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शिक्षा में एकीकृत व्यवस्था से सुधरेगी गुणवत्ता, विकसित भारत का लक्ष्य होगा आसान: अनिल सहस्रबुद्धे

नई दिल्ली, 18 दिसंबर (आईएएनएस)। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने संसद में 'विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक, 2025' प्रस्ताव प्रस्तुत किया। सदन ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री के इस प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान की है। इसके अंतर्गत उच्च शिक्षा, अनुसंधान तथा वैज्ञानिक और तकनीकी संस्थानों में समन्वय और मानकों का निर्धारण सुनिश्चित किया जाएगा।
 
शिक्षा में एकीकृत व्यवस्था से सुधरेगी गुणवत्ता, विकसित भारत का लक्ष्य होगा आसान: अनिल सहस्रबुद्धे

नई दिल्ली, 18 दिसंबर (आईएएनएस)। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने संसद में 'विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक, 2025' प्रस्ताव प्रस्तुत किया। सदन ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री के इस प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान की है। इसके अंतर्गत उच्च शिक्षा, अनुसंधान तथा वैज्ञानिक और तकनीकी संस्थानों में समन्वय और मानकों का निर्धारण सुनिश्चित किया जाएगा।

एक तरफ जहां केंद्र सरकार इस विधेयक के फायदे गिना रही है तो वहीं विपक्ष सरकार पर हमलावर है। इस बीच प्रोफेसर अनिल सहस्रबुद्धे (राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (एनएएसी) की कार्यकारी समिति के अध्यक्ष) ने इस विधेयक पर अपनी प्रतिक्रिया दी।

प्रोफेसर अनिल सहस्रबुद्धे ने आईएएनएस से बातचीत करते हुए कहा कि विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक 2025 विकसित भारत की नींव है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूरा देश यह देख रहा है कि अगले 22–23 वर्षों में हमें क्या-क्या करना है। इसके लिए शिक्षा सबसे जरूरी है, जिसके जरिए भारत को विकसित बनाया जा सकता है।

अनिल सहस्रबुद्धे ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति से ही इस विधेयक को लिया गया है। इसमें यह विचार है कि अलग-अलग नियामक संस्थाओं को एक साथ लाकर एक सिंगल फ्रेमवर्क तैयार किया जाए। उन्होंने कहा कि अगर एक सिंगल वर्टिकल बॉडी होगी, जिसके जरिए सभी पाठ्यक्रमों को एक साथ मंजूरी मिले, तो यह बेहतर होगा।

उन्होंने बताया कि एआईसीटीई, यूजीसी, एनसीटीई और काउंसिल ऑफ आर्किटेक्चर जैसी संस्थाएं अलग-अलग काम करती हैं। हर संस्था मानक तय करती है, जैसे कॉलेज की जमीन कितनी होनी चाहिए, बिल्डिंग कितनी बड़ी होनी चाहिए, कितनी वर्कशॉप होनी चाहिए, लेकिन कई बार इन संस्थाओं के नियमों में आपसी विरोधाभास होता है, जिससे विश्वविद्यालयों को परेशानी होती है।

उन्होंने कहा कि अगर एक ही संस्था सब कुछ संभाले तो यह मुश्किल हो सकता है। इसलिए लोग कहते हैं कि सब कुछ केंद्रीयकरण हो रहा है, लेकिन ऐसा नहीं है। यह उल्टा विकेंद्रीकरण है। अभी तक यूजीसी सभी काम करती थी, लेकिन अब नई व्यवस्था में एक संस्था शिक्षा के मानक तय करेगी, दूसरी संस्था उसकी निगरानी करेगी और तीसरी यह देखेगी कि शिक्षा सही तरीके से दी जा रही है या नहीं।

अनिल सहस्रबुद्धे ने कहा कि अगर नियमों का सही तरीके से पालन किया जाए तो यह व्यवस्था सुविधाजनक होगी और सभी तरह की मंजूरी एक ही जगह से मिल सकेगी। यह विधेयक अच्छा है। इससे एक तरफ शिक्षण संस्थाओं को एक ही जगह जाना पड़ेगा और दूसरी तरफ छात्रों को बेहतर गुणवत्ता की शिक्षा मिलेगी।

उन्होंने यह भी कहा कि यह विधेयक उन संस्थाओं पर लागू होगा जो शिक्षा मंत्रालय के अधीन आती हैं, जैसे इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट, आर्किटेक्चर, शिक्षक प्रशिक्षण और यूजीसी के अंतर्गत आने वाली सामान्य शिक्षा। अधिकतर कॉलेज, जैसे आर्ट्स, कॉमर्स और साइंस, जो विश्वविद्यालयों से संबद्ध हैं, उन्हें भी इसी दायरे में लाया जाएगा। इसके अलावा, केंद्रीय विश्वविद्यालय भी शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत आते हैं। आईआईटी, एनआईटी और आईआईएम जैसी संस्थाओं के अच्छे गुण बाकी संस्थाओं तक भी पहुंचने चाहिए।

उनका कहना है कि अगर आईआईटी, एनआईटी और आईआईएम जैसी संस्थाएं अपने अच्छे अनुभव और कामकाज राज्य के शैक्षणिक संस्थानों से साझा करें, तो वे भी अपनी गुणवत्ता में सुधार कर सकेंगी।

उन्होंने कहा कि हर शैक्षणिक संस्था को अपनी वेबसाइट पर छात्रों के लिए सभी जरूरी जानकारियां देनी चाहिए। इससे भरोसा बढ़ता है। जो गलत काम करेंगे, उन पर कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन जो सही तरीके से अपने विश्वविद्यालय या विद्यालय चला रहे हैं, उन्हें किसी तरह की चिंता करने की जरूरत नहीं है।

--आईएएनएस

एएमटी/डीकेपी