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Pratapgarh देवगढ़ का राजमहल धर्म और वीरता की कहता है कहानी

 
Pratapgarh देवगढ़ का राजमहल धर्म और वीरता की कहता है कहानी 

प्रतापगढ़ न्यूज़ डेस्क, जिला मुख्यालय से 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित देवगढ़, जो कभी देवलिया के नाम से जाना जाता था, इतिहास और पुरातत्व के कई रहस्य समेटे हुए है। यहां का शाही महल आज भी उस युग की भव्यता को दर्शाता नजर आता है। इसके साथ ही इसके चारों ओर बने मंदिर, तालाब और बावड़ियाँ अपने ऐतिहासिक महत्व को स्वयं बयां करते हैं। महल के मुख्य द्वार के सामने स्थित मंदिर और उसके चारों ओर बनी छतरियाँ इसकी भव्यता को और बढ़ाती हैं। सरकार ने इस महल के महत्व को नहीं समझा, जिसके कारण यह धीरे-धीरे अपनी चमक खोता जा रहा है। वर्ल्ड हेरिटेज डे के मौके पर भास्कर ने इस महल की 200 मीटर की ऊंचाई से ड्रोन से फोटो खींची है। महाराणा कुम्भा के वंशज महारावल सूरजमल ने पारिवारिक विवाद के बाद अपनी अलग राजधानी बनाने के लिए उपयुक्त स्थान की तलाश में देवलिया को चुना था।

देवगढ़ (देवलिया) के राजकुमार महारावल सूरजमल, बाबर के विरुद्ध राणा सांगा की सेना के साथ आये थे। चित्तौड़गढ़ के महाराणा सांगा से उनके बहुत अच्छे संबंध थे। जब राणा सांगा अपनी सेना के साथ खानवा के मैदान में बाबर के विरुद्ध पहुंचे तो इस सेना में देवलिया के राजकुमार बाघ सिंह भी शामिल थे। देवगढ़ को राजधानी बनाने तथा धार्मिक नगरी के रूप में विकसित करने का श्रेय सूरजमल को जाता है। आज भी खंडहर हो चुके देवगढ़ में दूर से भव्य मंदिर दिखाई देते हैं।