Kota खनन माफिया से वसूली में एसएचओ और स्टाफ को मिली क्लीन चिट
कोटा न्यूज़ डेस्क, भरतपुर में खनन माफिया से वसूली के मामले में एसीबी का इंटरसेप्ट सर्विलांस सिस्टम ही 'भ्रष्ट' हो गया। एसीबी ने सूत्रों से मिली जानकारी के आधार पर रूपबास थानाधिकारी, स्टाफ और पैसे वसूलने वाले होटल मालिक के मोबाइल फोन इंटरसेप्ट किए और बातचीत की लंबी ट्रांसक्रिप्ट तैयार की, लेकिन भरतपुर में भ्रष्टाचार मामलों की विशेष कोर्ट में यह टिक नहीं पाई। दरअसल, एसीबी के लॉगर इंचार्ज और ट्रांसक्रिप्ट तैयार करने वाले इंस्पेक्टर ने एक-दूसरे को गलत बताया। थाने के एलसी और दो लांगरी समेत 7 लोग भी मुकर गए। पूरा मामला सर्विलांस रिपोर्ट पर आधारित था और जब वह संदिग्ध हो गई तो विशेष न्यायाधीश ने इस विरोधाभास को बहुत गंभीर और घातक बताते हुए सभी आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। इस शर्मिंदगी के बाद एसीबी हरकत में आई है, दोनों अफसरों को चार्जशीट दी जाएगी और विधि विभाग से सलाह लेकर हाईकोर्ट में अपील की जाएगी।
लॉगर प्रभारी और ट्रांसक्रिप्ट तैयार करने वाले अफसरों के बीच विरोधाभास
{लॉगर प्रभारी राजेश राव ने गवाही में बताया कि कांस्टेबल केसर सिंह ने उन्हें सूचना दी थी कि मोहन सिंह बंधी का खेल चला रहा है। मोहन सिंह और अन्य के मोबाइल सर्विलांस पर लगाए गए थे। केसर सिंह नियमित रूप से उनकी बातें सुनता था और अफसरों को सूचना देता था। फिर मोहन सिंह, रिंकू, अर्पण चौधरी और मुकेश बैरवा के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। जिरह में कहा गया कि केसर सिंह एसीबी का कर्मचारी था, सूत्र नहीं। केसर सिंह ने मोहन सिंह का नाम लिया था, अन्य का नहीं। वॉयस क्लिपिंग एसीबी इंस्पेक्टर विवेक सोनी को नहीं सौंपी गई, मेमो भी नहीं बनाया गया। सोनी ने एसएसपी ठाकुर चंद्रशील से ली थी। केसर सिंह द्वारा बनाई गई तीनों सीडी लैपटॉप सोनी की थी, एसीबी तकनीकी शाखा की नहीं।
इंटरसेप्ट-लॉगर प्रभारी और ट्रांसक्रिप्ट तैयार करने वाले अफसरों ने एक-दूसरे पर लगाए आरोप
{एसीबी इंस्पेक्टर विवेक सोनी ने साक्ष्य में बताया कि वह एसीबी चौकी कोटा है। जयपुर मुख्यालय के निर्देशानुसार उसने तैयार फर्द कन्वर्जन और आवाज को लैपटॉप में डालकर मिलान किया था। ट्रांसक्रिप्ट फर्द प्रिंट पर उसके हस्ताक्षर हैं। लेकिन जिरह में उसने कहा कि उसे नहीं पता कि ट्रांसक्रिप्ट किसने बनाई। उससे पहले से तैयार ट्रांसक्रिप्ट प्रिंट पर हस्ताक्षर करवाए गए। उसने अपने सामने हुई बातचीत की आवाज नहीं पहचानी। उसने ठाकुर चंद्रशील से आवाज क्लिप-ट्रांसक्रिप्ट नहीं ली, चंद्रशील वहां नहीं था। चंद्रशील ने उसे सीडी देकर ट्रांसक्रिप्ट बनाने के लिए नहीं भेजा।
{9414827079 ये नंबर कांस्टेबल मोहन सिंह के हैं। 5 जनवरी 18 को मोहन सिंह और रिंकू इस बारे में बात करते हैं कि उन्हें किससे मुचलका लेना है।
{7 जनवरी को मोहन सिंह अवैध पत्थर लाने वाले लोगों से दैनिक और मासिक भुगतान करने के लिए कहता है। पैसे नहीं देने पर काम बंद करने और केस दर्ज करने की धमकी देता है।
{10 जनवरी को मोहन सिंह 14 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से एंट्री राशि जमा करने और बाकी 1200 रुपये बाद में एंट्री करने की बात करता है।
{7728000251 ये नंबर एसएचओ अर्पण चौधरी के हैं। 12 नवंबर 17 को एसएचओ अर्पण चौधरी अपने एलसी कप्तान सिंह को नाबालिग आरोपी को हटाने के लिए संबंधित व्यक्ति से बात करने के निर्देश देते हैं।
{10 दिसंबर 17 को प्रधानजी एसएचओ अर्पण चौधरी से मासिक मुचलका राशि कम करने का अनुरोध करते हैं जो अब नए एसएचओ मुकेश बैरवा को दी जानी है। लेकिन अर्पण चौधरी सहमत नहीं होते हैं, वे मुचलका जारी रखने के लिए कहते हैं।
{13 दिसंबर 17 को अर्पण चौधरी प्रधान जी से बात करता है और कांस्टेबल मोहन सिंह को दो यानि 2 लाख देने का निर्देश देता है।
{14 दिसंबर 17 को सरपंच की एफआर लगाने के मामले में आधी मिठाई बची होने की बात होती है, अर्पण चौधरी काम करने से मना कर देता है।
{14 दिसंबर 17 को अर्पण अपने एलसी कप्तान सिंह से कहता है कि सरपंच मूर्ख है, वह फोन पर बात करता है। एफआर लगाने के लिए बची हुई आधी रकम तुम्हें ले जानी होगी।
{18 दिसंबर 17 को प्रधान जी फिर अर्पण चौधरी से बात करता है। अर्पण कहता है, मैंने नए एचएचओ को 1 लाख देने की बात कही है, उसे बांटना है।
{3 जनवरी 18 को एसएचओ अर्पण चौधरी और कांस्टेबल मोहन सिंह के बीच पिछले एसएचओ और नए एसएचओ को दी गई रिश्वत के बारे में चर्चा होती है।
{इंटरसेप्ट पर सुनी और रिकॉर्ड की गई बातचीत के अनुसार भरतपुर के रूपबास थाने की पुलिस संगठित रूप से अवैध वसूली में लगी हुई थी।