मेरा आदर्श गांव चाकसू

- चाकसू भारतीय राज्य राजस्थान में जयपुर जिले में एक नगर पालिका है।
- यह शहर राष्ट्रीय राजमार्ग 52 पर जयपुर से 40 किमी की दूरी पर स्थित है।
- चाकसू राजस्थान विधानसभा की एक विधानसभा सीट भी है।
- 2011 की जनगणना के अनुसार इस गावं की जनसँख्या 33,432 के करीब है।
- चाकसू अपनी रंगीन संस्कृति, मेलों और त्योहारों के लिए जाना जाता है।
मेरे गावं की कहानी डेस्क, आज इस लेख के माध्यम से मै आपको अपने गांव की कहानी बताने जा रहा हूँ। मेरे गांव का नाम चाकसू है, ये भारतीय राज्य राजस्थान में जयपुर जिले में एक नगर पालिका है। यह शहर राष्ट्रीय राजमार्ग 52 पर जयपुर से 40 किमी की दूरी पर स्थित है। चाकसू राजस्थान विधानसभा की एक विधानसभा सीट भी है। 2011 की जनगणना के अनुसार इस गावं की जनसँख्या 33,432 के करीब है। यहां शीतला माता का मंदिर और उज्जैन के राजा भर्त्री की जन्मस्थली के साथ जयबाण तोप से बना गड्ढा है, जो काफी दर्शनीय है। चाकसू अपनी रंगीन संस्कृति, मेलों और त्योहारों के लिए जाना जाता है। ऐसा ही एक त्योहार है शीतला अष्टमी, जिसे 'बसोड़ा' के नाम से भी जाना जाता है, जो होली के आठवें दिन आती है। यह हिंदू कैलेंडर के चैत्र महीने में मनाया जाता है। वैसे तो यह त्योहार राजस्थान के कई हिस्सों जैसे जोधपुर, भीलवाड़ा, बाड़मेर आदि में मनाया जाता है, लेकिन चाकसू का शीतला माता मेला प्रसिद्ध है। यह जयपुर से लगभग 35 किमी दूर है, जहां मंदिर एक छोटी पहाड़ी की चोटी पर स्थित है।
चाकसू में प्रसिद्ध स्थानों में टोंक रोड पर शीतला माता मंदिर, बाड़ा में बड़ा पदमपुरा जैन मंदिर, बरखेड़ा में बरखेड़ा जैन मंदिर, तमाड़िया गांव में श्री राम धाम, मुख्य बाजार में राम मंदिर, चंपेश्वर महादेव मंदिर, मनोहर तालाब, गोलीराव तालाब, बड़ आरे शामिल हैं। बालाजी चाकसू (स्ट्रीट फूड) में भी मोहनजी की कचौड़ी बहुत प्रसिद्ध है। चाकसू सड़क मार्ग से कोटा-टोंक, जयपुर, फागी-दूदू, दौसा-लालसोट से जुड़ा हुआ है। जयपुर-मुंबई रेल मार्ग भी चाकसू रेलवे स्टेशन से होकर गुजरता है।
शीतला माता की पौराणिक कथा
चैत्र मास का महीना था। एक दिन शीतला माता ने सोचा कि देखना चाहिए कि पृथ्वी पर लोग मेरा कितना आदर करते हैं। इसकी परीक्षा लेने के लिए शीतला माता बुढ़िया के वेश में नगर की एक गली से जा रही थी कि किसी ने गली में गर्म चावल का पानी (मांड) डाल दिया। शरीर पर फफोले पड़ गए। पूरा शरीर जलने लगा। शीलमाता सारे नगर में घूमीं पर उन्हें कहीं भी शीतलता नहीं मिली। पूरे शहर में घूमते हुए शीतला माता जब शहर के बाहर पहुंचीं तो उन्हें वहां एक कुम्हार की झोपड़ी दिखाई दी। झोपड़ी में पहुँचकर माँ ने कहा कि मैं तो गर्मी से जल रही हूँ, क्या करूँ? कुम्हार ने उन्हें आदर से बिठाया और शीतला माता के आगे रावड़ी मिली हुई ठंडी छाछ रख दी। ठंडी छाछ और रावड़ी खाकर शीतला माता बहुत प्रसन्न हुईं और उन्हें शांति मिली।
शीतला माता ने फिर कुम्हार से कहा बेटा देखो मेरे सिर में जूं है। जैसे ही कुम्हार की आंखें पीछे की ओर गईं, कुम्हार जूं को देखने लगा, उसके सिर के दोनों ओर आंखें देखीं तो कुम्हार डर गया। शीतला माता ने कुम्हार से कहा, डरो मत, मैं शील और वोदरी माता हूं। नगर में घूमते-घूमते हम जल गये, शीतल छाछ, रौवड़ी पिलाकर तुमने शान्ति दी है। मैं इसके साथ बहुत खुश हूं। आज मैं आपको एक बात बताऊंगा। कल सुबह शहर में आग लगेगी। तुम एक खाली कटोरी में स्वच्छ जल लेकर मेरा नाम लो और अपनी झोपड़ी के चारों ओर एक जलधारा निकाल दो, इससे तुम्हारी झोपड़ी बच जाएगी। यह कहकर माता शीतला चली गईं। दूसरे दिन भोर होते ही पूरे शहर में आग लग गई। राजा ने अपने आदमियों को यह देखने के लिए भेजा कि क्या कोई घर बचा है। शहर का दौरा कर लौटे एक सिपाही ने बताया। हजूर गांव के बाहर केवल एक कुम्हार की झोपड़ी बची है। राजा ने कुम्हार को बुलाकर इसका रहस्य पूछा। कुम्हार ने सारी घटना राजा को बता दी। सारी घटना सुनकर राजा ने उसी दिन उसकी पिटाई करवा दी कि चैत्र मास में छठ के दिन भोजन बनाकर सप्तमी को शील व वोदरी माता का पूजन कर ठंडा भोजन करें। शीतला माता की छाछ, रावड़ी, पुआ, पूड़ी, नारियल आदि से पूजा करें और यह पूजा कुम्हार ही करेगा। और कुम्हार ही पूजा की सामग्री और प्रसाद ग्रहण करेगा।
एक अन्य कथा या पौराणिक मान्यता के अनुसार माता शीतला जी की उत्पत्ति भगवान ब्रह्मा से हुई है। ब्रह्मा जी ने माता शीतला को धरती पर पूजने के लिए भेजा था। भगवान शिव के पसीने से बने ज्वारासुर को माता शीतला देवलोक से सहचरी बनाकर धरती पर लाईं। तब उनके साथ दाल भी थी। जब उस समय के राजा विराट ने माता शीतला को अपने राज्य में रहने के लिए कोई स्थान नहीं दिया तो माता शीतला क्रोधित हो गईं। उस क्रोध की ज्वाला से राजा की प्रजा के शरीर पर लाल धब्बे निकल आए और लोग उस ताप से क्रोधित हो उठे। जब राजा को अपनी गलती का अहसास हुआ तो उन्होंने माता शीतला से क्षमा मांगी और उन्हें उचित स्थान दिया। शीतला माता के क्रोध को शांत करने के लिए लोगों ने उन्हें ठंडा दूध और कच्ची लस्सी अर्पित की और माता शांत हो गईं। तभी से हर साल शीतला अष्टमी के दिन लोग मां को ठंडे बासी भोजन का प्रसाद चढ़ाने लगे और मां की कृपा पाने के लिए व्रत करने लगे।
लेखक: Dharmendra Sharma