नई सीपीआई सीरीज का अगली मौद्रिक नीति में दिखेगा असर, ब्याज दरों में कटौती पर लग सकता है ब्रेक
नई दिल्ली, 20 दिसंबर (आईएएनएस)। नई कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (सीपीआई) में खाद्य उत्पादों का भार कम होगा और इससे गिरती खाद्य उत्पादों की कीमतों का लाभ महंगाई में कम दिखेगा, जिसके चलते आने वाली मौद्रिक नीति में ब्याज दरों में कटौती की संभावना कम हो जाती है। यह जानकारी शनिवार को जारी एक रिपोर्ट में दी गई।
यस बैंक ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) का ब्याज दरों में कमी का चक्र फिलहाल समाप्त हो चुका है और अब केंद्रीय बैंक लंबे समय पर ब्याज दरों को स्थिर और नीतिगत रुख को न्यूट्रल रख सकता है, जब तक ग्रोथ को कोई बढ़ा खतरा न हो।
रिपोर्ट में बताया गया कि लिक्विडिटी को आरामदायक स्तर तक बनाए रखने और परिचालन दर को रेपो दर से जोड़कर रखने के लिए आरबीआई द्वारा उठाए जा रहे कदम जारी रहने की उम्मीद है।
रिपोर्ट में कहा गया, "दिसंबर की बैठक से आरबीआई की विकास गति को बनाए रखने की प्रतिबद्धता स्पष्ट होती है। हालांकि, पहली छमाही में विकास दर उम्मीद से अधिक रही, लेकिन दूसरी छमाही में इसमें नरमी आने की संभावना है।"
दिसंबर में आरबीआई एमपीसी सदस्यों ने कहा था कि मुद्रास्फीति एफआईटी की निचली सीमा से नीचे बनी हुई है, इसलिए केंद्रीय बैंक द्वारा प्रतिचक्रीय कार्रवाई आवश्यक है।
आरबीआई का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2027 की पहली छमाही में खुदरा मुद्रास्फीति और कोर मुद्रास्फीति दोनों ही 4 प्रतिशत के आसपास रहेंगी।
एमपीसी की अगली बैठक बजट के बाद निर्धारित है, जिसमें आधार में बदलाव और घटकों भार के पुनर्गठन के साथ एक नई सीपीआई श्रृंखला भी जारी की जाएगी।
यस बैंक ने कहा कि आरबीआई ने वित्त वर्ष 2026 के विकास दर को संशोधित करके 7.3 प्रतिशत कर दिया है। इसका कारण घरेलू कारक हैं, जिनमें आयकर युक्तिकरण, मौद्रिक नीति में ढील और राजकोषीय पक्ष से जीएसटी-आधारित युक्तिकरण शामिल हैं, जो दूसरी छमाही में निरंतर विकास को सक्षम बनाएंगे।
एक अन्य हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि आरबीआई द्वारा नीतिगत रेपो दर में 25 आधार अंकों की कटौती करके इसे 5.25 प्रतिशत करना, सीपीआई मुद्रास्फीति के अनुमानों में कमी और जीडीपी विकास अनुमानों में सुधार, घरेलू मांग की स्थिरता में विश्वास का संकेत देते हैं।
--आईएएनएस
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