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सियासी लाभ के लिए भाजपा परिवारों में डालती है फूट : तेज प्रताप यादव (साक्षात्कार)

मैनपुरी, 15 नवंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की करहल विधानसभा सीट पर समाजवादी पार्टी का लंबे समय से वर्चस्व है। उपचुनाव के दंगल में अपने इस गढ़ को बचाने के लिए पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने भतीजे, पूर्व सांसद तेज प्रताप यादव को मैदान में उतारा है। वहीं भाजपा ने इस सीट से चाचा धर्मेंद्र यादव के सगे बहनोई अनुजेश यादव को उतारा है। ऐसे में सियासी लड़ाई काफी रोमांचक हो गई है। पूर्व सांसद तेज प्रताप यादव ने आईएएनएस से बातचीत में कहा है कि भाजपा सियासी लाभ के लिए परिवारों में फूट डलवाती है। प्रस्तुत है उनसे बातचीत के अंश।
 
सियासी लाभ के लिए भाजपा परिवारों में डालती है फूट : तेज प्रताप यादव (साक्षात्कार)

मैनपुरी, 15 नवंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की करहल विधानसभा सीट पर समाजवादी पार्टी का लंबे समय से वर्चस्व है। उपचुनाव के दंगल में अपने इस गढ़ को बचाने के लिए पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने भतीजे, पूर्व सांसद तेज प्रताप यादव को मैदान में उतारा है। वहीं भाजपा ने इस सीट से चाचा धर्मेंद्र यादव के सगे बहनोई अनुजेश यादव को उतारा है। ऐसे में सियासी लड़ाई काफी रोमांचक हो गई है। पूर्व सांसद तेज प्रताप यादव ने आईएएनएस से बातचीत में कहा है कि भाजपा सियासी लाभ के लिए परिवारों में फूट डलवाती है। प्रस्तुत है उनसे बातचीत के अंश।

प्रश्न: करहल विधानसभा का मुख्य मुद्दा क्या रहेगा?

उत्तर: जब से भाजपा की सरकार आई, करहल में कोई काम नहीं हुआ। इस क्षेत्र के साथ सौतेला व्यवहार हुआ है। यह सपा का जिला है, इसलिए यहां कोई भी सरकारी योजना नहीं आई। पिछड़े और दलितों पर झूठे मुकदमे लगाए गए हैं, किसानों को परेशान किया गया है। भाजपा से लोग बहुत त्रस्त हैं। उनके जवाब देने का समय आ गया है।

प्रश्न: आप तो यहां सांसद रह चुके हैं। अभी और यहां क्या विकास कार्य अधूरे हैं ?

उत्तर: विकास एक सतत प्रक्रिया है। जितना भी किया जाए, वह कम ही रहता है। 2016-17 में बनी सड़कों की अभी तक मरम्मत नहीं हुई। अस्पतालों में कई सेवाएं शुरू नहीं हुई। सैनिक स्कूल और इंजीनियरिंग कॉलेज जैसे-तैसे चालू हुए हैं। जिला अस्पताल की स्थिति भी खराब है। बहुत सी चीजों में सुधार की जरूरत है। जब हमारी सरकार बनेगी, तो हम इस क्षेत्र के लिए कई योजनाएं शुरू करेंगे। रोजगार भी देंगे।

प्रश्न: भाजपा ने आपके खिलाफ आपके फूफा को मैदान में उतारा है। इसे कैसे देखते हैं?

उत्तर: भाजपा ने तमाम लोगों से संपर्क किया। जब कोई उम्मीदवार तैयार नहीं हुआ तो केवल पारिवारिक फूट कराने के लिए इन्हें उतारा गया है। भाजपा की आदत रही है कि पहले धर्म के नाम पर लोगों को लड़ाया, फिर जातियों का बंटवारा किया और अब परिवारों में फूट डाल रही है। महाराष्ट्र में पहले एनसीपी और फिर शिवसेना को बांटा। भाजपा की परिवारों में फूट करवाने की पुरानी पॉलिसी रही है।

प्रश्न: भाजपा ने यादव उम्मीदवार उतारा है। क्या सपा पर कोई फर्क पड़ेगा?

उत्तर: पहले भी कई चुनाव हुए हैं, जिनमें यादव उम्मीदवार चुनाव लड़ चुके हैं। सपा के वोट बैंक में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। बल्कि इनके चुनाव लड़ने से हमारे बिछड़े साथी खुलकर प्रचार कर रहे हैं। नतीजों में बड़ा बदलाव दिखेगा।

प्रश्न: "जहां दिखे सपाई, वहां बिटिया घबराई" पर क्या कहेंगे?

उत्तर: सरकार भाजपा की है। अपराधियों को सजा दिलवाने का काम सरकार का है। भाजपा के कई बड़े नेता कुलदीप सेंगर और नित्यानंद जैसे अपराधों में संलिप्त रहे हैं, जिन्हें मुख्यमंत्री ने बचाने का काम किया है। एनसीआरबी के डेटा को देखें तो महिला सुरक्षा के मामले में यूपी फिसड्डी है। राजधानी लखनऊ समेत रूरल एरिया में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं।

प्रश्न: उपचुनाव के दौरान भाजपा और सपा के पोस्टरों में 'बंटेंगे-कटेंगे, जुड़ेंगे-सुरक्षित रहेंगे' जैसे नारे हैं। क्या राय है?

उत्तर: भाजपा बांटने की राजनीति करती है। यह लोग ऐसे नारों से लोगों में डर पैदा करना चाहते हैं। सपा का नारा 'जुड़ेंगे तो जीतेंगे' सही है। सपा ने समाज के अंतिम व्यक्ति को राजनीति से जोड़ा है, यही वजह है कि हर तबके के लोग राजनीति में आगे आ रहे हैं।

प्रश्न: भाजपा का आरोप है कि सपा पीडीए की बात करती है, लेकिन टिकट सिर्फ परिवार को दिए जाते हैं?

उत्तर: यूपी में 403 विधानसभा सीटें हैं और परिवार का केवल एक सदस्य ही विधानसभा में है। अगर दो लोग भी हो जाएं, तो भी यह एक प्रतिशत से कम ही रहेगा। भाजपा पीडीए से घबराई है। उपचुनाव में लोगों के मन में पीडीए को लेकर विश्वास है। भाजपा का दावा है कि सपा ने सिर्फ यादव वर्ग को ही नौकरी दी। यह सरकार दलित और पिछड़ा विरोधी है। इसके खिलाफ लोग लामबंद हो रहे हैं। भाजपा को अपने हाथों से सत्ता जाती दिख रही है। इस कारण यह घबराए हुए हैं। सरकार ने आठ सालों में कितने पिछड़ों को रोजगार दिया है इसका डेटा जारी करें।

69 हजार शिक्षक भर्ती में आरक्षण नहीं दे रहे हैं और कई वर्षों से शिक्षक आंदोलन कर रहे हैं। यह मंच से चाहे जो कहें लोग इनकी नियत को समझ चुके हैं।

--आईएएनएस

विकेटी/एएस