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Nagaur जिला मुख्यालय पर विश्वविद्यालय खोलने की मांग तेज

 
Nagaur जिला मुख्यालय पर विश्वविद्यालय खोलने की मांग तेज

नागौर न्यूज़ डेस्क, नागौर  व डीडवाना-कुचामन जिले में वर्तमान में 28 सरकारी व 134 निजी कॉलेज संचालित हैं । इनमें नियमित व स्वयंपाठी के रूप में दो लाख से अधिक विद्यार्थी अध्ययनरत हैं, जिन्हें विश्वविद्यालय से जुड़े हर कार्य के लिए अजमेर जाना पड़ता है। जिले के नोडल कॉलेज बीआर मिर्धा कॉलेज को खुले 55 साल हो गए हैं, इसके बावजूद विश्वविद्यालय का दर्जा नहीं मिला है। ऐसे में अब नागौर जिला मुख्यालय पर विश्वविद्यालय खोलने की मांग तेज होने लगी है, ताकि विद्यार्थियों के साथ कॉलेज प्रबंधन से जुड़े कार्यों के लिए बार-बार अजमेर नहीं जाना पड़े। इस संबंध में छात्र नेता भी लम्बे समय से मांग कर रहे हैं, लेकिन जिले में कॉलेजों की संख्या कम थी, लेकिन पिछले पांच साल में सरकारी कॉलेजों की संख्या 9 से बढ़कर 28 हो चुकी है, जिसमें 2 विधि कॉलेज, 2 कृषि कॉलेज भी शामिल हैं।

शिक्षा के क्षेत्र में स्थापित हो रहे नए आयाम

राजस्थान सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) इंडेक्स 2022 में जिला वार रैंकिंग में नागौर का दूसरा स्थान है।जनगणना-2011 के अनुसार साक्षरता में नागौर जिले की साक्षरता दर 62.80 प्रतिशत है। वर्ष 2011 के बाद जिले में शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रांति-सी आई है। सरकार ने 2021 की जनगणना अब तक नहीं करवाई है, लेकिन पिछले 14 वर्षों में साक्षरता दर के साथ शिक्षा के क्षेत्र में जिले के विद्यार्थियों ने ऐसे परिणाम दिए हैं, जो बड़े और शिक्षित जिलों में भी नहीं रहे। बोर्ड परीक्षाओं से लेकर कॉलेज व प्रतियोगी परीक्षाओं में भी नागौर और डीडवाना-कुचामन जिले के विद्यार्थियों ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। इसको देखते हुए पूर्ववर्ती सरकार ने सरकारी कॉलेज भी हर ब्लॉक में खोल दिए, लेकिन विश्वविद्यालय की कमी आज भी महसूस हो रही है।

हर साल कॉलेजों में प्रवेश लेते हैं 40 हजार से अधिक विद्यार्थी

दोनों जिलों के आंकड़ों पर नजर डालें तो 12वीं बोर्ड परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने वाले विद्यार्थियों की संख्या इस बार 45 हजार से अधिक है। इनमें लगभग आधी बालिकाएं हैं, जिनको अभिभावक दूर भेजने से कतराते हैं। यानी यदि स्थानीय स्तर पर उच्च शिक्षा की सुविधा मिल जाए तो वे पढ़ाने के लिए तैयार हैं। इसके लिए सरकार ने गांवों में भी कॉलेज खोले हैं, लेकिन विश्वविद्यालय का काम पड़ जाए तो उनके अभिभावकों को ही अजमेर जाना पड़ता है। ऐसे में यदि जिले में ही विवि की सुविधा मिल जाए तो छात्राओं के साथ छात्रों को भी सुविधा मिलेगी और आर्थिक बोझ भी कम होगा।