खाटूश्यामजी मंदिर में कैसे और क्यों शुरू हुई निशान चढ़ाने की परंपरा ? देश ही नहीं विदेशी भी इस यात्रा में होते है शामिल
सीकर न्यूज़ डेस्क - राजस्थान में फाल्गुन माह में खाटू श्याम का लखमी मेला पूरे शबाब पर है। देश-विदेश से श्रद्धालु बाबा को खाटू श्याम निशान चढ़ा रहे हैं। आज हम आपको उस निशान की कहानी बताने जा रहे हैं जो खाटू धाम के मंदिर के शिखर पर 12 महीने लहराता रहता है। वो निशान जिसका नाम बाबा के खाटू धाम की तरह पूरी दुनिया में गूंजता है। साथ ही हम आपको बाबा श्याम के ऐसे भक्त के बारे में भी बताएंगे जिसने सूरजगढ़ के निशान को पूरी दुनिया में मशहूर कर दिया। इतना ही नहीं उसने ब्रिटिश हुकूमत को भी कड़ी टक्कर दी। खाटू श्याम मंदिर के शिखर पर चढ़ने वाला सूरजगढ़ का निशान हजारों श्रद्धालुओं के साथ खाटू के लिए रवाना हो गया है। निशान के साथ देश-विदेश से भी श्रद्धालु शामिल हुए हैं। सूरजगढ़ का खाटू से खास रिश्ता है। मुगलों का समय हो या अंग्रेजों का, जब भी मंदिर पर आक्रमण हुआ या खाटू में दर्शन रोकने की कोशिश की गई, सूरजगढ़ के श्याम भक्तों ने सभी का मुकाबला किया और दर्शन नहीं रुकने दिए।
कैसे शुरू हुई निशान चढ़ाने की परंपरा?
श्याम भक्त मोहन लाल इंदौरिया की मानें तो ब्रिटिश काल में बाबा श्याम के दरबार में आस्था का सैलाब देखकर अंग्रेजी हुकूमत ने खाटू मंदिर पर ताला लगा दिया था। तब एक भक्त मंगलाराम निशान लेकर खाटू पहुंचे। अपने गुरु गोरधनदास का आदेश पाकर उन्होंने बाबा श्याम का नाम लिया और ताले पर मोर पंख मारा तो ताला खुल गया। यह चमत्कार देखकर अंग्रेजी हुकूमत पीछे हट गई। दरअसल, अंग्रेज बाबा के दर्शन में बाधा उत्पन्न करना चाहते थे। लेकिन सूरजगढ़ के श्याम भक्त मंगलाराम ने ऐसा नहीं होने दिया और बाबा की शक्ति से अंग्रेजों को भागने पर मजबूर कर दिया। मान्यता है कि सूरजगढ़ निशान लेकर बाबा श्याम स्वयं चलते हैं। मंदिर समिति ने बाबा के मुख्य शिखर पर सूरजगढ़ का निशान चढ़ाने का निर्णय लिया, जो परंपरा आज भी कायम है। खाटू के श्याम दरबार में मुख्य शिखर पर सूरजगढ़ का निशान चढ़ाया जाता है। यह एकमात्र निशान है जो पूरे साल बाबा के मुख्य शिखर पर लहराता है।
सिर पर सिगड़ी लेकर 152 किलोमीटर पैदल चलती हैं महिलाएं
सूरजगढ़ के इस प्राचीन निशान के बारे में मान्यता है कि महिलाएं अपनी मन्नत लेकर इस निशान के आगे चलती हैं और सिर पर सिगड़ी रखती हैं। महिलाओं का कहना है कि वे बाबा श्याम से जो भी मांगती हैं, वह उन्हें मिल जाता है। निशान यात्रा में महिलाएं नाचते-गाते 152 किलोमीटर पैदल चलती हैं। बाबा के दरबार में सिगड़ी चढ़ाई जाती है। सूरजगढ़ पूरे देश का एकमात्र निशान है, जहां महिलाएं अपनी मन्नत पूरी होने पर बाबा श्याम को सिगड़ी चढ़ाती हैं और पूरे रास्ते सिगड़ी को सिर पर रखकर पदयात्रा पूरी करती हैं। ये महिलाएं पूरे रास्ते बाबा के भजनों पर नाचती-गाती भक्तिभाव से पहुंचती हैं।
निशान यात्रा में देश-विदेश से श्रद्धालु शामिल होते हैं। सूरजगढ़ के निशान के साथ ऐसे कई चमत्कार और इतिहास जुड़े हुए हैं। यही वजह है कि देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी श्याम भक्त इस निशान में शामिल होने के लिए सूरजगढ़ पहुंचते हैं। यह निशान फाल्गुन शुक्ल छठ और सप्तमी के दिन सूरजगढ़ से रवाना होता है और द्वादशी के दिन खाटूश्याम मंदिर के शिखर पर फहराया जाता है। इसके अलावा किसी अन्य ध्वज को खाटूश्याम मंदिर के शिखर पर स्थान नहीं मिलता है।
