'झूठी ईशनिंदा की खौफनाक सजा', तसलीमा नसरीन ने दीपू चंद्र दास की हत्या पर उठाए सवाल
ढाका, 20 दिसंबर (आईएएनएस)। निर्वासित बांग्लादेशी लेखिका और मानवाधिकार कार्यकर्ता तसलीमा नसरीन ने शनिवार को दावा किया कि बांग्लादेश में भीड़ द्वारा मार दिए गए हिंदू युवक दीपू चंद्र दास पर ईशनिंदा का झूठा आरोप लगाया गया था। यह आरोप मैमनसिंह जिले की एक फैक्ट्री में काम करने वाले उसके एक मुस्लिम सहकर्मी ने लगाया था।
तसलीमा नसरीन के अनुसार, यह भयावह घटना तब हुई जब दीपू पुलिस की सुरक्षा में था।
उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर दीपू का एक वीडियो साझा करते हुए बताया, "दीपू चंद्र दास मैमनसिंह के भालुका में एक फैक्ट्री में काम करता था। वह एक गरीब मजदूर था। एक दिन किसी छोटी बात पर उसके मुस्लिम सहकर्मी ने उसे सबक सिखाने की ठान ली। इसलिए भीड़ के बीच उसने घोषणा की कि दीपू ने पैगंबर के बारे में अपमानजनक टिप्पणी की है। बस इतना ही काफी था।"
नसरीन ने लिखा कि इसके बाद उग्र भीड़ ने दीपू पर हमला कर दिया और उसे बुरी तरह पीटना शुरू कर दिया। बाद में पुलिस ने उसे भीड़ से बचाकर हिरासत में ले लिया, यानी वह पुलिस की सुरक्षा में था।
उनका कहना है कि दीपू ने पुलिस को पूरी घटना बताई और साफ कहा कि उसने पैगंबर के बारे में कोई टिप्पणी नहीं की थी। उसने यह भी बताया कि यह सब उसके सहकर्मी की साजिश थी।
तसलीमा नसरीन ने आरोप लगाया कि पुलिस ने उस सहकर्मी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। उन्होंने कहा, "पुलिस में से कई लोग जिहाद के प्रति सहानुभूति रखते हैं। क्या कट्टर सोच के कारण पुलिस ने दीपू को फिर से उग्र लोगों के हवाले कर दिया, या फिर कट्टरपंथियों ने थाने से उसे जबरन निकाल लिया? इसके बाद दीपू के साथ मारपीट की गई, उसे लटकाया गया और जला दिया गया।
उन्होंने यह भी कहा कि दीपू अपने परिवार का एकमात्र कमाने वाला था। उसकी कमाई से उसके दिव्यांग पिता, मां, पत्नी और बच्चे का पालन-पोषण होता था। अब उसके परिवार का क्या होगा, यह बड़ा सवाल है। दोषियों को सजा कौन दिलाएगा और परिवार की मदद कौन करेगा?
नसरीन ने दुख जताया कि दीपू के परिवार के पास इतना पैसा भी नहीं है कि वे भारत भागकर अपनी जान बचा सकें। गरीबों का कोई सहारा नहीं होता, उनके पास न देश बचता है और न ही सुरक्षा, यहां तक कि कोई धर्म भी नहीं बचता है।
--आईएएनएस
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