अरावली की गोद में बसा इतिहास का साक्षी, वीडियो में देखें कुंभलगढ़ किले की कहानी
राजस्थान न्यूज़ डेस्क , दुनिया की सबसे पुरानी भौगोलिक संरचना यानि की अरावली पर्वत श्रृंखला पर चर्चा करेंगे। आपकी जानकारी के लिए बता दें की अरावली श्रृंखला भारत की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला है, जो लगभग 870 मिलियन वर्ष पुरानी है। यह भारत में राजस्थान, हरियाणा और गुजरात के साथ-साथ पाकिस्तान में पंजाब और सिंध तक फैली हुई है।
560 किमी लंबी इस श्रृंखला में कुछ चट्टानी पहाड़ियाँ उत्तरपूर्वी राजस्थान से लेकर दिल्ली के दक्षिणी बाहरी इलाके तक फैली हुई हैं। रेंज का सबसे उत्तरी बिंदु हरियाणा के साथ दिल्ली की सीमा तक पहुंचता है, जबकि इसका दक्षिणी छोर अहमदाबाद के पास पालनपुर तक फैला हुआ है। यह पर्वत श्रृंखला प्राचीन भारत के सात पवित्र पर्वतों में से एक है और हिंदूकुश पर्वत की तरह, पारिजात वृक्ष की उपस्थिति के कारण इसे पारियात्र या पारिजात पर्वत के नाम से भी जाना जाता है। आईये आज के इस वीडियो हम आपको मिलाएं अरावली पर्वत श्रृंखला से जुड़े कुछ रोचक फैक्ट्स से
श्व की सबसे प्राचीन अरावली पर्वत श्रृंखला राजस्थान को उत्तर से दक्षिण तक दो भागों में विभाजित करती है। इसकी सबसे ऊंची चोटी सिरोही जिले में माउंट आबू में स्थित 'गुरुशिखर' है, जो लगभग 1727 मीटर ऊँची है। इस पर्वत श्रृंखला की विशेषता मुख्य रूप से दक्षिणी क्षेत्र में घने जंगल हैं, जबकि बाकि बचा हुआ क्षेत्र विरल, रेतीला और चट्टानी हैं। 10 से 100 किलोमीटर तक फैली अरावली पर्वतमाला की चोटियाँ और पर्वतमालाएँ आमतौर पर 300 से 900 मीटर की ऊँचाई तक पहुँचती हैं। उत्तरपूर्व से दक्षिणपश्चिम दिशा में दिल्ली से अहमदाबाद तक लगभग 800 किमी तक फैली अरावली पर्वत श्रृंखला का 80 प्रतिशत हिस्सा राजस्थान में स्थित है। दिल्ली में रायशेला पहाड़ी पर स्थित स्थित राष्ट्रपति भवन भी अरावली पर्वतमाला का ही एक हिस्सा है। मुख्य रूप से क्वार्ट्ज चट्टानों से बनी अरावली श्रृंखला सीसा, तांबा और जस्ता जैसे खनिज भंडार के लिए जानी जाती है। इस श्रेणी के भीतर कुछ उल्लेखनीय पहाड़ियों में उदयपुर के पास 'जग्गा हिल्स', अलवर के पास 'हर्षनाथ हिल्स' और दिल्ली के पास 'दिल्ली हिल्स' शामिल हैं।
अरावली पर्वत प्रदेश को मुख्य रूप से तीन प्रमुख उप-प्रदेशों में विभाजित किया जा सकता है, जिसमे दक्षिणी अरावली प्रदेश, मध्य अरावली प्रदेश और उत्तरी अरावली प्रदेश शामिल हैं।
दक्षिणी अरावली क्षेत्र की चर्चा करें तो इसमें सिरोही, उदयपुर और राजसमंद जिले शामिल हैं। इस क्षेत्र की विशेषता की बात करें तो इसके पहाड़ी इलाके, घने और ऊंचे अरावली पर्वतमाला इसके मुख्य हिस्से हैं। अरावली पर्वत श्रृंखला की कई सबसे ऊंची चोटियाँ यहाँ पाई जा सकती हैं, जिनमें गुरुशिखर पर्वत भी शामिल है, गुरुशिखर पर्वत 1722 मीटर की ऊंचाई के साथ राजस्थान की सबसे ऊँची चोटी है, यह सिरोही जिले के माउंट आबू क्षेत्र में स्थित है। इस क्षेत्र की अन्य उल्लेखनीय चोटियों में सेर, अचलगढ़, देलवाड़ा, आबू और ऋषिकेश शामिल हैं। उदयपुर-राजसमंद क्षेत्र की सबसे ऊँची चोटी जरगा पर्वत है जिसकी ऊँचाई 1431 मीटर है। क्षेत्र में अतिरिक्त पर्वतमालाओं में कुम्भलगढ़ 1224 मीटर, लीलागढ़ 874 मीटर, कमलनाथ पहाड़ियाँ 1001 मीटर और सज्जनगढ़ 938 मीटर की ऊंचाई के साथ शामिल हैं। उदयपुर के उत्तरपश्चिम में भोराट पठार है, जो कुम्भलगढ़ और गोगुंदा के बीच स्थित है।
