Karoli वर्ष दर वर्ष बढ़ रहा रैफर का ग्राफ 108 एबुलेंस के भरोसे जिला अस्पताल
करौली न्यूज़ डेस्क, शहर के जिला चिकित्सालय में वर्ष दर वर्ष रोगियों को रैफर का मर्ज भी बढ़ता जा रहा है। अस्पताल का दर्जा बढ़ने के साथ रोगियों को न तो रैफर से राहत मिल सकी है। और न ही गंभीर स्थिति में रोगियों को सुरक्षित उच्चीकृत चिकित्सालय पहुंचाने लिए वाहन संसाधनों में इजाफा हुआ है। चिकित्सालय में स्वयं के स्तर पर एबुलेस सेवा नहीं होने से अधिकांश रोगी 108 एबुलेंस के सहारे उच्चीकृत चिकित्सालय पहुंचते हैं। इसके अभाव में लोगों को निजी एबुलेंस लेनी पड़ती हैं। जिनमें जीवन रक्षा के नाम पर महज ऑक्सीजन सिलेण्डर होता है। दरअसल बीते तीन दशक में अस्पताल सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र से सोपन दर सोपान चढ़ जिला चिकित्सालय में क्रमोन्नत हो गया है। दर्जा बढ़ने के साथ रोगी भर्ती और रैफर की संया में भी इजाफा हो गया है। लेकिन चिकित्सालय में रोगी परिवहन के लिए एबुलेंस की सुविधा नहीं है। ऐसे में रोगियों के परिजनों को 108 एबुलेंस सेवा के कॉल सेंटर पर चिकित्सक से बात करवा कर एबुलेंस बुलवानी पड़ती है। एबुलेंस के अन्य इमरजेंसी कॉल पर होने से दूसरी एबुलेंस आने की बाट जोहनी पड़ती है। ऐसे में परिजनों को आपात स्थिति में निजी एबुलेंस व वाहन बुलवा कर रोगियों को उच्चीकृत चिकित्सालय ले जाना पड़ता है। गौरतलब है कि जिला चिकित्सालय से प्रतिदिन औसतन 8-10 रोगी रैफर होते हैं। ऐसे में वार्षिक रैफर का ग्राफ 5 हजार के आंकड़े को भी पार कर जाता है।
जिला चिकित्सालय से रैफर रोगियों के ले जाने के लिए 19 एबुलेंस वाहन हैं। जो यूनियन से जारी नबर पर रोगियों को उच्चीकृत चिकित्सालय पहुंचाती है। इनमें जीवन रक्षा के लिए महज ऑक्सीजन सिलेण्डर उपलब्ध हैं। चिकित्सालय सेे दूसरे चिकित्सालय तक पहुंचने तक रोगी की एबुलेंस चालक के भरोसे रहती है। एबुलेंस यूनियन अध्यक्ष वीरेंद्र सिंह ने बताया कि सभी चालक ऑक्सीजन शुरू करना व बंद करने के अलावा ड्रिप बदलना जानते हैं।यहां की निजी एबुलेंस गैर आपातकालीन हैं, लेकिन रैफर रोगी की तबीयत कभी भी बिगड़ सकती है। ऐसे में ऑॅक्सीजन सिलेण्डर के अलावा पल्स ऑक्सीमीटर, नेबुलाइजर जरूरी हैं। सहयोगी के तौर पर नर्सिंग असिस्टेंट होना चाहिए। निजी एबुलेंसों का भी प्रोटोकॉल निर्धारित है।