रहस्यों से भरा है छाया सोमेश्वर मंदिर, शिवलिंग के पीछे दिखती है मनुष्य की परछाई!
नई दिल्ली, 26 दिसंबर (आईएएनएस)। देशभर में कई ऐसे मंदिर हैं, जो अपने चमत्कारों और रहस्यों के लिए जाने जाते हैं। कुछ मंदिरों में कपाट बंद हो जाने के बाद मंदिर की तरफ देखना भी मना होता है, तो कुछ मंदिरों में भगवान स्वयं प्रकट होते हैं।
तेलंगाना में भी एक ऐसा मंदिर मौजूद है, जहां भगवान शिव के पीछे मनुष्य के जैसी दिखने वाली रहस्यमयी परछाई देखने को मिलती है। ये परछाई किसकी है और कैसे दीवार पर अंकित होती है, ये रहस्य आज भी बना हुआ है।
तेलंगाना के नालगोंडा जिले स्थित पनागल गांव में भगवान शिव को समर्पित चमत्कारी सोमेश्वर मंदिर है, जहां भक्त भगवान शिव के दर्शन के साथ-साथ गर्भगृह में मौजूद परछाई देखने के लिए आते हैं। ये परछाई भक्तों के अलावा, आतुंगों को भी आकर्षित करती हैं। ये रहस्यमयी परछाई 1000 साल पुरानी वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण मात्र नहीं है, बल्कि मंदिर उन्नत वैज्ञानिक ज्ञान का जीता-जागता प्रमाण है।
मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव का शिवलिंग है। शिवलिंग के पीछे दीवार पर मनुष्य की आकृति जैसी परछाई दिखती है, जो हिलती तक नहीं है। वह सदैव एक ही अवस्था में स्थिर रहती है और उसमें किसी तरह का कोई बदलाव नहीं होता है। खास बात ये भी है कि परछाई बनाने में सहयोग करने वाली कोई वस्तु गर्भगृह में मौजूद नहीं है। परछाई को प्रकाश और कोण से बना एक अद्भुत आर्किटेक्चरल भ्रम माना जाता है।
वैज्ञानिकों की मानें तो मंदिर के गर्भगृह के सामने कई स्तंभ हैं, जिनके जरिए पूरे दिन मंदिर के भीतर सूर्य का प्रकाश बना रहता है। वैज्ञानिकों का मत है कि ये एक नहीं, बल्कि कई संयुक्त स्तंभों की छाया से बनी आकृति है, लेकिन उसकी कोई पुष्टि नहीं है। मंदिर के निर्माण की बात की जाए तो मंदिर का निर्माण इक्ष्वाकु वंश के कुंदुरु चोडा शासकों ने 11वीं शताब्दी में कराया था। मंदिर में भगवान शिव के साथ-साथ भगवान विष्णु और सूर्य की प्रतिमाएं भी बनाई गई हैं। मंदिर का गोरपुरम भी अनोखे तरीके से डिजाइन किया गया है, जिसमें आठ दिशाओं के देवताओं और भगवान शिव को नटराज नृत्य शैली करते हुए अंकित किया गया है।
ये मंदिर सिर्फ आस्था का केंद्र नहीं है, बल्कि विज्ञान और आध्यात्मिकता के अनोखे मेल को दिखाता है। मंदिर को भगवान चंद्र से जोड़ा गया है। पौराणिक कथाओं की मानें तो इस स्थल पर चंद्रमा ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए थे।
--आईएएनएस
पीएस/डीकेपी