मध्य अरावली क्षेत्र मुख्यतः अजमेर जिले में स्थित है। इसके अतिरिक्त, इस क्षेत्र में संकरी घाटियाँ, समतल क्षेत्र और पर्वत श्रृंखलाएँ भी शामिल हैं। अजमेर के दक्षिणपश्चिमी भाग में तारागढ़ है और पश्चिम में सर्पिल पर्वत श्रृंखलाएँ हैं जिन्हें नाग पहाड़ के नाम से जाना जाता है। ब्यावर तहसील के भीतर, अरावली पर्वतमाला में चार दर्रे हैं, जिन्हें बार, परवेरिया और शिवपुर घाट, सुरा घाट दर्रा और देबारी के नाम से जाना जाता है।
उत्तरी अरावली क्षेत्र जयपुर, दौसा और अलवर जिलों तक फैला हुआ है। इस विशेष क्षेत्र में, अरावली पर्वतमालाएँ एक सतत श्रृंखला बनाने की जगह तेजी से फैलती जाती हैं। इन श्रेणियों में शेखावाटी पहाड़ियाँ, तोरावती पहाड़ियाँ, जयपुर और अलवर पहाड़ियाँ शामिल हैं। इस क्षेत्र में पहाड़ियों की औसत ऊंचाई 450 से 750 मीटर तक है। इस राज्य की उल्लेखनीय ऊँची चोटियों में सीकर जिले में रघुनाथगढ़ 1055 मीटर, अलवर की बैराठ 792 मीटर और जयपुर की खो 920 मीटर की ऊंचाई के साथ शामिल हैं। अन्य प्रमुख चोटियों में 'जयगढ़', 'नाहरगढ़', अलवर किला और बिलाली भी शामिल हैं।
अरावली ने कैसे दिल्ली को बचाया रेगिस्तान बनने से
दिल्ली से गुजरात तक फैली अरावली की पहाड़ी प्रचंड और झुलसाती गर्मी और पश्चिम से आती रेगिस्तानी गर्म और जानलेवा हवाओं को दिल्ली-एनसीआर में सीधे आने से सदियों से रोकती आई है। अगर यह नहीं होता तो कब का दिल्ली भी राजस्थान की तर्ज पर 50 डिग्री को पार कर चुका होता। अरावली की वजह से एनसीआर का तापमान 6 से 8 डिग्री तक कम रहता है। पूर्व मौसम वैज्ञानिक डॉ. बीएल दत्तू कहते हैं ऊंचे पर्वतों पर धरती की सतह बहुत कम गर्म हो पाती है। धरती की सतह के बहुत कम ऊष्मा प्राप्त करने के कारण उसके द्वारा परावर्तित की जाने वाली ऊर्जा की मात्रा भी कम होती है। जिससे धरती की सतह से परावर्तित होने वाली दीर्घ तरंगों से ऊंचे पर्वतों का वायुमंडल भी अपेक्षाकृत कम गर्म हो पाता है। अरब सागर से आने वाली गर्मी की मानसून राजस्थान के ऊपर से गुजरती हैं पर नमी के विशाल भंडार को संजोए रखने के कारण यहां से गुजरने वाली हवाओं के तापमान में कमी आ जाती है।
अरावली पर्वत श्रृंखला में प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक संसाधन और खनिज हैं। अरावली पर्वतमाला पश्चिमी रेगिस्तान के विस्तार के खिलाफ बाधा के रूप में भी कार्य करती है। यह बाना, लूनी, सखी और साबरमती सहित कई प्रमुख नदियों के स्रोत के रूप में कार्य करती है। लौह अयस्क और मैंगनीज जैसे धात्विक खनिजों की उपस्थिति के कारण अरावली को खनिजों का भंडार कहा जाता है। इसके अतिरिक्त यह पर्वतमाला भील, गार्सी, कंजर, दामोर और कथोडी जैसी विभिन्न जनजातियों की शरणस्थली भी है। यह अरावली क्षेत्र के सभी राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों का भी घर है।
