PN-224 पेंच की "नई कॉलरवाली" बाघिन, एआई, हाथी दल और रेडियो-कॉलर से किया ट्रैक
PN-224 नामक बाघिन को Pench Tiger Reserve में सफलतापूर्वक रेडियो-कॉलर पहनाया गया है। यह कार्रवाई नर–निगरानी तथा उसके आगे के व्यवहार पर सतत दृष्टि रखने के उद्देश्य से की गई है।
कैसे हुई सफलता
वन विभाग ने एआई-सक्षम कैमरा-ट्रैप (AI-camera trap) प्रणाली के माध्यम से PN-224 की लोकेशन का पता लगाया था। यह तकनीक बाघिन की तस्वीरें लेने के साथ-साथ उसकी पहचान कर समय-समय पर टीम को अलर्ट भेजती रही। उसके बाद जंगल में हाथी दल और वन्य जीव विशेषज्ञों की टीम ने घनी झाड़ियों और दुर्गम जंगल क्षेत्रों में करीब सात दिनों तक छानबीन की।
अंततः शुक्रवार को टीम द्वारा बाघिन को ट्रैंकुलाइज (बेहोश) किया गया और पशु चिकित्सा विशेषज्ञों ने रेडियो-कॉलर लगा कर उसे पुनः जंगल में छोड़ दिया।
कॉलर का महत्व — निगरानी व ट्रांसलोकेशन की तैयारी
रेडियो-कॉलर लगाने का मुख्य उद्देश्य बाघिन की गतिविधियों, इलाके में आव्रजन, भोजन व व्यवहार पैटर्न, और स्वास्थ्य को निरंतर मॉनिटर करना है। इसके जरिए यह देखा जाएगा कि PN-224 कितनी दूरी तय करती है, किस इलाके में शिकार करती है, और उसका दिन-प्रतिदिन का व्यवहार कैसा है। वन विभाग के अनुसार, इन जानकारियों के आधार पर ही भविष्य में राजस्थान के Ramgarh Vishdhari Tiger Reserve (बूंदी) में इस बाघिन के ट्रांसलोकेशन का समय तय किया जाएगा।
यह ट्रांसलोकेशन भारत में किसी राज्य से दूसरे राज्य में बाघ स्थानांतरित करने का पहला संगठित प्रयास है — और रेडियो-कॉलर यह सुनिश्चित करेगा कि बाघिन स्थानांतरण से पहले पूरी तरह स्वस्थ, सक्रिय और परिवर्तित इलाके के अनुकूल हो।
हाथी दल और आधुनिक तकनीक — सफल ऑपरेशन की कुंजी
इस पूरे अभियान में पारंपरिक और आधुनिक दोनों ही उपकरणों का इस्तेमाल हुआ। एआई कैमरों ने शुरुआती पहचान में मदद की, जबकि हाथी दल और प्रशिक्षित कर्मियों ने घने जंगल में सर्च ऑपरेशन को संभव बनाया। इस तरह के रणनीतिक मिलाजुला प्रयास ने कामयाबी दिलाई।
