Navratri 2022: आखिर क्यों मनाया जाता है नवरात्रि का त्योहार, जानें इसका इतिहास और महत्व
राजस्थान डेस्क, नवरात्रि (Navratri 2022) के त्यौहार पर मातारानी के अलग-अलग रूपों की उपासना इनके भक्त अपनी मन चाही मनोकामना पूरी करने के लिए करते हैं। तो आईये शुरू करते हैं नवराति के इतिहास (Navratri History) से, नवरात्रि शब्द संस्कृत के दो शब्दों से बना है जिसमे पहले शब्द ‘नव’ का अर्थ है नौ और दूसरे शब्द ‘रात्रि’ का अर्थ होता है रात। इसीलिए नवरात्रि के दौरान नौ दिन व रात तक देवी दुर्गा की पूजा करने के लिए नवरात्र को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता हैं। शायद आपको ये पता न हो लेकिन यह दुनियाभर में मनाए जाने वाले सबसे प्राचीन त्योहारों में से एक है, हर वर्ष यह नौ दिवसीय त्योहार साल में चार बार मनाया जाता है। साल में इतनी बार मनाई जाती है नवरात्रि
गृहस्थ लोगों के लिए नवरात्रि का त्यौहार साल में दो बार आता है। पहला नवरात्र चैत्र के महीने में होता है जिसके साथ हिंदू नव वर्ष की भी शुरुआत होती है, इसे चैत्र नवरात्रि भी कहा जाता है। वहीँ, दूसरी नवरात्रि आश्विन माह में आती है जिसे शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा जो लोग गृहस्थ नहीं है उनके लिए पौष और आषाढ़ के महीने में भी नवरात्रि का पर्व आता है, जिसे गुप्त नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन इस नवरात्रि में तंत्र साधना की जाती है, गृहस्थ और पारिवारिक लोगों के लिए सिर्फ चैत्र और शारदीय नवरात्रि को ही सबसे अच्छा माना गया है। दोनों तरह की नवरात्रि में मातारानी के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है, इस बार चैत्र नवरात्रि 26 सितंबर को सोमवार के दिन शुरू हो रही है। इस नवरात्रि के त्यौहार को 5 अक्टूबर तक मनाया जाएगा, इन दिनों में भक्तगण माता रानी को प्रसन्न करने के लिए व्रत आदि करते हैं।
नवरात्री पर्व के वैज्ञानिक महत्व (Navratri Importance)
शारदीय नवराति को मानाने के सिर्फ धार्मिक ही नहीं बल्कि कई वैज्ञानिक महत्व भी है। विज्ञानं की तरह से समझें तो ऐसा माना जाता है कि जिस मौसम में शारदीय नवरात्रि आती है उस समय हल्की-हल्की सी सर्दी पड़ना शुरू हो जाती है, बदलता मौसम लोगों के जीवन को प्रभावित न करे इसके लिए नवरात्रि के तौर पर नियम और संयम का पालन करते हुए 9 दिन का उपवास रखने का विधान पौराणिक काल से चला आ रहा है। नवरात्रि में शक्ति की आराधना करते हुए मौसम से बचने के लिए मानिसक और शारीरिक संतुलन प्राप्त करने का पर्व है। नवरात्रि में के व्रत रखकर उपासक मौसम के बदलाव को सहने के लिए खुद को ढाल कर मजबूत बनाता है।
नवरात्रि का त्योहार क्यों मनाया जाता है?
नवराति के दौरान मां दुर्गा के 9 रूपों की पूजा और आराधना की जाती ह। हालाँकि, नवरात्रि के व्रत का आरंभ कैसे हुआ इसके पीछे कई पौराणिक मान्यताएं चली आ रही हैं, अलग-अलग तबके नवरात्रि को लेकर अलग-अलग तरह की कहानियों पर विश्वास करते हैं। तो चलिए जानते हैं इससे जुड़ी मान्यताएं......