अरावली पर्वत श्रृंखला जहां एक और साधु-संतों के निवास स्थान के रूप में जानी जाती है, वहीं दूसरी और यह योद्धाओं की कर्मस्थली और धर्म, कला और संस्कृति के पोषक के रूप में भी काम करती है। इसके अलावा इसमें संगमरमर, ग्रेनाइट, टंगस्टन, कैल्साइट, चूना पत्थर और वोलास्टोनाइट जैसे खनिजों का विशाल भंडार है। इस पर्वत श्रृंखला का लगभग 31 प्रतिशत भूमि क्षेत्र वनों से ढका हुआ है, जो सालार, बबूल, ढोकरा, सिरस, तेंदू, खैर, कुमठा, बहेड़ा और बांस जैसे विभिन्न पेड़ों का घर है। यहां स्थित माउंट आबू अभयारण्य में पैंथर, भालू, जंगली सूअर, लंगूर, भेड़िये, लोमड़ी, सियार, खरगोश, जंगली मुर्गे, जंगली बिल्लियाँ, बिज्जू, तीतर, बटेर और बुलबुल सहित विविध वन्यजीवों का निवास है। जिले में आदिवासी गरासिया समुदाय की जीवंत संस्कृति उनकी रंगीन पोशाक, गीतों और नृत्यों में स्पष्ट होती है। यहां महिलाओं द्वारा सामूहिक रूप से किया जाने वाला वाला नृत्य विशेष रूप से प्रसिद्ध है। जिरावल प्राचीन जैन मंदिरों का घर है जो 2000 वर्ष से अधिक पुराने हैं । सिरोही के अन्य उल्लेखनीय मंदिरों में सारनेश्वर मंदिर, मीरपुर मंदिर और सर्वधर्म मंदिर शामिल हैं।
अरावली की पहाड़ियों में मिला इतिहास का खजाना
साल 2021 में अरावली की पहाड़ियों में शोधकर्ताओं को इतिहास का खजाना मिला था। पुरातत्व विभाग के मुताबिक अरावली की पहाड़ियों में 25 लाख साल पुरानी पाषाण युग की नक्काशी मिली थी। गुरुग्राम के सोहना के बादशाहपुर तेथर गांव में हाल ही में खोजे गए नए भित्तिचित्र और क्वार्टजाइट चट्टानों पर उकेरे गए इंसानों और जानवरों के हाथ और पैरों के निशानों के बाद इतिहास का एक और दरवाजा खुल गया है। पुरातत्वविदों की मानें तो ये पुरापाषाण काल या पाषाण युग के है। ये स्टोन एज साइट एक पहाड़ी के ऊपर है और मांगर से केवल 6 किलोमीटर दूर है, जहां पाषाण काल के गुफा चित्रों को 2021 में खोजा गया था। पत्थरों की ये नक्काशियां पुरानी लगती हैं और 25 लाख साल पुराने पुरापाषाण युग से लेकर 10,000 साल तक पुरानी हो सकती हैं। पुरातत्व विभाग ने अरावली की पहाड़ी इलाके में पुरापाषाणकालीन चित्रों की खोज का दावा वर्ष 2021 में फरीदाबाद के मांगर इलाके में 5,000 हेक्टेयर की खोज के बाद किया था। यहां की खोज में विभाग को शैलाश्रयों और उपकरणों के साथ कई गुफा चित्र मिले थे।
पुरातत्वविदों का दावा है कि जो ऐतिहासिक वस्तुएं खोज के दौरान मिलीं, उनमें कंकड़ और शल्क-आधारित उपकरण थे। इसका मतलब यह इशारा था कि यहां पत्थर के औजार बनते थे। कुल मिलाकर यह 'एच्युलियन' उद्योग मानकीकृत उपकरण-निर्माण की पहली परंपरा कही जा सकती है। 2 किलोमीटर के दायरे में फैली नवीनतम साइट की खोज हाल ही में एक इकोलॉजिस्ट और वन्यजीव शोधकर्ता सुनील हरसाना ने की थी । हरसाना ने पुरातत्व विभाग को पाषाण युग की नक्काशियों के बारे में बताते हुए इसकी गहन जांच किये जाने की सिफारिश की है। हाल ही में पुरातत्वविदों की एक टीम ने इसकी पुष्टि भी की और कहा कि ये चट्टानें वास्तव में पुरापाषाण काल की हैं और पत्थरों पर चित्र बनाने के लिए उपयोग किए जाने वाले कई उपकरण और औजार भी स्टोन एज साइट पर पाए गए। हरियाणा के पुरातत्व और संग्रहालय निदेशालय की उप निदेशक बनानी भट्टाचार्य ने कहा कि इससे हमें यह देखने का मौका मिलता है कि कैसे इंसानों ने शुरुआती औजार बनाए। अधिकांश नक्काशियां जानवरों के पंजे और इंसानों के पैरों के निशान की हैं।