रणथम्भौर के जंगलों में ‘वनस्पति कैंसर’ के कारण बाघों के अस्तित्व पर खतरा, जूली फ्लोरा बना जल-जमीन और वनों के लिए सबसे बड़ा खतरा
कहावत है कि बाग़ में बबूल बोओगे तो आम कैसे पाओगे... यानी अगर आपके आस-पास बबूल के पेड़ लगे हैं, तो आपको फल और छाया कैसे मिलेगी... अमरबेल की तरह जूली फ्लोरा या यूँ कहें जंगली बबूल ने रणथंभौर में ही नहीं, बल्कि शहरों और गाँवों की आबादी में भी जड़ें जमा ली हैं। यह जल, ज़मीन और जंगल को तबाह करके ख़तरनाक होता जा रहा है। कुल मिलाकर, जैव विविधता भी इसकी चपेट में आ रही है। शुष्क क्षेत्रों में हरियाली बढ़ाने और मृदा अपरदन को रोकने के उद्देश्य से रणथंभौर बाघ परियोजना में लगाया गया जूली फ्लोरा यहाँ के महत्वपूर्ण बाघ आवास क्षेत्र में कैंसर की तरह फैल रहा है।
8 से 10 प्रतिशत क्षेत्र में फैला
ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, रणथंभौर बाघ परियोजना के लगभग 8 से 10 प्रतिशत क्षेत्र में यह सघन हो गया है। यह जूली फ्लोरा न केवल स्थानीय वनस्पतियों को नष्ट कर रहा है, बल्कि बाघों और अन्य वन्यजीवों के लिए भी ख़तरा बन गया है। गहरी जड़ें जमा चुका जूली फ्लोरा अब पर्यावरण के लिए भी ख़तरा बन गया है। अगर इसे नियंत्रित नहीं किया गया तो यह राजस्थान की पारंपरिक वनस्पति, पशुपालन और जैव विविधता को गंभीर नुकसान पहुँचा सकता है।
प्रयोग बना संकट, मेक्सिको से इंग्लैंड और फिर भारत आया बीज
वन्यजीव विशेषज्ञ धर्मेंद्र खांडल ने बताया कि जूली फ्लोरा का बीज मेक्सिको से आया है। मेक्सिको के वनस्पतिशास्त्री इसे सबसे पहले इंग्लैंड ले गए। वहाँ इसे क्यू बॉटनिकल गार्डन में लगाया गया। इसके बाद भारत के जंगलों में इसे लगाने का काम शुरू किया गया। जानकारी के अनुसार, इसे लगाने का उद्देश्य मृदा अपरदन और रेगिस्तानी क्षेत्र को रोकने के साथ-साथ भूमि को उपजाऊ बनाना था, लेकिन हकीकत इसके उलट निकली।
सभी टाइगर रिजर्व चपेट में
वन विभाग के अनुसार, जूली फ्लोरा भरतपुर संभाग के रणथंभौर टाइगर रिजर्व के लगभग 10 हजार 400 हेक्टेयर, धौलपुर-करौली टाइगर रिजर्व के लगभग 30 हजार हेक्टेयर और घना पक्षी अभयारण्य के 800 हेक्टेयर वन क्षेत्र में फैला हुआ है। वहीं, बूंदी के रामगढ़ विषधारी और कोटा के मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व, पश्चिमी राजस्थान के आबू पर्वत, कुंभलगढ़, डेजर्ट नेशनल पार्क, अरावली सहित राज्य के अन्य अभयारण्यों में भी जूली फ्लोरा फैला हुआ है।
जानिए कितना खतरनाक है यह
-यह स्थानीय वनस्पतियों को नष्ट करके पौधों की वृद्धि को रोक देता है।
-इसकी जड़ें 30 मीटर की गहराई तक जाती हैं और भूजल को तेज़ी से सोख लेती हैं।
-इससे खासकर रेगिस्तानी इलाकों में पशुओं के चारे का संकट बढ़ गया है।
-यह मिट्टी की उर्वरता को कम करता है और जैव विविधता को नष्ट करता है।
कई वर्षों तक रखरखाव की आवश्यकता
जंगली बबूल किसी भी क्षेत्र में फैलकर वनस्पतियों को नष्ट कर देता है। इसलिए, इसे हर जगह से खत्म करने के प्रयास किए जा रहे हैं। हर जगह इसे उखाड़कर उसी जगह घास के मैदान विकसित किए जाते हैं। पौधे को उखाड़कर घास के मैदान विकसित करने के बाद भी, चार से पांच साल तक रखरखाव की आवश्यकता होती है। -अनूप के.आर., सीसीएफ, रणथंभौर बाघ परियोजना