Navratri 2022: जाने क्यों मनाई जाती है नवरात्रि और क्या है इसका इतिहास और महत्व
भगवान श्री राम से जुड़ी मान्यता
पहली मान्यता के अनुसार रामजी के हाथों रावण का वध हो इस उद्देश्य से नारद जी ने भगवन श्रीराम से माता के सभी रूपों की आराधना के लिए इस व्रत का अनुष्ठान करने का अनुरोध किया था। तत्पश्च्यात, इस व्रत को पूर्ण करने के पश्चात रामजी ने लंका पर आक्रमण कर अंत में रावण का वध किया। तब से कुक लोग इस व्रत को कार्यसिद्धि के लिए करते आ रहे हैं।
महिषासुर नामक असुर से जुड़ी मान्यता
दूसरी मान्यता के पीछे छुपी एक प्राचीन कथा, जो शक्तिशाली राक्षस महिषासुर और देवी दुर्गा के बीच हुए महान युद्ध से जुड़ी हुई है। दरअसल, पौराणिक काल में महिषासुर नामक एक राक्षस ने अपनी घोर तपस्या से भगवान ब्रह्मा को अमरता का आशीर्वाद देने के लिए मजबूर कर दिया था। इस वरदान में महिषासुर ने यह भी मांगा कि उसे अगर कोई हरा सके तो वो बस एक महिला ही हरा सके। अपने अमरता के वरदान से उसने तीनों लोकों में त्राहि त्राहि मचा दी थी, सभी देवी देवता परेशान होकर भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश के पास सहायता के लिए गए।
देवताओं की प्रार्थना को सुनकर महिषासुर का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने एक महिला बनाने का फैसला लिया था, लेकिन किसी भी साधारण महिला द्वारा महिषासुर का अंत करना असंभव था। जिसके चलते देवता गण मदद के लिए फिर सर्वशक्तिशाली देवता शिव जी और सृष्टि के रचयिता विष्णु जी के पास गए। भगवान शिव और विष्णु जी ने अपनी समस्त शक्तियों का सार देवी के अंदर समाहित कर दिया। इसके बाद ब्रह्मांड के त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने देवी दुर्गा की रचना की, इसके बाद माँ दुर्गा ने हिषासुर से 15 दिनों तक युद्ध किया। हालाँकि, अपने प्राणों की रक्षा के लिए महिषासुर बार बार अपना रूप बदल रहा था, लेकिन अंत में जब उसने भैंसा रूप धारण किया, तब देवी दुर्गा ने उसके सीने पर वार करके उसे परास्त कर दिया। जिसके बाद से माता रानी की महिमा का बखान करने के लिए हर वर्ष नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।
नवरात्रि के बारे में अनजाने तथ्य (Navratri Facts)
बहुत कम लोग ही जानते हैं कि देवी दुर्गा भगवान शिव की पत्नी देवी पार्वती का ही एक अंश हैं। दिवाली कि तरह ही नवरात्रि का यह त्योहार भी बुराई पर अच्छाई का प्रतीक मानकर मनाया जाता है। नवरात्रि के पाव को भारत के अलग अलग राज्यों में विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है।
नवरात्र का अध्यात्मिक महत्व (Navratri Importance)
जग में जब-जब तामसी, आसुरी एवं क्रूर लोग प्रबल होकर, सात्विक, उदारात्मक एवं धर्मनिष्ठ सज्जनों को परेशान करते हैं, तब देवी धर्म कि संस्थापना के लिए अवतार धारण करती हैं। इसीलिए माता के निमित्त यह व्रत किया जाता है। नवरात्रि में मां दुर्गा की कृपा अन्य दिनों की तुलना में 1000 गुना अधिक बढ़ जाती है। देवीतत्त्व का अत्यधिक लाभ लेने के लिए नवरात्रि की कालावधि में श्री दुर्गादेव्यै नमः मंत्र का जप अधिक से अधिक करना चाहिए।
नवरात्रि में हर दिन होती हैं अलग माता के रूप कि पूजा
नवरात्रि का त्यौहार नौ दिनों तक मनाया जाता है, इस त्यौहार में पहले दिन से लेकर आखरी दिन तक हर दिन माता के एक अलग सवरूप की आराधना की जाती है, तो चलिए जानते इन सवरूपों के बारे में........
- नवरात्र के प्रथम दिन भक्त्त देवी शैलपुत्री की आराधना करते हैं।
- नवरात्र के दूसरे दिन भक्त्त देवी ब्रह्मचारिणी की आराधना करते हैं।
- नवरात्र के तीसरे दिन भक्त्त देवी चंद्रघंटा की आराधना करते हैं।
- नवरात्र के चौथे दिन भक्त्त देवी कुष्मांडा की आराधना करते हैं।
- नवरात्र के पांचवें दिन भक्त्त देवी स्कंदमाता की आराधना करते हैं।
- नवरात्र के छठे दिन भक्त्त देवी कात्यायनी की आराधना करते हैं।
- नवरात्र के सातवें दिन भक्त्त देवी कालरात्रि की आराधना करते हैं।
- नवरात्र के आठवें दिन भक्त्त देवी महागौरी की आराधना करते हैं।
- नवरात्र के नवमी दिन भक्त्त देवी सिद्धिदात्री की आराधना करते हैं।
Navratri 2022: जानिए कब से शुरू हैं नवरात्रि, कैसे करते हैं माता की स्थापना, जानिए
