Nagaur कहीं किताबों में सिमट न जाएं अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे पशु मेले
नागौर न्यूज़ डेस्क, नागौर. ग्रामीण अर्थव्यवस्था की धुरी और स्थानीय ग्रामीण इलाकों की पहचान कहे जाने वाले पशु मेले वर्तमान में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते नजर आ रहे हैं। वर्षों पहले तत्कालीन शासकों ने जगह-जगह पशु मेलों का आयोजन शुरू किया था फिर आजादी के बाद राज्य सरकार ने यह जिमा उठाया और अब पशुपालन विभाग को इन आयोजनों की जिमेदारी दी हुई है। देश और विदेश में अपनी पहचान रखने वाले राजस्थान के इन मेलों में से दस मेले तो राज्य स्तरीय पशु मेलों का दर्जा रखते हैं। पिछले 20-25 साल से इन मेलों का दायरा सिमट रहा है। अगर सरकार ने इन मेलों को लेकर ठोस कदम नहीं उठाए तो अगली पीढिय़ों को इन मेलों के बारे में सिर्फ किताबों में ही पढ़ने को मिलेगा।
पशुपालकों की सुरक्षा भी रामभरोसे
राज्य स्तरीय पशु मेलों में जो राज्य या राज्य से बाहर से अनेक पशुपालक पशु खरीदने आते हैं। वे लाखों रुपए के पशु खरीदकर लौटते हैं तो उन्हें और पशुओं को सुरक्षा प्रदान नहीं की जाती है। ऐसे में अनेक बार उनके साथ मारपीट की घटनाएं हो जाती हैं जबकि उनके पास मेला अधिकारी की ओर से जारी रवन्ना सहित पशुपालन विभाग की ओर से जारी स्वास्थ्य जांच के प्रमाण पत्र भी होते हैं। ऐसे में पशुपालकों के मन में भय उत्पन्न होता है और वे मेलों में नहीं आते इससे भी मेलों की आवक पर असर पड़ता है।
पशु मेलों की दुर्गति के प्रमुख कारण
राजस्थान में कृषि कार्य में पशुओं की उपयोगिता कम होना।
तीन साल तक के बछड़ों के परिवहन पर रोक।
पशु मेलों को लेकर सरकार की उपेक्षा।
सरकार दे ध्यान
पशु मेलों की दुर्गति होने के दो बड़े कारण हैं। पहला जब तक तीन वर्ष तक के बछड़ों को बाहर ले जाने की अनुमति नहीं मिलेगी, तब तक नागौरी नस्ल को कोई नहीं पालेगा। दूसरा, कृत्रिम गर्भाधान से जो बछड़े पैदा हो रहे हैं, वो किसी काम के नहीं हैं। उन्हें कोई नहीं खरीदता यानी कृत्रिम गर्भाधान में नागौरी नस्ल को बचाने या सुधार पर कोई ध्यान नहीं है। सरकार को पशु मेलों को बचाने के लिए व्यावसायिक रूप देना चाहिए, ताकि मेले रोजगार का जरिया भी बने और अधिक से अधिक लोगों को लाभ हो। साथ ही पर्यटन से भी मेलों को जोड़ा जाए।
उमेदाराम चौधरी, सेवानिवृत्त उपनिदेशक, पशुपालन विभाग
राज्य स्तरीय पशु मेले वर्ष 1998-99 में वर्ष 2023-24 में पशुओं की आमद पशुओं की आमद
गोमतीसागर पशु मेला, झालरापाटन 9004 मेला निरस्त
गोगामेड़ी पशु मेला, हनुमानगढ़ 19,120 1355
वीर तेजाजी पशु मेला, परबतसर 23,560 3384
जसवंत प्रदर्शनी एवं पशु मेला, भरतपुर 12,090 4543
कार्तिक पशु मेला पुष्कर 21,280 8087
चंद्रभागा पशु मेला, झालरापाटन 8575 1335
रामदेव पशु मेला, नागौर 30,544 7463
शिवरात्रि पशु मेला, करौली 19,572 448
मल्लीनाथ पशु मेला, तिलवाड़ा, बाड़मेर 24,918 2921
बलदेव पशु मेला, मेड़तासिटी, नागौर 9,858 3183
कुल 1,78,521 32,719
प्रदेश के प्रमुख 10 राज्य स्तरीय मेलों में वर्ष 1998-99 में पशुओं की आमद पौने 2 लाख से अधिक थी, वहीं वर्ष 2023-24 में 32,719 रह गई। इसी प्रकार 25 साल पहले सरकार को रवन्ना से 6,57,843 रुपए की आय हुई, जो वर्ष 2023-24 में 1.11 लाख रुपए रह गई।
