चीन को भी करनी पड़ी थी 1 लाख चिड़ियों की वापसी, जानिए कैसे गिद्ध, उल्लू और चिड़िया कैसे निभा रहे पर्यावरण सुरक्षा में अहम भूमिका
गिद्ध, उल्लू, गौरैया व अन्य पक्षी न केवल पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखते हैं, बल्कि करोड़ों रुपए की प्राकृतिक सफाई भी करते हैं। प्राकृतिक सफाईकर्मी के रूप में ये पक्षी सालभर निरंतर काम करते हैं और करोड़ों रुपए व पर्यावरण को बचाते हैं। कोटा के उप वन संरक्षक (वन्यजीव) अनुराग भटनागर ने इस संबंध में बारीकी से अध्ययन कर शोध किया है। भटनागर के अनुसार एक गिद्ध अपने जीवनकाल (करीब 40 साल) में करीब 25 लाख रुपए मूल्य के शवों का प्राकृतिक तरीके से निपटान करता है।
भटनागर ने बताया कि एक गिद्ध अपने जीवनकाल में सैकड़ों मवेशियों के शवों का निपटान करता है। 35-40 गिद्धों का समूह एक भैंस जैसे बड़े मृत पशु को 4-5 घंटे में पूरी तरह साफ कर देता है। यदि यही काम हाथ से किया जाए तो एक शव को दफनाने या जलाने में 5 से 10 हजार रुपए का खर्च आता है। गिद्धों के शरीर में पाया जाने वाला पीएच-1 स्तर का एसिड हड्डियों तक को गला देता है। गौरैया रोजाना 220 से 280 कीड़े खा जाती है। पांच साल के जीवनकाल में यह करीब साढ़े चार लाख कीटों को मार देता है। वहीं, कॉमन मैना रोजाना करीब 340 कीटों को खा जाती है।
तब चीन को पक्षियों की कमी का एहसास हुआ
1958 में चीन ने कीट नियंत्रण के नाम पर यूरेशियन गौरैया और दूसरे जीवों का सफाया कर दिया। दो साल के भीतर ही वहां गौरैया विलुप्त हो गईं। इसकी वजह से कीटों की बाढ़ आ गई और 1958 से 1962 के बीच चीन में भयंकर अकाल पड़ा। तब चीन को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने रूस से एक लाख पक्षी मंगवाए।
टिट्स: कीटों का विनाश: टिट्स पक्षी अपने जीवनकाल में करीब तीन करोड़ कीटों, उनके अंडों और लार्वा को नष्ट कर देता है।
