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राजस्थान हाईकोर्ट का मानवीय फैसला: 22 साल पुराने मामले में 55 वर्षीय आदिवासी महिला को दोबारा जेल भेजने से इनकार

 
राजस्थान हाईकोर्ट का मानवीय फैसला: 22 साल पुराने मामले में 55 वर्षीय आदिवासी महिला को दोबारा जेल भेजने से इनकार

राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ ने मानवीय संवेदनाओं को प्राथमिकता देते हुए 22 साल पुराने एक आपराधिक मामले में एक दुर्लभ और महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अदालत ने 55 वर्षीय आदिवासी महिला को दोबारा जेल भेजने से इनकार करते हुए कहा कि इतने लंबे समय बाद सजा भुगतने के लिए उसे फिर से कारावास में भेजना न्यायोचित नहीं होगा।

मामले के अनुसार, वर्ष 2003 में आदिवासी महिला के खिलाफ एक आपराधिक प्रकरण दर्ज किया गया था, जिसमें निचली अदालत द्वारा उसे दोषी ठहराया गया था। उस समय महिला कुछ अवधि के लिए जेल में भी रही थी। बाद में मामला अपील और अन्य कानूनी प्रक्रियाओं के चलते लंबित रहा। लगभग 22 वर्षों तक यह मामला न्यायिक प्रक्रिया में उलझा रहा, इस दौरान महिला सामान्य जीवन जीती रही और किसी अन्य आपराधिक गतिविधि में शामिल नहीं पाई गई।

हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान महिला की उम्र, सामाजिक पृष्ठभूमि, आर्थिक स्थिति और लंबे समय से मुकदमे का मानसिक बोझ झेलने जैसे पहलुओं पर विशेष ध्यान दिया गया। अदालत ने माना कि महिला एक आदिवासी समुदाय से आती है, जिसकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति पहले से ही कमजोर है। इतने वर्षों बाद उसे दोबारा जेल भेजना न केवल उसके लिए बल्कि उसके परिवार के लिए भी अत्यंत कठोर और अमानवीय होगा।

जोधपुर पीठ ने अपने फैसले में कहा कि न्याय केवल कानून के कठोर पालन तक सीमित नहीं है, बल्कि उसमें मानवीय दृष्टिकोण भी शामिल होना चाहिए। अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि महिला ने बीते दो दशकों में कानून का पालन किया है और उसके आचरण में सुधार देखा गया है। ऐसे में उसे पुनः जेल भेजने से समाज या न्याय व्यवस्था को कोई लाभ नहीं होगा।

हालांकि अदालत ने दोषसिद्धि को बरकरार रखा, लेकिन सजा के प्रश्न पर नरमी बरतते हुए महिला को कारावास से मुक्त रखने का निर्णय लिया। इसके स्थान पर अदालत ने प्रतीकात्मक दंड या पहले से भुगती गई सजा को पर्याप्त मानते हुए मामले का निस्तारण किया।

इस फैसले को कानूनी विशेषज्ञों ने “दुर्लभ और मिसाल कायम करने वाला” बताया है। उनका कहना है कि यह निर्णय न्यायपालिका की संवेदनशीलता और सामाजिक यथार्थ को समझने की क्षमता को दर्शाता है। साथ ही यह उन मामलों में मार्गदर्शक बन सकता है, जहां लंबे समय तक मुकदमे लंबित रहने के कारण दोषियों की परिस्थितियां पूरी तरह बदल चुकी होती हैं।