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मेरा आदर्श गांव दौसा

आज के मेरे गावं की कहानी में हम जानेगें जयपुर के करीब पड़ने वाले आदर्श गावं दौसा की कहानी, सन 1688 में सौंख के तोमर जाट राजा बनारसी सिंह ने दौसा के किले को जयपुर और मुगलों से युद्व में जीत लिया और बाद में महाराजा हठी सिंह ने यहां चौकियां बनाकर जाट राज्य में मिला लिया, तो चलिए जाने यहां की कहानी को....
 
Dausa
  • यह जयपुर से 54 किलोमीटर की दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग 21 पर स्थित है।
  • 2011 की जनगणना के अनुसार इस गावं की जनसँख्या 85,960 के करीब है। 
  • संस्कृत में दौसा का नाम ‘‘ढौ-सा’’ है, जिसका अर्थ है - सुन्दर जैसे स्वर्ग। 
  • पूर्व कच्छवाहा राजपूत राजवंश का यह मुख्यालय था तथा इसका पुरातात्विक महत्व भी है। 
  • दौसा जिले को जयपुर से पृथक कर 10 अप्रैल 1991 को नया जिला बनाया गया ।

मेरे गावं की कहानी डेस्क, आज इस लेख के माध्यम से मै आपको अपने गांव की कहानी बताने जा रहा हूँ। मेरे गांव का नाम दौसा है, संस्कृत में दौसा का नाम ‘‘ढौ-सा’’ है, जिसका अर्थ है - सुन्दर जैसे स्वर्ग। जयपुर से लगभग 55 कि.मी. दूरी पर बसा यह एक प्राचीन नगर है। राष्ट्रीय राजमार्ग 11 पर स्थित दौसा का नाम ’देव नगरी’ भी है। पूर्व कच्छवाहा राजपूत राजवंश का यह मुख्यालय था तथा इसका पुरातात्विक महत्व भी है। शहर की हलचल से दूर, ग्रामीण अनुभव प्रदान करता है दौसा। दौसा भारत के राजस्थान राज्य के दौसा ज़िले में स्थित एक नगर है, जिसमें 13 उपखंड है। यह एक एतिहासिक नगर रहा है । सन 1688 में सौंख के तोमर जाट राजा बनारसी सिंह ने दौसा के किले को जयपुर और मुगलों से युद्व में जीत लिया और बाद में महाराजा हठी सिंह ने यहां चौकियां बनाकर जाट राज्य में मिला लिया । यहां कुंतल जाट वीरों की अनेकों छतरियां बनी हुई हैं जो जाट मुगल संघर्ष में जाटों की वीरता को उल्लेखित करती हैं। राजा हठी सिंह ने यहां कुंतलपुर जट्टा नामक गांव बसाया जो आज भी मौजूद है । कुंतल वंश के जाट राजाओं के समय यह क्षेत्र जटवाड़ा सम्राज्य का हिस्सा रहा था।

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दौसा राजस्थान का एक ऐतिहासिक शहर एवं लोकसभा क्षेत्र है। यह जयपुर से 54 किलोमीटर की दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग 21 पर स्थित है।दौसा लम्बे समय तक बडगुर्जरो के आधिपत्य मे रहा।दौसा के किले का निर्माण भी गुर्जरों ने करवाया।आभानेरी मे स्थित चाँदबावडी का निर्माण भी इन्ही की देन हैं।दौसा दुल्हेराय को दहेज मे प्राप्त हुआ। दौसा का नाम पास ही की देवगिरी पहाड़ी के नाम पर पड़ा। दौसा कच्छवाह राजपूतों की पहली राजधानी थी। इसके बाद ही उन्होंने आमेर और बाद में जयपुर को अपना मुख्यालय बनाया। 1562 में जब अकबर ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की जियारत को गए तब वे दौसा में रुके थे। दौसा में ऐतिहासिक महत्व के अनेक स्थान है जो यहाँ के प्राचीन साम्राज्य की याद दिलाते हैं आजादी के बाद सर्व प्रथम जो तिरंगा झंडा लाल किले पर फहराया गया वो दौसा जिले के पास स्थित गांव अलुदा में बनाया गया था। जो दौसा से 10 किमी की दूरी पर है1947 से पहले, दौसा जयपुर के कछवाहा राजपूत राजाओं की रियासत का हिस्सा था। दौसा व्यापक रूप से डूंधार के नाम से जाने जाने वाले क्षेत्र में स्थित है। चौहानों ने भी 10वीं शताब्दी ईस्वी में इस भूमि पर शासन किया था। दौसा को तत्कालीन डूनधार क्षेत्र की पहली राजधानी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। चौहान राजा सूध देव ने 996 से 1006 ईस्वी के दौरान इस क्षेत्र पर शासन किया। बाद में, 1006 ईस्वी से 1036 ईस्वी तक, राजपूत राजा दुले राय ने 30 वर्षों तक इस क्षेत्र पर शासन किया।

