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Nagaur लगभग पचास प्रतिशत युवक-युवतियाँ प्रेम संबंधों के कारण घर से भाग जाते

 
Nagaur लगभग पचास प्रतिशत युवक-युवतियाँ प्रेम संबंधों के कारण घर से भाग जाते 

नागौर न्यूज़ डेस्क, नागौर  जिद पूरी नहीं होने पर बच्चे घर से निकल रहे हैं। कई बार पढ़ाई का तनाव या परिजनों की बंदिश भी उन्हें रास नहीं आ रही। जरा-जरा सी बात पर घर छोड़ने वालों में बच्चे ही नहीं बड़े भी खूब हैं। गुमशुदा की तलाश में पुलिस कवायद भी खूब करती है, लेकिन कुछ तो महीनों बाद तक ना मिल पाते हैं ना ही घर लौट पाते हैं। हालांकि छोटी-छोटी बात अथवा जिद के चलते घर छोड़ने वाले दो-चार दिन में खुद ही लौट आते हैं। पिछले साल के मुकाबले इस बार बच्चे हों या बड़े, घर छोड़ने के मामले में बीस फीसदी ज्यादा हैं। सूत्रों के अनुसार घर से गायब होने वालों में नाबालिग लड़के-लड़कियां हैं तो युवक-युवतियों की संख्या भी अच्छी खासी है। कहीं-कहीं तो अधेड़-बुजुर्ग तक घर छोड़ देते हैं। अपने आप लौटने की उम्मीद या फिर लाज-शर्म के चलते गुमशुदगी/एफआईआर तक लिखाने में परिजन परहेज करते हैं। देर-सवेर नहीं आने पर परिजन रिपोर्ट लिखाते हैं, जिससे गुमशुदा का मिलना और मुश्किल हो जाता है। पिछले करीब दस साल में ऐसे कई मामले सामने आए जिनमें परिजनों की देरी ने पुलिस को परेशान किया।

सूत्र बताते हैं कि पिछले तीन-चार साल में युवक-युवतियों के घर से भागने के मामले ज्यादा सामने आए। कई नाबालिग जोड़े भी घर छोड़ने पर पुलिस ने दस्तयाब किए। ऐसे कुछ मामलों में परिजनों के दबाव में नाबालिग/युवती ने जिसके साथ घर छोड़ा, उसके खिलाफ ही पोक्सो/बलात्कार का मामला दर्ज करा दिया। असल में प्रेम/प्यार के चक्कर में शादी करने की चाह में तो घर छोड़ा जो बाद में सलाखों के पीछे तक ले गया। और तो और घर छोड़ने में विवाहिताओं की संख्या में भी तेजी से इजाफा हुआ है। प्रेम-प्रसंग के चलत घर छोड़ने वाली बालिका व युवती हो अथवा विवाहिता, अव्वल तो वह शहर ही नहीं राज्य तक छोड़ देते हैं। गुमशुदगी/अपहरण का मामला दर्ज होने के बाद पुलिस सीडीआर तो निकाल लेती है पर मोबाइल बंद होने अथवा बदलने से उनकी लोकेशन ही सर्च नहीं हो पाती। यही नहीं घर छोड़ने के बाद ये कुछ समय दूरदराज रहकर गुजारते हैं, इस दौरान किसी से सम्पर्क में भी नहीं रहते।

सूत्रों का कहना है कि प्रेम/प्यार के चलते ही करीब पचास फीसदी युवक-युवतियां ही नहीं विवाहिताएं भी घर छोड़ रही हैं। इसके अलावा घर से निकलने वाले अधिकांश बालक/युवक पढ़ाई के दबाव/तनाव तो कहीं मामूली सी बात पर घर वालों से विवाद अथवा उनकी इच्छा/जिद पूरी नहीं होने के चलते घर से निकल लेते हैं। मनमाफिक कपड़े नहीं दिलाने, स्कूल अथवा कॉलेज में एडमिशन नहीं कराने या फिर बाहर घूमने नहीं जाने देने पर युवक घर से निकल गए। पिछले चार-पांच साल में तो दर्जनों बालक/युवक तो ऐसे थे जिन्होंने मोबाइल अथवा मनचाहा मोबाइल दिलाने की बात नहीं मानने पर एक बार घर छोड़ दिया। हालांकि दो-चार दिन में ये वापस आ गए। बढ़ता कर्ज भी कई बार युवक को घर से लापता कर रहा है। करीब एक पखवाड़ा पहले मूण्डवा चौराहे पर स्थित एक कोचिंग सेंटर से लापता हुए सुशील (16) का अभी कोई सुराग नहीं लगा है। मूलत: जोधपुर के बोरूंदा निवासी सुशील के परिजनों ने कोचिंग सेंटर के मालिक के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज कराया है।

सोशल साइट बन रही मददगार

ऐसे मामलों में सोशल साइट परिजन अथवा पुलिस के लिए मददगार बन रही हैं। असल में संबंधित गुमशुदा की तस्वीर व डिटेल सोशल साइट पर डाल दी जाती है, जो हजारों-लाखों तक पहुंचती है। इसके चलते कई बार पब्लिक में से कई मददगार पुलिस अथवा परिजनों को फोन पर इस संबंध में जानकारी देकर उसे दस्तयाब कराते हैं। बताया जाता है कि गुमशुदगी के अधिकांश मामलों के अनुसंधान में पुलिस सफल रहती है। घर से निकले/गायब बच्चा हो या बड़ा, पुलिस उसे दस्तयाब कर ही लेती है। करीब नब्बे फीसदी मामलों में पुलिस को सफलता मिलती है , जबकि दस फीसदी मामले जरूर उसके हाथ से निकल जाते हैं। गुमशुदा बालिग हो या नाबालिग, दस्तयाबी के बाद भी इनमें से अधिकतर का घर लौटना इसलिए भी संभव नहीं हो पा रहा है, क्योंकि अदालत में दिए गए बयान में साथी अथवा नारी निकेतन/बालिका गृह में भेजने की इच्छा जाहिर की जा रही है। बताया जाता है कि विवाहिता हो या युवती, प्रेम प्रसंग के चलते घर से निकलने वाली ये तीस फीसदी घर जाने से साफ मना कर देती हैं।