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भूलने की आदतों का नया नाम 'डिजिटल डिमेंशिया', बढ़ा रही मस्तिष्क की थकान और तनाव

नई दिल्ली, 24 दिसंबर (आईएएनएस)। आज के डिजिटल युग में हमारी याददाश्त पर तकनीक का असर साफ दिख रहा है। पहले हम छोटे-छोटे काम, जैसे किसी नंबर को याद रखना, बच्चों को पहाड़े सिखाना या हाल ही में देखी गई फिल्म को याद करना, आसानी से कर लेते थे। लेकिन अब, स्मार्टफोन, इंटरनेट और एप्स के इस दौर में मस्तिष्क को लगातार सुविधा मिल रही है, जिससे इसकी स्वाभाविक क्षमता धीरे-धीरे कमजोर हो रही है।
 
भूलने की आदतों का नया नाम 'डिजिटल डिमेंशिया', बढ़ा रही मस्तिष्क की थकान और तनाव

नई दिल्ली, 24 दिसंबर (आईएएनएस)। आज के डिजिटल युग में हमारी याददाश्त पर तकनीक का असर साफ दिख रहा है। पहले हम छोटे-छोटे काम, जैसे किसी नंबर को याद रखना, बच्चों को पहाड़े सिखाना या हाल ही में देखी गई फिल्म को याद करना, आसानी से कर लेते थे। लेकिन अब, स्मार्टफोन, इंटरनेट और एप्स के इस दौर में मस्तिष्क को लगातार सुविधा मिल रही है, जिससे इसकी स्वाभाविक क्षमता धीरे-धीरे कमजोर हो रही है।

जब हर जानकारी सिर्फ एक क्लिक पर उपलब्ध हो, तो मस्तिष्क को उसे याद रखने की जरूरत ही कम पड़ती है। इसी वजह से लोग अक्सर यह अनुभव करते हैं कि हाल ही में कौन-सा मैसेज पढ़ा या कौन-सी फाइल सेव की, यह याद रखना मुश्किल हो गया है।

तकनीक पर अत्यधिक निर्भरता का सबसे बड़ा असर एकाग्रता पर पड़ता है। लोग एक साथ कई काम कर लेते हैं। स्क्रीन पर लगातार स्क्रॉल करना और सोशल मीडिया पर समय बिताना मस्तिष्क पर लगातार दबाव डालता है, जिसके चलते सोचने-समझने, तर्क करने और फैसले लेने की क्षमता धीरे-धीरे प्रभावित होती है। जब दिमाग किसी कार्य पर पूरी तरह केंद्रित रहता है और उसे पूरा करने की संतुष्टि मिलती है, तभी स्मरण शक्ति मजबूत होती है। लेकिन तकनीक की सुविधा ने इस संतुलन को बिगाड़ दिया है।

याद रखने की प्रक्रिया दो चरणों पर आधारित होती है। पहले मस्तिष्क किसी चीज को दर्ज करता है, फिर उसे दोबारा स्मरण करता है। डिजिटल उपकरणों पर अत्यधिक निर्भरता के कारण यह प्रक्रिया प्रभावित होती है। लोग अब छोटी-छोटी बातें भूलने लगे हैं और लंबे समय तक ध्यान केंद्रित करना कठिन हो गया है। इससे मानसिक थकान बढ़ती है और काम में निरंतरता बनाए रखना मुश्किल हो जाता है।

विशेषज्ञ इसे डिजिटल डिमेंशिया कहते हैं। यह केवल याददाश्त पर ही नहीं, बल्कि मानसिक संतुलन और भावनाओं पर भी असर डालता है। लगातार फोन और कम्प्यूटर पर निर्भर रहने से व्यक्ति मानसिक अस्थिरता, उदासी और संतोष की कमी महसूस करने लगता है। बातचीत में बाधा आती है, चाहे वह लिखित हो या मौखिक। कई बार व्यक्ति अपने दोस्तों और परिवार से दूरी बनाने लगता है, क्योंकि जानकारी या स्मरण की कमी उसे असहज महसूस कराती है।

इस समस्या से बचने के लिए जीवनशैली में बदलाव जरूरी है। डिजिटल उपकरणों का उपयोग सीमित करना, अनुपयोगी एप्स हटाना, फोन से दूरी बनाना और समय-समय पर स्क्रीन ब्रेक लेना मददगार हो सकता है। इसके अलावा, किताबें पढ़ना और कुछ नया सीखना मस्तिष्क को सक्रिय रखने में मदद करता है। पहेलियां, शतरंज, ब्रेन टीजर और पजल खेलना भी दिमाग को व्यस्त और स्वस्थ बनाए रखने का अच्छा तरीका है।

--आईएएनएस

पीके/एबीएम