Rajsamand करीब एक दर्जन कुम्हार कर रहे घरों को रोशन करने की तैयारी
राजसमंद न्यूज़ डेस्क, राजसमंद आज के तकनीकी युग में बदलाव की बयार भले ही प्राचीन रीति-रिवाजों को पीछे छोड़ने पर आमादा हो, लेकिन आज भी माटी के एक छोटे से दीपक की लौ के आगे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की चकाचौंध के बाजार की चमक फीकी ही है। यही कारण है कि दीपावली की जगमग में परंपरागत मिट्टी के दीयों की मांग बरकरार है। दीपावली का त्योहार नजदीक आते ही कुहारों की उमीदों का चाक घूमना शुरू हो जाता है। कुंभकार नए-नए डिजाइन और आकार की मिट्टी के दीपक बनाना शुरू कर देते हैं ताकि दीपावली पर लोग के अपने घर को रोशन कर सकें। दीप पर्व पर मिट्टी के दीयों से घर को रोशन करने की परंपरा सदियों पुरानी है, जिसका अपना महत्व भी है। ऐसे में दीपावली के नजदीक आते ही देवगढ़ में कुहार समाज के करीब एक दर्जन परिवार दीपक बनाने के काम में तेजी से जुट हुए हैं। उन्हें उमीद है कि इस बार उनकी दिवाली भी रोशन रहेगी। मिट्टी के दीपक, मटकी आदि बनाने के लिए माता-पिता के साथ उनके बच्चे भी हाथ बंटा रहे हैं। कोई मिट्टी गूंथने में लगा है तो किसी के हाथ चाक पर मिट्टी के बर्तनों को आकार दे रहे हैं।
शगुन के तौर पर इस्तेमाल होने लगे हैं दीये
दीपावली में पारंपरिक तौर पर सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले मिट्टी के दिये आज भी अपनी रौनक बनाए हुए हैं। आज भी पारंपरिक तौर पर लोगों इलेक्ट्रिक उपकरणों से अधिक दीपक को अधिक महत्व देते हैं।
एक माह पहले से ही जुटना पड़ता है तैयारी में
कुंभकार गोरधन प्रजापत एवं लादूलाल प्रजापत ने बताया कि मिट्टी के दीपक बनाने के लिए करीब एक माह पहले से ही तैयारी में जुटना पड़ता है। दीपक सहित अन्य बर्तन बनाने के लिए दूर-दराज के गांवों से मिट्टी लाते हैं। उन्हें आकार देते हैं, फिर पकाते हैं। कई बार दीपक बेकार हो जाते हैं। दिन-रात वे मेहनत करते हैं। इनकी मेहनत तब साकार होती है, जब ज्यादा से ज्यादा लोग इनके तैयार किए गए मिट्टी के दीपक खरीदते हैं। एक दिन में एक व्यक्ति मिट्टी के करीब 100 से 150 दीपक बना लेता है, वहीं इलेक्ट्रिक मशीन से इसकी संया चार गुना बढ़ जाती है।
दीपावली व पूजा कार्य में है बड़ा महत्व
कुहार समाज के दिनेश प्रजापत ने बताया कि मिट्टी के दीपकों का दीपावली व पूजा कार्य में बड़ा महत्व होता है। ये पवित्र माने जाते हैं। मिट्टी से दीपक, मटका, घड़ा, करवा, गुल्लक सहित कई अन्य सामग्री तैयार होती है। कुहार समाज के त्रिलोक प्रजापत ने बताया कि घी से दीये जलाना अधिक शुभ माना जाता है। माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए लोग घरों व अपने प्रतिष्ठानों में इनका उपयोग जरूर करते हैं। मिट्टी के दीये में तिल व सरसों का तेल जलाने से किट-पतंगों का भी खात्मा होता है।