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Pali चिलबिल के पौधे वाली जगह पर डॉक्टर नहीं चलने की दे रहे सलाह

 
Pali चिलबिल के पौधे वाली जगह पर डॉक्टर नहीं चलने की दे रहे सलाह
पाली न्यूज़ डेस्क, पाली प्रदूषण और धूम्रपान के अलावा चिलबिल के पराग के कारण भी जिले में लोग अस्थमा से पीड़ित हो रहे हैं। इसका मतलब है कि चिलबिल के पराग यहां की हवा में घुल गए हैं। मरीजों की सांस की नली सिकुड़ने के साथ सूज गई है। सांस लेने में दिक्कत, सांस फूलना, लंबी खांसी और सीने में जकड़न की समस्या हो रही है। कई मरीजों को सांस लेते समय सीटी जैसी आवाज सुनाई दे रही है। चिलबिल पराग के कारण होने वाले एलर्जिक अस्थमा को लेकर जयपुर के अस्थमा भवन में पराग काउंटर मशीन लगाकर अध्ययन किया गया। सुबह और शाम के समय हवा में इसकी मौजूदगी सबसे ज्यादा पाई गई। इसके बाद पाली मेडिकल कॉलेज में पल्मोनरी विभाग के एचओडी डॉ. लक्ष्मण सोनी ने अपने स्तर पर एलर्जिक जांच कराई। इसमें 10 प्रतिशत अस्थमा रोगियों में चिलबिल पराग से होने वाले अस्थमा की पुष्टि हुई। इसके चलते लोगों को बांगड़ कॉलेज के साथ बगीचों में जहां चिलबिल के पौधे लगे हैं, उन क्षेत्रों में न घूमने की सलाह दी जा रही है।

बांगड़ अस्पताल के श्वास विभाग की 150 रोगियों की ओपीडी में प्रतिदिन 25 रोगी अस्थमा के निकल रहे हैं। इनमें से 8 से 10 रोगी अस्थमा अटैक से पीड़ित हैं। इसमें अस्थमा एलर्जी के रोगी में जब अस्थमा के लक्षण बढ़ने लगते हैं, तो उसे अस्थमा अटैक आ जाता है। दो साल पहले तक 12 से 15 रोगी ही आते थे, एलर्जिक इंफेक्शन के चलते संख्या दोगुनी हो गई है। प्रदूषण के साथ-साथ अस्थमा चिलबिल पराग से भी होता है। मैंने एलर्जिक टेस्ट कराकर अध्ययन किया है, जिसमें 10 प्रतिशत रोगियों में चिलबिल पराग से होने वाले अस्थमा की पुष्टि हुई है। जिन क्षेत्रों में चिलबिल के पेड़ लगे हैं, वहां न घूमने की सलाह दी गई है। डॉ. लक्ष्मण सोनी, एचओडी, पल्मोनरी विभाग अस्थमा का एकमात्र इलाज बचाव है अस्थमा लंबे समय तक चलने वाली सांस की बीमारी है। ऐसे मरीजों को एलर्जी वाली चीजों से दूर रहना चाहिए। अगर हार्ट, किडनी और डायबिटीज की समस्या है तो ऐसे लोगों के लिए टीकाकरण जरूरी है। - डॉ. ललित शर्मा, वरिष्ठ विशेषज्ञ, पल्मोनरी विभाग