Nagaur भर्ती मरीजों की संख्या बढ़ी, फिर सरकारी अस्पताल की आय कैसे घटी?
सूत्र बताते हैं कि असल में यहां आकर बीच में चले जाने वाले मरीज हाइसेंटर/ बड़े अस्पताल जा रहे हैं या किसी निजी अस्पताल की शरण लेते हैं, इसका कोई रिकॉर्ड भी नहीं तलाशता। पहले भी यह मामला उजागर हो चुका कि जेएलएन अस्पताल से दुर्घटना में हुए मामूली घायलों को ही जोधपुर/बीकानेर रैफर किया जाता रहा। इसके पीछे एम्बुलेंस कमीशन/कमाई की बात सामने आ चुकी है। ऐसे में अस्पताल में भर्ती मरीज रैफर किए जाते हैं या खुद ही चले जाते हैं। इसके पीछे की रणनीति ना सिर्फ सरकारी सिस्टम को धता बता रही है, बल्कि आम आदमी को सहज-सुलभ इलाज की योजना का उद्देश्य भी पूरा नहीं होने दे रही।
मरीजों को राहत
सरकारी अस्पताल में बीपीएल का पूरा उपचार फ्री है। निशुल्क योजना के तहत पंजीयन रोगियों का उपचार करने के बाद इनके बनने वाले पैकेज के तहत सरकार अस्पताल को भुगतान देता है ताकि विकास समेत अन्य पर वो खर्च कर सके। भर्ती योजना के तहत पंजीयन मरीजों के उपचार के बदले सरकार उसका भुगतान अस्पताल को देती है। भर्ती मरीजों को जबरन रैफर करने के डॉक्टर्स अथवा अन्य स्टाफ वालों की बात उचित नहीं लगती। नागौर के जेएलएन अस्पताल को तो हमेशा सरकार से मरीजों के उपचार का अच्छा भुगतान मिला है।
