मनमोहन सिंह: हजारों सवाल, एक खामोशी, जब कम बोलने वाला प्रधानमंत्री गहरी छाप छोड़ गया
नई दिल्ली, 25 दिसंबर (आईएएनएस)। 'हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, न जाने कितने सवालों की आबरू रखी।' देश के सबसे ताकतवर पद पर रहे मनमोहन सिंह के यह शब्द उन हजारों सवालों का जवाब था, जो उस समय विपक्ष में बैठने वाली भाजपा और दूसरे विरोधी दल उनकी चुप्पी पर उठाया करते थे।
26 सितंबर 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब में मनमोहन सिंह का जन्म हुआ था। देश के वित्त मंत्री बनने से पहले वे न तो राजनीति में रहे और न राजनीति से उनका कोई खास नाता था। हालात की मजबूरियों ने ही उन्हें पहले वित्त मंत्री और फिर प्रधानमंत्री बनाया। वे एक ऐसे नेता थे, जिन्होंने कभी लोकसभा चुनाव नहीं जीता। वे राज्यसभा के जरिए चुनकर आते रहे और प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठकर देश को चलाया। प्रधानमंत्री के तौर पर 10 साल के कार्यकाल में मनमोहन सिंह ने बहुत कुछ देखा। देश को विकास की राह पर चलते देखा और अपनी ही सरकार को भ्रष्टाचार की गर्त में डूबते हुए भी देखा।
इसी बीच सरल स्वभावी मनमोहन सिंह के सीने में विरोधियों के लिए जवाबों का समंदर उमड़ता रहा, बोलने के लिए लोग उकसाते रहे और उनकी चुप्पी पर सवाल उठाते रहे। उसी दौर में विपक्ष ने उनकी एक 'कमजोर' प्रधानमंत्री की छवि बनाकर रख दी थी और यह तमगा उनके नाम के आगे से विरोधियों ने कभी हटने नहीं दिया।
एक भाषण में लालकृष्ण आडवानी ने कहा था, "मैंने ऐसा कमजोर प्रधानमंत्री पहले कभी नहीं देखा। जब भी मैंने उनको (मनमोहन सिंह) कमजोर कहा है, मेरे मन में एक ही भाव रहा है। वह भाव रहा कि हिंदुस्तान में लोकतंत्र है और लोकतंत्र में सबसे महत्वपूर्ण पता प्रधानमंत्री निवास का होता है, लेकिन 7 रेस कोर्स रोड (वर्तमान में 7 लोक कल्याण मार्ग) का कोई महत्व नहीं रह गया।"
हाल ऐसा हुआ कि उस समय पहली बार प्रधानमंत्री कार्यालय को प्रेस कॉन्फ्रेंस करते यह बताना पड़ा कि पीएम रहते हुए मनमोहन सिंह ने कितनी बार चुप्पी तोड़ी। मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे पंकज पचौरी ने उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में हिसाब दिया था और बताया कि हर 10 साल में तकरीबन हर तीसरे दिन प्रधानमंत्री ने स्पीच दी। उन्होंने लगभग 1198 बार स्पीच दी।
सिर्फ यही नहीं था, क्योंकि विरोधियों के आरोप यह भी थे कि मनमोहन सिंह 'रिमोट कंट्रोल पीएम' हैं, लेकिन अपनी बेदाग छवि के सहारे मनमोहन सिंह ने नैया पार लगा ली। 27 अगस्त 2012 को संसद परिसर में मनमोहन सिंह ने वही 'हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, न जाने कितने सवालों की आबरू रखी' शेर पढ़ा।
मनमोहन सिंह भारतीय राजनीति की वे शख्सियत थे, जो बहुत कम बोलते थे। वे जितना खामोश रहते थे, उनकी खामोशी ही सबकुछ बोलती थी। अपनी जिंदगी में इसी तरह का खामोश अफसाना लिखने वाले मनमोहन सिंह 26 दिसंबर 2024 को दुनिया को अलविदा कह गए।
--आईएएनएस
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