राजस्थान की मशहूर शक्ति पीठें/मंदिर
करणी माता मंदिर, बीकानेर, राजस्थान (Karni Mata, Bikaner, Rajasthan)
राजस्थान के बीकानेर से तकरीबन 30 किलोमीटर दूर स्थित माता करणी माता का ये मंदिर अपने अदभूत चमत्कारों के लिए जाना जाता है। करणी माता के इस मँदिर को चूहों वाला मंदिर या मूषक मंदिर के नाम से भी जाना जाता हैं। यहां भक्तों को चूहों का जूठा किया हुआ प्रसाद खिलाया जाता है। मां करणी को मां दुर्गा का अवतार माना गया है, साल 1387 में एक चारण परिवार में करणी माता का जन्म हुआ था। इनका बचपन का नाम रिघुबाई था, विवाह के बाद जब उनका मन सांसरिक जीवन से ऊब गया तो उन्होंने अपना पूरा जीवन देवी की पूजा और लोगों की सेवा में अर्पण कर दिया गया। 151 वर्ष तक जीवित रहने के बाद वह ज्योर्तिलीन हो गईं, इसके बाद भक्तों ने उनकी मूर्ति स्थापित करके पूजा करनी शुरू कर दी। करणी माता के इस मँदिर में तकरीबन 20 हजार चूहे हैं। माना जाता है कि यह करणी माता की संताने हैं, यह सुबह की मंगला आरती और शाम की संध्या आरती में जरूर शामिल होते हैं। यहां मां को चढ़ाने वाले प्रसाद को पहले चूहों को खिलाते हैं, इसके बाद भक्तों में बांटते हैं। नवरात्र में यहां खूब भक्त्त आते है और जमावड़ा लगता है।
शाकम्भरी माता, सांभर, राजस्थान (Shakumbhari Devi Temple, Sambhar Lake, Rajasthan)
राजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब 95 किलोमीटर दूर स्थित सांभर झील से लाखों टन नमक पैदा होता है। यहां पर स्थित प्रसिद्ध शाकम्भरी माता का मंदिर की सरे में काफी मान्यता मानी जाती है। देश में शाकम्भरी माता की तीन शक्तिपीठ है जिनमें से इसे सबसे पुरानी माना जाता है। इस मंदिर करीब 2500 साल से ज्यादा पुराना बताया जाता है। कहा जाता है कि शाकम्भरी माता के श्राप से यहां बहुमूल्य सम्पदा नमक में बदल गई थी। शाकम्भरी माता चौहान वंश की कुलदेवी है लेकिन, माता को अन्य कई धर्म और समाज के लोग पूजते है। इन परिवारों में विवाह, बच्चे का जन्म जैसे शुभ कार्य होने पर यहां ढोक लगाने आते है।
कैला मैया मँदिर, करोली, राजस्थान (Kaila Devi Temple, Karoli, Rajasthan)
राजस्थान के करौली स्थित कैला मैया के मंदिर की मान्यता दूर—दूर तक है। चैत्र और अश्विनी मास के नवरात्रों में यहां लक्खी मेले आयोजित होते हैं। इस मंदिर में दो प्रतिमाएं है। कैला मैया की प्रतिमा को चेहरा तिरछा है। मंदिर को निर्माण 1600 ईस्वी में राजा भोमपाल सिंह ने करवाया था। मान्यता है कि भगवान कृष्ण की बहन योगमाया जिसका वध कंस करना चाहता था, वे ही कैला देवी हैं। प्राचीन काल में नरकासुर नामक राक्षस का वध माता दुर्गा ने कैला मैया के रूप मे अवतार लेकर किया था। यहां आने वाले भक्त माता को प्रसन्न करने के लिये लांगुरिया के भजन गाते हैं।
त्रिपुर सुंदरी मंदिर, बांसवाड़ा, राजस्थान (Maa Tripura Sundri Temple, Banswara, Rajasthan)
राजस्थान के बांसवाड़ा में स्थित त्रिपुर सुंदरी मंदिर की खासियत माता की अट्ठारह भुजाओं वाली काले पत्थर से बनी मूर्ति है। हर हाथ में कोई न कोई अस्त्र है। माता के चरणों में यन्त्र है और आधार में कमल भी एक तांत्रिक यन्त्र है। मुख्य प्रतिमा के साथ नवदुर्गा और चौसठ योगिनियों की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। माना जाता है कि यह मंदिर कनिष्क के शासन काल से भी पहले का है।
जीण माता मंदिर, सीकर, राजस्थान (Jeenmata Temple, Sikar, Rajasthan)
राजस्थान के सीकर (Sikar) में स्थित जीण माता का मंदिर भक्तों की आस्था का प्रमुख केन्द्र है। आसोज और चैत्र नवरात्रों में यहां भारी भीड़ रहती है। यहां पर सैकड़ों साल पुराना माता का मंदिर है। माता के कई चमत्कार यहां प्रसिद्ध है। एक बार औरंगजेब ने यहां मंदिर तोड़ने की कोशिश की तो उसकी सेना पर भंवरों ने हमला बोल दिया और सेना को उलटे पांव भागना पड़ा। लोक मान्यताओं के अनुसार जीण का जन्म चौहान वंश के राजपूत परिवार में हुआ। उनके भाई का नाम हर्ष था जो बहुत खुशी से रहते थे। एक बार जीण का अपनी भाभी के साथ विवाद हो गया और इसी विवाद के चलते जीन और हर्ष में नाराजगी हो गयी। इसके बाद जीण आरावली के 'काजल शिखर' पर पहुँच कर तपस्या करने लगीं। बाद में इन्हें देवी के रूप मैं पूजा जाने लगा।