दौसा ने देश को प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी दिए हैं। टीकाराम पालीवाल और राम करण जोशी उन स्वतंत्रता सेनानियों में से थे जिन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई और रियासतों के एकीकरण के लिए राजस्थान राज्य बनाने के लिए अपना बहुमूल्य योगदान दिया। आजादी के बाद 1952 में टीकाराम पालीवाल राजस्थान के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री थे। इसके अलावा, राम करण जोशी राजस्थान के पहले पंचायती राज मंत्री थे जिन्होंने 1952 में विधानसभा में पहला पंचायती राज विधेयक पेश किया था। कवि सुंदरदास का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी को विक्रम संवत 1653 में दौसा में हुआ था। वह एक प्रसिद्ध निर्गुण पंथी संत थे और उन्होंने 42 ग्रन्थ लिखे, जिनमें से ज्ञान सुंदरम और सुंदर विलास प्रसिद्ध हैं।दौसा क्षेत्र में कछवाहा राज्य के संस्थापक दूल्हेराय ने लगभग 1137 ईस्वी में बड़गूजरों को हराकर अपना शासन स्थापित किया था। इसे ढूंढाड़ अंचल के कछवाहा वंश की प्रथम राजधानी बनाया गया। दौसा जिले को जयपुर से पृथक कर 10 अप्रैल 1991 को नया जिला बनाया गया ।

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दौसा को देवनगरी के नाम से भी जाना जाता है। झाझीरामपुर प्राकृतिक कुंड और रुद्र, बालाजी तथा अन्य देवी-देवताओं के मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। यह स्थान दौसा नगर से 45 किलोमीटर की दूरी पर है। पहाड़ियों से घिरी इस जगह की प्राकृतिक और आध्यात्मिक सुंदरता मन को सुकून पहुँचाती है। यह संत सुन्दर दास जी की नगरी है जहां उनका राजस्थान सरकार द्वारा पैनोरमा बनाया गया हैं। पहाड़ी पर प्रसिद्ध नीलकंठ महादेव का मंदिर है। जहां सावन में लखी मेला लगता है। यहां कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, तो आईये जाने इनके बारे में......

 

मेंहदीपुर बालाजी

दौसा का प्रसिद्ध मन्दिर श्री मेंहदीपुर बालाजी घंटा मेहंदीपुर में स्थित है। हनुमान जी को समर्पित इस मंदिर का निर्माण श्रीराम गोस्वामी ने करवाया था। हनुमान जयंती, जन्माष्टमी, जल झूलनी एकादशी, दशहरा, शरद पूर्णिमा, दीपावली, मकर संक्रांति, महाशिवरात्रि, होली और रामनवमी यहाँ धूमधाम से मनाए जाते हैं। मेहंदीपुर मंदिर के बारे में माना जाता है कि यहाँ प्रेतराज भूत-प्रेत से संकटग्रस्त लोगों का इलाज करते हैं। दुनिया भर में विज्ञान के क्षेत्र में हुई प्रगति के बावजूद बड़ी संख्या में लोग इस प्रकार की समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए यहाँ आते हैं। मेहंदीपुर बालाजी आने के लिए सबसे नजदीकी रेल्वे स्टेशन बांदीकुई जंक्शन है जो की मेहंदीपुर बालाजी धाम से मात्र 30 की.मी.है।

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हर्साद माताजी का मंदिर

माताजी के मंदिर को सचिनी देवी के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह दौसा का एक प्राचीन मंदिर है। देवी दुर्गा को समर्पित इस मंदिर में 12वीं शताब्दी की दुर्लभ मूर्तिकला को देखा जा सकता है।

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नीलकंठ और पंच महादेव

दौसा को देवनगरी के नाम से भी जाना जाता है। दौसा के मंदिर में भगवान शिव के पांच रूप, सहजनाथ, सोमनाथ, गुप्तेश्‍वर और नीलकंठ, विराजमान हैं। पठार के ऊपर स्थित नीलकंठ मंदिर प्राचीन भव्यता और आध्यात्म का प्रतीक है। यह मंदिर जिस पहाड पर बना है वह उल्टे सूप के आकार का है। 

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पपलाज माता मन्दिर

पपलाज माता मन्दिर लालसोट तहसील के ग्राम घाटा मे स्थित हैं। यह मंदिर जिले का सर्वाधिक लोकप्रिय है। मीणा जाति में इस मंदिर का विशेष महत्व है। यह अरावली पर्वत माला पर जिला मुख्यालय से लगभग 40 कि. मीटर की दूरी पर स्थित है.

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देवनारायण भगवान मन्दिर

दौसा जिले में गुर्जर जाति के आराध्य भगवान श्री देवनारायण भगवान का बहुत सुंदर मंदिर स्थित हैं। जिसका निर्माण देवनारायण मंदिर निर्माण समिति द्वारा कराया गया हैं। यह नायाब कलाकृति का एक बेजोड़ नमूना हैं। यहां पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं भगवान श्री देवनारायण की महीमा अनंत हैं।

लेखक: Ajay Bhargawa