Nagaur रैकी के दौरान चोर सबसे पहले भागने का रास्ता तलाशते मोबाइल फोन नहीं रखते
सूत्रों के अनुसार चोरी/नकबजनी की बढ़ती वारदात और अधिकांश के अनसुलझी रहने का अफसोस तो पुलिस के साथ पीड़ित को भी रहेगा ही। वारदात के बाद लबी-चौड़ी कवायद के बाद भी उनका पकड़ में नहीं आना परेशान करेगा ही। आलम यह है कि कहीं भी चोरी/नकबजनी की वारदात होगी तो आसपास के लोगों की पड़ताल भी कम रोचक नहीं होती। उसके बाद ढेरों सवाल के जवाब तो पुलिस के पास तक नहीं रहते। अधिकांश मामले खुलते नहीं और एफआर लग जाती है।
नागौर (डीडवाना-कुचामन) जिले में चोरी-नकबजनी की औसत आधा दर्जन वारदात रोजाना होती है, जबकि खुलासा होता है महीने में दो-चार का। कहीं आरोपी पकड़े जाते हैं तो माल बरामद नहीं होता तो कहीं गाडिय़ां पकड़ में आती है तो आरोपी नहीं मिलते। यह तो तब है जब पचास फीसदी से अधिक वारदात के बाद सीसीटीवी फुटेज तक मिल जाते हैं।चोरी/नकबजनी की बढ़ती वारदात के पीछे की गणित किसी के समझ नहीं आ रही। पिछले छह महीने में अकेले कोतवाली थाने में तकरीबन सौ से अधिक मकानों में चोरी/नकबनी हुई जबकि खुली दो दर्जन। पुलिस हमेशा नफरी कम होने की आड़ लेती है। कुछ दिन बाद जांच के ये मामले ठण्डे बस्ते में चले जाते हैं।