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Nagaur मतदान प्रतिशत तो बढ़ा पर करीब एक तिहाई वोटर अब भी दूर

 
Nagaur मतदान प्रतिशत तो बढ़ा पर करीब एक तिहाई वोटर अब भी दूर

नागौर न्यूज़ डेस्क, मतदान के प्रति जगाई जा रही अलख मतदाताओं को खासी रास नहीं आ रही। स्वयंसेवी संस्था ही नहीं सरकारी स्तर पर भी मतदाता को वोट देने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। बावजूद इसके गांवों में महिलाएं आज भी पोलिंग बूथ तक नहीं पहुंच रहीं। पढ़ी-लिखी पीढ़ी में से भी कई वोट देने को जरूरी नहीं समझ रहे। मेरे वोट नहीं देने से क्या हो जाएगा, यही मानसिकता करीब एक तिहाई वोटर को अपने वोट के अधिकार से वंचित कर रही है। सूत्रों के अनुसार वैसे तो हर लोकसभा चुनाव में प्रतिशत बढ़ रहा है, बावजूद इसके अनुमान के हिसाब से यह वृद्धि नहीं हो पा रही। प्रशासन की ओर से इसके लिए अनेकानेक अभियान भी चलाए जाते हैं, इसके बाद भी वैसा परिवर्तन नहीं आ रहा, जैसी अपेक्षा है। एक अनुमान की मानें तो हर पांच साल में इतने तो नए वोटर ही बन जाते हैं, जिनके जरिए एक से दो फीसदी मतदान बढऩा चाहिए। यहां उल्लेखनीय बात यह भी है कि कई बार फर्स्ट टाइम वोटर तक वोट नहीं डाल रहा।

दूरदराज गांव में अब भी एक चौथाई महिलाएं मतदान कर रही हैं। यहां माना जाता है कि घर के पुरुष ने वोट दे दिया तो महिला/बेटियों को वोट देने की जरुरत ही नहीं। इस धारणा से आज भी कई घरों में महिलाएं मतदान नहीं कर रहीं। यह भी सामने आया कि छोटे चुनाव वार्ड पार्षद/पंच/सरपंच/ प्रधान में महिलाओं की सहभागिता पूरी पाई जाती है।

असल में छोटे चुनाव में जानकारी/दबाव के चलते दूसरों को राजी रखने की मजबूरी भी मतदान के लिए महिलाओं को घर से निकालती है। आंकड़ों को देखें तो वर्ष 1971 में नागौर लोकसभा चुनाव में सर्वाधिक 66.98 प्रतिशत मतदान हुआ था, यानी करीब 53 साल पहले जब ना इतनी शिक्षा थी ना ही मतदान के प्रति जागरूकता। यह उस जमाने का मतदान प्रतिशत था जबकि पर्दा प्रथा से लेकर अन्य परम्पराओं के चलते अस्सी फीसदी महिलाओं का घर से निकलना तक भी दूभर था। शिक्षा की स्थिति भी यह थी कि दसवीं तक भी पहुंचने वाले भी गिनती के हुआ करते थे।

इतने प्रयास फिर भी बेहतर परिणाम नहीं

स्वीप कॉर्डिनेटर मनीष पारीक का कहना है कि स्कूल-कॉलेज ही नहीं स्वयंसेवी संगठनों की ओर से हर चुनाव पर मतदाता जागरूकता रैली निकाली जाती है। प्रशासन की ओर से जागरूकता रथ के साथ अन्य गतिविधियों के माध्यम से लोगों को वोट देने के लिए जागरूक किया जाता है। यह बात सही है कि शत-प्रतिशत तो मतदान संभव नहीं है पर तीस-बत्तीस फीसदी मतदान नहीं हो, यह भी अच्छी बात नहीं है। बुजुर्गों को घर में मतदान की सुविधा दे दी गई है, अन्य तरीकों से भी अधिकाधिक मतदान करने की योजना लागू की गई हैं। इसे बढ़ाने के लिए मतदान के दिन अवकाश को सख्ती से लागू किया जाए। बाहर से अपने घर आकर मतदान करने वालों को किराए अथवा अन्य राहत दिया जाना चाहिए।

आंकड़ों को देखें तो वर्ष 2009 में केवल 41.22 फीसदी मतदान हुआ। इसके बाद वर्ष 2014 में यह करीब अठारह प्रतिशत बढ़ा जबकि वर्ष 2019 में यह बढ़ोत्तरी केवल ढाई फीसदी भी नहीं रही। चुनाव संबंधी अधिकारियों से बातचीत में सामने आया कि कुछ मतदाता तो दूसरे राज्य अथवा शहर में नौकरी/व्यवसाय करने लग जाते हैं, मतदान करने नहीं आते। शिक्षा/कॅरियर के चलते काफी युवा अन्य शहरों में शिफ्ट हो जाते हैं, इसलिए वो मतदान नहीं कर पाते। इसके अलावा बुजुर्ग के अलावा कई ऐसे लोग जिनका राजनीति से मन खिन्न हो जाता है अथवा अपने वोट का मूल्य नहीं पहचानते, वे भी वोट देने से बचते हैं।