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मशीनों से खेलता एक जादूगर: नाम रूब गोल्डबर्ग, बच्चे से बड़ों तक सबके लिए क्यों है इतने खास

नई दिल्ली, 7 दिसंबर (आईएएनएस)। हम लोगों में से अधिकांश ने ऐसे मजेदार वीडियो जरूर देखें होंगे जिसमें छोटा सा काम करने के लिए बेवजह की जटिल मशीनों का इस्तेमाल किया जाता है। जैसे एक गेंद लुढ़कती है, फिर डोमिनोज गिरते हैं, फिर कोई लीवर घूमता है और अंत में एक साधारण-सा बल्ब जल उठता है! अगर ऐसा आपने देखा है तो समझ लीजिए उनकी असली प्रेरणा से रूबरू हो चुके हैं और वो हैं रूब गोल्डबर्ग।
 
मशीनों से खेलता एक जादूगर: नाम रूब गोल्डबर्ग, बच्चे से बड़ों तक सबके लिए क्यों है इतने खास

नई दिल्ली, 7 दिसंबर (आईएएनएस)। हम लोगों में से अधिकांश ने ऐसे मजेदार वीडियो जरूर देखें होंगे जिसमें छोटा सा काम करने के लिए बेवजह की जटिल मशीनों का इस्तेमाल किया जाता है। जैसे एक गेंद लुढ़कती है, फिर डोमिनोज गिरते हैं, फिर कोई लीवर घूमता है और अंत में एक साधारण-सा बल्ब जल उठता है! अगर ऐसा आपने देखा है तो समझ लीजिए उनकी असली प्रेरणा से रूबरू हो चुके हैं और वो हैं रूब गोल्डबर्ग।

रूब गोल्डबर्ग का जन्म 4 जुलाई 1883 को अमेरिका में हुआ था। दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने पहले इंजीनियरिंग पढ़ी, लेकिन मन कला में रमा था। इंजीनियरिंग के दिमाग और कलाकार के दिल का यही अनोखा मेल उनके कला-जीवन की पहचान बन गया। उन्होंने जब कार्टून बनाने शुरू किए, तो इसमें उनका तकनीकी नजरिया और हास्य दोनों झलकने लगे। बतौर कार्टूनिस्ट और व्यंग्यकार अपनी खास पहचान बनाई।

गोल्डबर्ग की ड्रॉइंग्स में अक्सर एक छोटा-सा काम करने के लिए अत्यधिक जटिल प्रक्रियाएं बनाई जाती थीं। उनकी कल्पना की मशीनों में चिड़िया रस्सी खींचती है, रस्सी किसी बाल्टी को गिराती है, बाल्टी किसी लीवर को धक्का देती है, और अंत में एक टोपी किसी आदमी के सिर पर अपने-आप बैठ जाती है। यह पूरा क्रम इतना बेतुका फिर भी इतना शानदार होता है कि देखने वाला हंस भी पड़े और दंग भी रह जाए।

उनका हास्य सिर्फ मजे के लिए नहीं था। उसमें समाज पर एक गहरा व्यंग्य छिपा रहता था—यह कि इंसान अक्सर आसान काम को भी जरूरत से ज्यादा जटिल बना देता है। उन्होंने अपनी चित्रकारी से दिखाया कि आधुनिक दुनिया तकनीक की आड़ में कैसे छोटी-छोटी चीजों को भी उलझाने लगती है।

रूब गोल्डबर्ग की ख्याति इतनी बढ़ी कि “रूब गोल्डबर्ग मशीन” एक वैश्विक शब्द बन गया। आज टीवी विज्ञापनों, यूट्यूब वीडियोज़, फिल्मों, स्कूल प्रोजेक्ट्स और विज्ञान मेले—हर जगह ऐसी मशीनों की नकल देखने को मिलती है।

गोल्डबर्ग का निधन 7 दिसंबर 1970 को हुआ। लेकिन उनका प्रभाव आज भी उतना ही जीवंत है। हर बार जब आप किसी वीडियो में एक बेतुकी-सी पर शानदार मशीन देखकर मुस्कुराते हैं, तो समझिए—आप किसी न किसी रूप में रूब गोल्डबर्ग की ही दुनिया में कदम रख चुके हैं।

--आईएएनएस

केआर/