Sawaimadhopur रणथंभौर में बाघ-बाघिन पहले से ही गंभीर बीमारी से पीड़ित, दो की मौत
केस-1 : लाडली के शावक को पिंजरे में रख करना पड़ा था उपचार
2015-16 में रणथम्भौर की बाघिन टी-8 यानी लाडली के शावक को मल त्याग करने में परेशानी का सामना करना पड़ा था। दरअसल शावक ने जंगली सूअर का शिकार किया था और जंगली सूअर के बाल बाघ के पेट में फंस गए थे। ऐसे में बाघ को मल त्याग करने में परेशानी हो रही थी। इसके बाद वन विभाग की ओर से शावक को तीन दिनों तक पिंजरे में उपचार किया था। इसके बाद शावक की जान बच सकी थी।
केस-2 : एरोहैड पहले भी हो चुकी है बीमार
बाघिन एरोहैड यानी टी-84 एक बार पहले भी बीमारी से जूझ चुकी है। पूर्व में 2020 के आसपास बाघिन के गले के पास ही कांटा लग गया था। लेकिन बाघिन की जीभ कांटे तक नहीं पहुंच पाने के कारण बाघिन को परेशानी हो रही थी और बाघिन के सेप्टिक होने की आशंका बनी हुई थी। हालांकि बाद में विभाग की ओर से बाघिन को ट्रेकुंलाइज कर बाघिन का उपचार किया गया था।
केस-3 : बीमारी से हुई थी टी-57 की मौत
इसी प्रकार बाघ टी-57 भी पूर्व में बीमारी से जूझकर अपनी जान गवां चुका है। बाघ को अचानक ही चलने फिरने में परेशानी होने लगी थी। इसके साथ ही बाघ को मल त्याग करने में भी लगातार दिक्कत हो रही थी। करीब पाच से छह दिनों के बाद बाघ ने दम तोड दिया था। बाद में बाघ की मौत का कारण कैंसर बताया गया था।
केस-4 : लाइटनिंग भी नहीं कर पा रही थी मल त्याग
कुछ कुछ प्रकार के ही हालात रणथम्भौर से अप्रेल 2018 कोटा के मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में शिफ्ट की गई बाघिन एमटी-4 यानी लाइटनिंग के साथ भी हुए थे। बाघिन को भी मल त्याग करने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। वन विभाग की ओर से बाघिन के उपचार के लिए रणथम्भौर से विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम को भी बुलाया गया था। लेकिन इसके बाद भी तमाम कोशिशों के बाद भी बाघिन को बचाया नहीं जा सका था।