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31 साल पुराने मामले में राजस्थान हाईकोर्ट का अहम फैसला, निजी लेन-देन विवाद में SC-ST एक्ट के दुरुपयोग पर सख्त टिप्पणी

 
31 साल पुराने मामले में राजस्थान हाईकोर्ट का अहम फैसला, निजी लेन-देन विवाद में SC-ST एक्ट के दुरुपयोग पर सख्त टिप्पणी

राजस्थान हाईकोर्ट ने 31 साल पुराने एक मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि दो व्यक्तियों के बीच निजी या व्यावसायिक लेन-देन से जुड़े विवाद को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (SC-ST) अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत अपराध का रूप देना कानून का सरासर गलत प्रयोग है। हाईकोर्ट ने इस तरह के मामलों में अधिनियम के दुरुपयोग को गंभीर विषय बताते हुए निचली अदालतों और जांच एजेंसियों को सतर्क रहने की आवश्यकता पर जोर दिया है।

यह फैसला जस्टिस फरजद अली की एकलपीठ ने अपने रिपोर्टेबल जजमेंट में सुनाया। कोर्ट ने कहा कि SC-ST एक्ट का उद्देश्य अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को सामाजिक उत्पीड़न, अपमान और अत्याचार से संरक्षण देना है, न कि निजी आर्थिक या व्यावसायिक विवादों को आपराधिक रंग देकर किसी व्यक्ति को परेशान करना।

मामले के तथ्य बताते हैं कि दोनों पक्षों के बीच वर्ष 1990 के दशक की शुरुआत में लेन-देन को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ था। इस विवाद के दौरान एक पक्ष द्वारा दूसरे के खिलाफ SC-ST एक्ट के तहत मामला दर्ज करवाया गया। हाईकोर्ट ने रिकॉर्ड का अवलोकन करते हुए पाया कि शिकायत में लगाए गए आरोप मूल रूप से निजी लेन-देन से जुड़े थे और उनमें अधिनियम के आवश्यक तत्वों का अभाव था।

कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि किसी भी मामले में SC-ST एक्ट के तहत अपराध सिद्ध करने के लिए यह दिखाना आवश्यक है कि कथित कृत्य केवल पीड़ित की जाति के आधार पर किया गया हो और उसमें सार्वजनिक अपमान या अत्याचार का स्पष्ट तत्व मौजूद हो। केवल यह तथ्य कि शिकायतकर्ता अनुसूचित जाति या जनजाति से संबंधित है, अपने आप में अधिनियम के तहत अपराध स्थापित करने के लिए पर्याप्त नहीं है।

जस्टिस फरजद अली ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि निजी या व्यावसायिक विवादों को SC-ST एक्ट के तहत लाया जाता है, तो इससे न केवल कानून का दुरुपयोग होता है बल्कि वास्तविक पीड़ितों के मामलों की गंभीरता भी कम होती है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस प्रकार के मामलों से न्यायिक प्रक्रिया पर अनावश्यक बोझ पड़ता है और वर्षों तक मुकदमेबाजी चलती रहती है, जैसा कि वर्तमान मामले में हुआ।

हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को निरस्त करते हुए संबंधित आपराधिक कार्यवाही को खारिज कर दिया। साथ ही, यह स्पष्ट किया कि कानून का उद्देश्य न्याय सुनिश्चित करना है, न कि किसी पक्ष को दबाव में लाने या बदले की भावना से आपराधिक मामलों में उलझाना।

कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला SC-ST एक्ट के दायरे और उसके सही उपयोग को लेकर एक महत्वपूर्ण नजीर है। इससे भविष्य में ऐसे मामलों में संतुलन बनाए रखने में मदद मिलेगी, जहां निजी विवादों को सामाजिक अत्याचार का रूप देने की कोशिश की जाती है।