'जौन होना कोई मजाक नहीं': मौजूदा समय में युवाओं द्वारा सबसे ज्यादा ढूंढ कर पढ़े जाने वाले शायर
नई दिल्ली, 13 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश के अमरोहा में जन्मे उर्दू शायर जौन एलिया उर्दू साहित्य के उन चुनिंदा शायरों में से एक हैं, जिनकी शायरी आज भी युवा पीढ़ी के दिलों पर राज करती है। भारत-पाकिस्तान बंटवारे ने उनके दिलों-दिमाग पर गहरा असर छोड़ा, भले ही वो अपने अंतिम दिनों में भारत में न रहे हों, लेकिन उन्होंने खुद को हमेशा हिंदुस्तानी ही समझा।
14 दिसंबर 1931 में जन्मे जौन एलिया का पूरा नाम सय्यद सिब्त-ए-आसगर नकवी था, लेकिन वे जौन एलिया के नाम से दुनिया भर में मशहूर हुए। भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद पाकिस्तान जाकर बसने वाले जौन हमेशा खुद को हिंदुस्तानी कहते रहे। वे विभाजन के खिलाफ थे और अमरोहा की मिट्टी से गहरा लगाव रखते थे। उनकी शायरी में दर्द, बगावत, नास्तिकता और मार्क्सवादी विचारों की झलक मिलती है।
जौन एलिया का खानदान विद्वानों से भरा था। उनके पिता, अल्लामा शफीक हसन एलिया, अरबी, फारसी, हिंदी, संस्कृत और हिब्रू के जानकार थे। भाई रईस अमरोही और सय्यद मुहम्मद तकी भी साहित्य जगत में प्रसिद्ध थे। जौन बहुभाषी थे। उर्दू के अलावा, उनकी अन्य कई भाषाओं पर भी अच्छी पकड़ थी और उन्होंने अंग्रेजी, अरबी, फारसी, संस्कृत और हिब्रू पर महारत हासिल की थी।
एलिया को बचपन से ही शायरी का शौक था। हालांकि उनका पहला दीवान 'शायद' 60 साल की उम्र में 1991 में छपा। उनके अन्य संग्रह में 'यानी', 'गुमान', 'लेकिन', 'गोया' और 'रमूज' हैं। उनकी शायरी पारंपरिक गजल से हटकर आधुनिक जीवन की जटिलताओं, प्रेम के दर्द और समाज की नाराजगी को बयां करती है।
जौन की निजी जिंदगी उतनी ही उलझी थी, जितनी उनकी शायरी। उनकी शादी लेखिका जाहिदा हिना से हुई, लेकिन 1980 के दशक में तलाक हो गया। इसके बाद शराब और बीमारी ने उन्हें तोड़ दिया। लंबी बीमारी के बाद 8 नवंबर 2002 को कराची में उनका इंतकाल हो गया।
मरते दम तक उनका बागीपन और अनोखा अंदाज लोगों को आकर्षित करता रहा। लंबे बाल, काला चश्मा और तीखी शायरी उनका ट्रेडमार्क थी। स्वयं की लिखी यह शायरी, "ये है एक जब्र इत्तेफाक नहीं, जौन होना कोई मजाक नहीं," उनके व्यक्तित्व को बयां करती है, जिसका मतलब है- यह कोई संयोग का जबरदस्ती थोपा हुआ अत्याचार या दबाव नहीं है। जो कुछ मेरे साथ हो रहा है, वह महज दुर्घटना या संयोग का मामला नहीं है। यह कोई साधारण बात नहीं। जौन होना कोई मजाक या हल्की बात नहीं है। यह बहुत गंभीर, गहरा और वास्तविक है।
मौजूदा समय में सोशल मीडिया पर जौन सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले उर्दू शायरों में से एक हैं। उनकी शायरी युवाओं को इसलिए भाती है क्योंकि उसमें आज की बेचैनी, जुदाई का दर्द और जीवन की निरर्थकता सीधी दिखती है। जौन एलिया की शायरी सिर्फ दर्द नहीं, बल्कि जीवन की हकीकत है। एलिया की रचनाओं में उनकी बेचैनियों को समझा जा सकता है। वे चले गए, लेकिन उनकी आवाज आज भी गूंजती है।
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