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Kota के दो युवाओं ने मक्का के दानों से बनाए कैरी बैग्स

 
Kota के दो युवाओं ने मक्का के दानों से बनाए कैरी बैग्स
कोटा न्यूज़ डेस्क, कोटा  पृथ्वी बनाम प्लास्टिक की समस्या वैश्विक हो चुकी है। माइक्रो प्लास्टिक शरीर में पहुंचकर नुकसान पहुंचाती है। यह समस्या विकराल रूप लेती जा रही है। सब्जी के ठेले से लेकर बड़े-बड़े शोरूम व घर की रसोई तक में पॉलीथिन का उपयोग धड़ल्ले से हो रहा है। इससे होने वाले प्रदूषण से चिंतित शिक्षा नगरी कोटा के दो युवाओं ने इस समस्या का विकल्प खोजा है। दोनों ने बायोडिग्रेडेबल कैरी बैग्स तैयार किए हैं। ये बैग्स काफी पसंद किए जा रहे हैं। कोटा के अलावा देशभर में इनकी डिमांड़ बढ़ती जा रही है।

नहीं पहुंचाते नुकसान

ये कैरी बैग्स मक्का के दानों से तैयार किए जा रहे हैं। 160 डिग्री सेल्सियस के उच्च तापमान पर मशीनों से बनती है। कोटा में बायोडिग्रेडेबल कैरी बैग्स 500 ग्राम से 25 किलो तक वजन की क्षमता में तैयार किए जा रहे हैं। ये कैरी बैग्स करीब छह माह में अपने आप विघटित दो जाते हैं। इससे प्रकृति को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता।दोनों युवा मैकेनिकल ब्रांच से बीटेक हैं। बिगड़ते पर्यावरण को देखते हुए आसिफ व मोहक ने संकल्प लिया कि कुछ ऐसा व्यवसाय या रोजगार किया जाए, जिससे भौतिक शिक्षा का उपयोग पर्यावरण संरक्षण में किया जा सके। इंजीनियरिंग करने के बाद नौकरी के प्रस्तावों को ठुकराकर बायोडिग्रेडेबल कैरी बैग्स के लिए सिंगल यूज प्लास्टिक के विकल्प को तैयार कर प्लास्टिक प्रदूषण की बढती समस्या का समाधान निकाला।

मोहक व आसिफ बताते हैं कि शुरुआती दौर बहुत कठिन रहा। लोगों का रेस्पॉन्स नहीं मिला। जब लोगों को इन बैग्स के फायदे पता चले, तब जाकर उपयोग करने लगे। अब 12000 किलो प्रतिमाह कम्पोस्टेबल बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग कैरी बैग्स तैयार किए जा रहे हैं। इनकी डिमांड बाजारों से लेकर परिवारों, उत्सव, त्योहारों व विवाह आदि आयोजन में है। कोटा से पश्चिम बंगाल, गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, जम्मू कश्मीर, उत्तरप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान में बैग्स व थैलियां भेजी जा रही हैं।