने के लिए पर्याप्त है। पर्यटकों को इन आस्था स्थलों तक जाने के लिए कंटीले, पथरीले चट्टानी रास्ते से गुजरकर जाना पड़ता है। मंदाकिनी कुंड भी दुर्दशा का शिकार हो रहा है। इसकी जालियां एक-एक कर गायब होती जा रही हैं। इस दयनीय स्थिति के बाद भी प्रतिवर्ष लाखों पर्यटक अचलगढ़ का अवलोकन करते हैं। जानकारों के अनुसार अचलगढ़ स्थित घनी झाड़ियों व वृक्षों के मध्य साधु-संत, बैरागी, ऋषि-मुनि, तपस्वी आश्रम बनाकर अपनी धूणी रमाते, हवन वा धार्मिक अनुष्ठान करते थे। जिसके लिए तालाब में घी भरा रहता था, लेकिन घी को तीन राक्षस भैसों का रूप धारण कर चुरा लिया करते थे। तपस्वियों की समस्या समाधान के लिए तत्कालीन राजा आदिपाल ने उन पाड़ों रूपी राक्षसों को मार डाला। जिसकी याद में मंदिर के उत्तरी भाग में स्थित तालाब के किनारे आज भी तीन पाड़ों की पाषाण मूर्तियां विद्यमान हैं।

जर्जर हालत में है अचलगढ़ दुर्ग

किसी जमाने में शौर्य, बलिदान व जौहर के प्रतीक रहे ऐतिहासिक अचलगढ़ दुर्ग जर्जर हालत में हैं। इसके प्रवेश द्वार के दयनीय हालत में अवशेष रह गए हैं। इतिहासकारों के मुताबिक अचलगढ़ दुर्ग का निर्माण करीब सवत 900 में आबू के तत्कालीन शासक परमार वंशजों ने करवाया था। गणेश व हनुमान पोल नाम से दुर्ग के दो प्रमुख प्रवेश द्वार है। रखरखाव के अभाव में इसकी हालत भी जर्जर हो गई है। जिनके संरक्षण से पर्यटन को बढ़ावा मिलने के साथ माउंट आबू का गौरव बढ़ेगा।