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बांग्लादेश की राजनीति में बीएनपी का टर्निंग प्वाइंट, तारिक रहमान की वापसी से बदलेंगे सियासी समीकरण

नई दिल्ली, 28 दिसंबर (आईएएनएस)। बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के कार्यवाहक अध्यक्ष तारिक रहमान की 17 साल बाद वापसी ना केवल बीएनपी, बल्कि देश की राजनीति के लिए भी अहम मानी जा रही है। तारिक की वापसी देश की बीएनपी के लिए एक टर्निंग प्वाइंट हो सकती है। तारिक ने वापसी के साथ ही चुनावी रण की तैयारी भी शुरू कर दी है।
 
बांग्लादेश की राजनीति में बीएनपी का टर्निंग प्वाइंट, तारिक रहमान की वापसी से बदलेंगे सियासी समीकरण

नई दिल्ली, 28 दिसंबर (आईएएनएस)। बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के कार्यवाहक अध्यक्ष तारिक रहमान की 17 साल बाद वापसी ना केवल बीएनपी, बल्कि देश की राजनीति के लिए भी अहम मानी जा रही है। तारिक की वापसी देश की बीएनपी के लिए एक टर्निंग प्वाइंट हो सकती है। तारिक ने वापसी के साथ ही चुनावी रण की तैयारी भी शुरू कर दी है।

तारिक रहमान बोंगुरा-6 और ढाका-17 से चुनाव लड़ने वाले हैं। उन्होंने खुद को वोटर के तौर पर भी रजिस्टर करवा लिया है और उनके नाम पर नॉमिनेशन पेपर भी निकल चुके हैं। बांग्लादेश के आम चुनाव की रेस में बीएनपी की सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है। एक बात तो साफ हो चुकी है कि तारिक की वापसी के बाद से बांग्लादेश में सियासी समीकरण बदलने वाले हैं। उनकी वापसी ने बीएनपी को एक चेहरा भी दे दिया है, जो काफी वक्त से नहीं था।

दरअसल, शेख हसीना के कार्यकाल में बीएनपी कमजोर हो गई थी। हसीना के शासन में बांग्लादेश की सबसे बड़ी इस्लामिक पार्टी जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। वहीं, सरकार गिरने के बाद जमात-ए-इस्लामी से बैन हटा दिया गया, बल्कि अवामी लीग को चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित कर दिया गया है।

ध्यान देने वाली बात यह है कि जमात हमेशा से ही भारत विरोधी कट्टरपंथी विचारधारा के साथ आगे बढ़ता रहा है। यही कारण है कि यूनुस की अंतरिम सरकार में जमात-ए-इस्लामी से बैन हटा दिया गया, और देश में कट्टरपंथी भावनाओं से प्रेरित हिंसा में काफी तेजी से बढ़ोतरी देखने को मिली है।

बांग्लादेश में जिस तरह हिंसा और अराजकता की स्थिति बनी हुई है, इसके पीछे कट्टरपंथी उपद्रवी हैं। कट्टरपंथी भावना से ओतप्रोत उपद्रवी बांग्लादेश में मौजूद भारतीय दूतावास को भी निशाना बना रहे हैं। इसी वजह से बीते कुछ समय में देश के अलग-अलग जगहों पर भारतीय वीजा केंद्रों पर सेवाओं को बंद रखना पड़ा।

हसीना की सरकार गिराने के बाद बांग्लादेश में युवाओं का झुकाव कट्टरपंथी जमात की तरफ देखने को मिला है। हसीना की सरकार गिराने में छात्र आंदोलन का भी बड़ा योगदान रहा है। देश के आंदोलनकारी युवाओं ने मिलकर नेशनल सिटीजन पार्टी (एनसीपी) बनाई। चुनावी सर्वे में एनसीपी को भी मतदाताओं का समर्थन मिलता नजर आ रहा है। इन सबके बीच इकबाल मंच के प्रवक्ता शरीफ उस्मान हादी की हत्या ने कट्टरपंथी विचारधारा को और मजबूती दी।

हालांकि, तारिक रहमान ने 17 साल बाद अपनी वापसी के साथ ही कहा कि वह एक ऐसा बांग्लादेश बनाना चाहते हैं, जहां मुस्लिम, हिंदू, बौद्ध और ईसाई सब सुरक्षित हों। उन्होंने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील भी की।

तारिक की वापसी से जमात-ए-इस्लामी को एक झटका जरूर लगा है। अगर आप खालिदा जिया के शासनकाल की बात करें, तो उस समय बांग्लादेश और भारत के बीच काफी तनावपूर्ण माहौल था। हालांकि, अब हालात बदल चुके हैं और विश्व पटल पर वैश्विक राजनीति में भारत की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो गई है।

ऐसे में बांग्लादेश पर इस बात का दबाव जरूर है कि भारत के साथ उसे अपने संबंध कैसे रखने हैं और इस बात का एहसास 17 साल से देश से बाहर रहे तारिक रहमान को भी हो चुका है।

--आईएएनएस

केके/एबीएम