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Pali अफसर बने किसान, रिटायरमेंट के बाद खेती में आजमा रहे हाथ

 
Pali अफसर बने किसान, रिटायरमेंट के बाद खेती में आजमा रहे हाथ

पाली न्यूज़ डेस्क, पाली ये सच ही है कि हमारे देश की आत्मा गांवों में बसती है और जो सुकून गांव की मिट्टी में मिलता है, वह शायद ही कहीं और मिले। यही सोच सेवानिवृत हो चुके उच्च अधिकारियों को फिर से अपने गांवों की ओर खींच रही है। इतना ही नहीं, यह पीढ़ी फिर से खेत-खलिहानों में जुट गई है, ताकि खेती - किसानी को नए दौर में फिर से उभारा जा सके। यहां कई ऐसे अधिकारी है खेतों में नवाचारों के जरिए नई फसलों को उगा रहे हैं और दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। इससे इन्हें सुकून तो मिल ही रहा है, परंपरागत खेती कर रहे किसानों के लिए भी मिसाल बन रहे हैं।

छह साल पहले रिटायर्ड हुए आइएएस, उगा रहे इजरायली खजूर

ऐसा ही एक उदाहरण पाली तहसील के रूपावास गांव के सिद्धार्थसिंह चारण का, जो वेस्ट बंगाल कैडर से रिटायर्ड होने के बाद अपने गांव की ओर लौट आए हैं। वेस्ट बंगाल कैडर के सीनियर आइएएस रह चुके सिद्धार्थ सिंह का 1983 में चयन हुआ था। 2018 में सेवानिवृत हो गए। तत्पश्चात उन्होंने खेतों की ओर ध्यान देना शुरू कर लिया। उन्होंने खजूर की खेती शुरू की और पहले ही प्रयास में अच्छी पैदावार ली थी। तब इन्होंने खजूर के 500 पौधे मादा के व 15 पौधे नर के सब्सिडी पर खरीदे थे। नवाचार के जरिए छह हैक्टेयर खेत में ये पौधे लगाकर तीन साल तक देखरेख की। वर्तमान में गेहूं, बाजरा, मूंग, मोठ, जीरा व रायडा़ की परंपरागत खेती के साथ ही इजरायली बरही खजूर की खेती भी कर रहे हैं, जिससे वे सालाना अच्छी कमाई कर रहे हैं। अच्छी बात ये है कि इस खजूर को बेचने के लिए इन्हें कहीं नहीं जाना होता, बल्कि भीनमाल, जालोर, जयपुर के साथ ही जामनगर व अहमदाबाद से ही इनके पास लोग पहुंच जाते हैं और खजूर खरीद लेते हैं।

पाली जिले के निमाज के समीपवर्ती गरनिया के उम्मेदसिंह उदावत एसीबी में डीवाइएसपी थे। 2002 में वीआरएस लेने के बाद इन्होंने ज्वलेरी बिजनेस में हाथ आजमाया और जयपुर में अच्छा नाम कमाया। सवा साल पहले उन्होंने अपने गांव की ओर रुख कर लिया। उनका मानना है कि अगली पीढ़ी को महत्ता बताने के लिए ही इन्होंने खेती-बाड़ी में हाथ आजमाना शुरू किया। हालांकि, पहले तो इन्हें दिक्कत आई, लेकिन इनके हौसलों के आगे मुश्किलें टिक नहीं पाई। पहले चरण में इन्होंने खेत की मिट्टी की टेस्टिंग करवाई। पीएचक्यू लेवल सही करवाने पर फोकस किया, फिर उसके अनुरूप फसलों को चुना। इतना ही नहीं, सिंचाई के लिए खेत तलाई भी बनवा दी। माइक्रो फार्मिंग पर फोकस कर रहे उदावत ने करीब 40 बीघा जमीन में से दस बीघा में सौंफ की खेती कर रखी है तो 30 बीघा में जीरे की फसल उगाई है। ये रोबोटिक खेती की प्लानिंग के साथ ही बैलून बेस्ड ड्रिप सिंस्टम की कवायद में भी जुटे हुए हैं, जिससे आधुनिक पीढ़ी भी कुछ सीख ले सके।